Sanskrit Subhashitani (संस्कृत सुभाषितानि)

Sanskrit Subhashitani (संस्कृत सुभाषितानि) - Subhashitani Slokas

Subhashita means good speech. They are wise sayings, instructions and stories, composed in Sanskrit language.
Subhasitas act as teacher in formulating the sense of morality and character, which sums up the total of a person’s virtues including dispositions, behaviors, habits, likes, dislikes, capacities, traits, ideals, ideas, values, feelings, and intuitions.

Subhasitani Sloka In Sanskrit - Subhasitani

सुभाषित नैतिकता और चरित्र की भावना तैयार करने में शिक्षक के रूप में कार्य करते हैं, जो स्वभाव, व्यवहार, आदतों, पसंद, नापसंद, क्षमता, लक्षण, आदर्शों, विचारों, मूल्यों, भावनाओं और अंतर्ज्ञान सहित किसी व्यक्ति के गुणों का योग करता है।

Sanskrit Subhashitani - 101 संस्कृत सुभाषितानि श्लोक उसके हिंदी और अँग्रेजी भावार्थ सहित

संस्कृत सुभाषितानि हिंदी भावार्थ सहित - Sanskrit Subhashitani with Hindi Meaning

Image of Subhasitani

शुश्रूषा श्रवणं चैव ग्रहणं धारणां तथा । ऊहापोहोऽर्थ विज्ञानं तत्त्वज्ञानं च धीगुणाः॥

भावार्थ :

शुश्रूषा, श्रवण, ग्रहण, धारण, चिंतन, उहापोह, अर्थविज्ञान, और तत्त्वज्ञान – ये बुद्धि के गुण हैं ।

निशानां च दिनानां च यथा ज्योतिः विभूषणम् । सतीनां च यतीनां च तथा शीलमखण्डितम् ॥

भावार्थ :

जैसे प्रकाश, दिन और रात का भूषण है, वैसे अखंडित शील, सतीयों और यतियों का भूषण है ।

न मुक्ताभि र्न माणिक्यैः न वस्त्रै र्न परिच्छदैः । अलङ्कियेत शीलेन केवलेन हि मानवः ॥

भावार्थ :

मोती, माणेक, वस्त्र या पहनावे से नहीं, पर केवल शील से हि इन्सान विभूषित होता है ।

शौचानां परमं शौचं गुणानां परमो गुणः । प्रभावो महिमा धाम शीलमेकं जगत्त्रये ॥

भावार्थ :

तीनों लोकों में एक शील ही परम् पवित्र चीझ, गुणों में श्रेष्ठ गुण, महिमा का धाम और प्रभाव है ।

विदेशेषु धनं विद्या व्यसनेषु धनं मतिः । परलोके धनं धर्मः शीलं सर्वत्र वै धनम् ॥

भावार्थ :

विदेश में विद्या धन, संकट में मति धन, परलोक में धर्म धन होता है । पर, शील तो सब जगह धन है ।

कीटोऽपि सुमनःसंगादारोहति सतां शिरः । अश्मापि याति देवत्वं महद्भिः सुप्रतिष्ठितः ॥

भावार्थ :

पुष्प के संग से कीडा भी अच्छे लोगों के मस्तक पर चढता है । बडे लोगों से प्रतिष्ठित किया गया पत्थर भी देव बनता है ।

सन्तोषः परमं सौख्यं सन्तोषः परममृतम् । सन्तोषः परमं पथ्यं सन्तोषः परमं हितम् ॥

भावार्थ :

संतोष, यह परम् सौख्य, परम् अमृत, परम् पथ्य और परम् हितकारक है ।

सन्तोषः परमो लाभः सत्सङ्गः परमा गतिः । विचारः परमं ज्ञानं शमो हि परमं सुखम् ॥

भावार्थ :

संतोष परम् बल है, सत्संग परम् गति है, विचार परम् ज्ञान है, और शम परम् सुख है ।