Prayers Sanskrit Slokas

Prayers Sanskrit Slokas - संस्कृत प्रार्थना - संस्कृत मंत्र

Prayer is the exercise of faith and hope.

Prayer is an invocation or act that seeks to activate a rapport with an object of worship through deliberate communication.

Here is collection of Prayer Sanskrit Slokas :

Prayers Slokas With Meaning

Image of Prayer

वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि ।
मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ ॥

भावार्थ :

अक्षरों, अर्थसमूहों, रसों, छन्दों, और मङ्गलोंकी करने वाली सरस्वतीजी और गणेश जी की में वन्दना करता हूँ ।

सूर्य संवेदना पुष्पे:, दीप्ति कारुण्यगंधने ।
लब्ध्वा शुभम् नववर्षेअस्मिन् कुर्यात्सर्वस्य मंगलम् ॥

भावार्थ :

जिस तरह सूर्य प्रकाश देता है, पुष्प देता है, संवेदना देता है और हमें दया भाव सिखाता है उसी तरह यह नव वर्ष हमें हर पल ज्ञान दे और हमारा हर दिन, हर पल मंगलमय हो ।

सरस्वती नमस्तुभ्यं, वरदे कामरूपिणी । विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा ॥

भावार्थ :

ज्ञान की देवी माँ सरस्वती को मेरा नमस्कार, वर दायिनी माँ भगवती को मेरा प्रणाम ।अपनी विद्या आरम्भ करने से पूर्व आपका नमन करती हूँ , मुझ पर अपनी सिद्धि की कृपा बनाये रखें ।

या देवी सर्वभूतेशु, शक्तिरूपेण संस्थिता । नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नम: ॥

भावार्थ :

देवी सभी जगह व्याप्त है जिसमे सम्पूर्ण जगत की शक्ति निहित है ऐसी माँ भगवती को मेरा प्रणाम, मेरा प्रणाम, मेरा प्रणाम ।

या देवी स्तुयते नित्यं विबुधैर्वेदपरागै: । सा मे वसतु जिह्रारो ब्रह्मरूपा सरस्वती ॥

भावार्थ :

ज्ञान की देवी माँ सरस्वती जिसकी जिव्हा पर सारे श्लोकों का सार है जो बुद्धि की देवी कही जाती है और जो ब्रह्म देव की पत्नी है ऐसी माँ का वास मेरे अन्दर सदैव रहे ऐसी कामना है ।

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं। नागाननाथ श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥

भावार्थ :

विघ्नेश्वर, वर देनेवाले, देवताओं के प्रिय, लम्बोदर, कलाओं से पूरित, सम्पूर्ण जगत् का हित करनेवाले, गजके समान मुखवाले ,वेद तथा यज्ञ से विभूषित गौरीपुत्र आपको मेरा नमस्कार है ; हे गणनाथ ! आपको नमस्कार है ।

ॐ असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय,।
मॄत्योर्मा अमॄतं गमय ॥

भावार्थ :

हे प्रभु! असत्य से सत्य, अन्धकार से प्रकाश और मृत्यु से अमरता की ओर मेरी गति हो ।

शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धनसंपद:।
शत्रुबुध्दिविनाशाय दीपजोतिर्नामोस्तुते ॥

भावार्थ :

ऐसे देवता को प्रणाम करती हूँ ,जो कल्याण करता है, रोग मुक्त रखता है, धन सम्पदा देता हैं , जो विपरीत बुध्दि का नाश करके मुझे सद मार्ग दिखाता हैं । ऐसी दीव्य ज्योति को मेरा परम नम: ।

या देवी स्तुयते नित्यं विबुधैर्वेदपरागै:।
सा मे वसतु जिह्रारो ब्रह्मरूपा सरस्वती ॥

भावार्थ :

ज्ञान की देवी माँ सरस्वती जिसकी जिव्हा पर सारे श्लोकों का सार है जो बुद्धि की देवी कही जाती है और जो ब्रह्म देव की पत्नी है ऐसी माँ का वास मेरे अन्दर सदैव रहे ऐसी कामना है ।

नमस्तेस्तु महामायें श्रीपीठे सुरपूजिते । शंख्चक्ररादाह्स्ते महालक्ष्मी नमस्तु ते ॥

भावार्थ :

माँ लक्ष्मी जो शक्ति की देवी है जो धन की देवी है जो समस्त देवताओ द्वारा पूजी जाती है जिनके हाथो में शंख और चक्र है ऐसी माँ लक्ष्मी को मेरा प्रणाम है ।

नमस्तेस्तु महामायें श्रीपीठे सुरपूजिते। शंख्चक्ररादाह्स्ते महालक्ष्मी नमस्तु ते ॥

भावार्थ :

माँ लक्ष्मी जो शक्ति की देवी है जो धन की देवी है जो समस्त देवताओ द्वारा पूजी जाती है जिनके हाथो में शंख और चक्र है ऐसी माँ लक्ष्मी को मेरा प्रणाम है ।

नीलाम्बुज श्यामल कोमलाङ्गम्, सीता समारोपित वाम-भागम्। पाणौ महाशायक चारु-चापं, नमामि रामं रघुवंश नाथम् ॥

भावार्थ :

नीलकमल के समान श्याम और कोमल जिनके अंग हैं, माता श्रीसीताजी जिनके वाम-भाग में विराजमान हैं और जिनके हाथ में अमोघ बाण और सुन्दर धनुष है । ऐसे श्री रघुवंश के नाथ प्रभु श्री राम चंद्र जी को उन मैं नमस्कार करता हूँ ।