Shiva Mantra

Shiva, also known as Mahadeva ("Great God"), is one of the three major deities of Hinduism. According to hindu mythology lord Shiva is the destroyer in the main three supreme god. There are three supreme gods 1st one is Lord Shiva, Second one is Brahma and third one Vishnu.

Image of Shiva

सर्वसुगन्धिसुलेपितलिंगम् बुद्धिविवर्द्धनकारणलिंगम् । सिद्धसुरासुरवन्दितलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥

भावार्थ :

मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो सभी प्रकार के सुगन्धित द्रव्यों से लिप्त है, अथवा सुगन्धयुक्त नाना द्रव्यों से पूजित है, और जिसका पूजन व भजन बुद्धि के विकास में एकमात्र कारण है तथा जिसकी पूजा सिद्ध, देव व दानव हमेशा करते हैं।

कनकमहामणिभूषितलिंगम् फणिपतिवेष्टितशोभितलिंगम्। दक्षसुयज्ञविनाशनलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥

भावार्थ :

मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग सुवर्ण व महामणियों से भूषित है, जो नागराज वासुकि से वेष्टित है, और जिसने दक्षप्रजापति के यज्ञ का नाश किया है।

कुंकुमचन्दनलेपितलिंगम् पंकजहारसुशोभितलिंगम्। संचितपापविनाशनलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥

भावार्थ :

मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग केशरयुक्त चन्दन से लिप्त है और कमल के पुष्पों के हार से सुशोभित है, जिस लिंग के अर्चन व भजन से पूर्वजन्म या जन्म-जन्मान्तरों के सञ्चित अर्थात् एकत्रित हुए पापकर्म नष्ट हो जाते हैं, अथवा समुदाय रूप में उपस्थित हुए जो आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक त्रिविध ताप हैं, वे नष्ट हो जाते हैं।

देवगणार्चितसेवितलिंगम् भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम्। दिनकरकोटिप्रभाकरलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥

भावार्थ :

मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग देवगणों से पूजित तथा भावना और भक्ति से सेवित है, और जिस लिंग की प्रभा–कान्ति या चमक करोड़ों सूर्यों की तरह है।

अष्टदलोपरिवेष्टितलिंगम् सर्वसमुद्भवकारणलिंगम्। अष्टदरिद्रविनाशितलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्॥

भावार्थ :

मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग अष्टदल कमल के ऊपर विराजमान है, और जो सम्पूर्ण जीव–जगत् के उत्पत्ति का कारण है, तथा जिस लिंग की अर्चना से अणिमा महिमा आदि के अभाव में होने वाला आठ प्रकार का जो दारिद्र्य है, वह भी नष्ट हो जाता है।

सुरगुरुसुरवरपूजितलिंगम् सुरवनपुष्पसदार्चितलिंगम्। परात्परं परमात्मकलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥

भावार्थ :

मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग बृहस्पति तथा देवश्रेष्ठों से पूजित है, और जिस लिंग की पूजा देववन अर्थात् नन्दनवन के पुष्पों से की जाती है, जो भगवान् सदाशिव का लिंग स्थूल–दृश्यमान इस जगत् से परे जो अव्यक्त–प्रकृति है, उससे भी परे सूक्ष्म अथवा व्यापक है, अत: वही सबका वन्दनीय तथा अतिशय प्रिय आत्मा है।