Vidur Niti

Vidur Niti, mainly on the science of politics, is narrated in the form of a conversation between Vidur and King Dhritraashtra in the great epic Mahabharata.

Vidur was known for his wisdom, honesty and unwavering loyalty to the ancient Aryan kingdom of Hastinapur.

Here is some slokas of Vidur Niti :

Image of Vidur

यस्मै देवाः प्रयच्छन्ति पुरुषाय प्रराभवम्। बुद्धिं तस्यापकर्षन्ति सोऽवाचीनानि पश्यति ॥

भावार्थ :

जिसके भाग्य में पराजय लिखी हो, ईश्वर उसकी बुद्धि पहले ही हर लेते हैं, इससे उस व्यक्ति को अच्छी बातें नहीं दिखाई देती, वह केवल बुरा-ही-बुरा देख पाता है।

बुद्धो कलूषभूतायां विनाशे प्रत्युपस्थिते। अनयो नयसङ्कशो हृदयात्रावसर्पति ॥

भावार्थ :

विनाशकाल के समय बुद्धि विपरीत हो जाती है। ऐसे व्यक्ति के मन में न्याय के स्थान पर अन्याय घर कर लेता है। वह अन्याय के आसरे ही सब निर्णय लेता है।

नैनं छन्दांसि वृजनात् तारयन्ति मायाविंन मायया वर्तमानम्। नीडं शकुन्ता इव जातपक्षाश्छन्दांस्येनं प्रजहत्यन्तकाले ॥

भावार्थ :

दुर्जन और कपटी व्यवहार करने वाले व्यक्ति की उसके पुण्य कर्म भी रक्षा नहीं कर पाते। जैसे पंख निकल आने पर पंक्षी घोसले को छोड़ देते हैं; वैसे ही अंत समय में पुण्य कर्म भी उसका साथ छोड़ देते हैं।

सामुद्रिकं वणिजं चोरपूर्व शलाकधूर्त्त च चिकित्सकं च। अरिं च मित्रं च कुशीलवं च नैतान्साक्ष्ये त्वधिकुर्वीतसप्त॥

भावार्थ :

हस्तरेखा व शरीर के लक्षणों के जानकार को ,चोर व चोरी से व्यापारी बने व्यक्ति को, जुआरी को, चिकित्सक को ,मित्र को तथा सेवक को -इन सातों को कभी अपना गवाह न बनाएँ, ये कभी भी पलट सकते हैं।

जरा रुपं हरति हि धैर्यमाशा मृत्युः प्राणान् धर्मचर्यामसूया। क्रोधः श्रियं शिलमनार्यसेवा हृियं कामः सर्वमेवाभिमानः॥

भावार्थ :

वृद्धावस्था खूबसूरती को नष्ट कर देती है, उम्मीद धैर्य को, मृत्यु प्राणों को, निंदा धर्मपूर्ण व्यवहार को, क्रोध आर्थिक उन्नति को, दुर्जनों की सेवा सज्जनता को, काम -भाव लाज -शर्म को तथा अहंकार सबकुछ नष्ट कर देता है।

यज्ञो दानमध्ययनं तपश्च चत्वार्येतान्यन्वेतानि सणि। दमः सत्यमार्जवमानृशंस्यं चत्वार्येतान्यनुयान्ति सन्तः ॥

भावार्थ :

यज्ञ, दान, अध्ययन तथा तपश्चर्या -ये चार गुण सज्जनों के साथ रहते हैं और इंद्रियदमन, सत्य। सरलता तथा कोमलता -इन चार गुणों का सज्जन पुरुष अनुसरण करते हैं।

इज्याध्ययनदानानि तपः सत्यं क्षमा घृणा। अलोभ इति मार्गोऽयं धर्मस्याष्टविधः स्मृत ॥

भावार्थ :

यज्ञ, अध्ययन, दान, तप, सत्य, क्षमा, दया और लोभ विमुखता -धर्म के ये आठ मार्ग बताए गए हैं। इन पर चलने वाला धर्मत्मा कहलाता है।

सत्यं रुपं श्रुतं विद्या कौल्यं शीलं बलं धनम्। शौर्यं य च चित्रभाष्यं च दशेमे स्वर्गयोनयः ॥

भावार्थ :

सच्चाई, खूबसूरती, शास्त्रज्ञान, उत्तम कुल, शील, पराक्रम। धन, शौर्य, विनय और वाक् पटुता -ये दस गुण स्वर्ग पाने के अर्थात समस्त एेश्वर्य पाने के साधन हैं।