Durga Mantra (दुर्गा मंत्र)

Durga(दुर्गा) is the principal form of the Goddess, also known as Devi and Shakti in Hinduism. Durga means "the inaccessible" or "the invincible". She is considered to be the combined forms of Goddess Lakshmi, Goddess Saraswati and Goddess Kali. Durga Mantra is considered most effective and secret Mantra and has power to fulfill all suitable desires.

Here you can find many mantra of Goddess Maa Durga.

Image of Duga Ji

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता | न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥

भावार्थ :

हे भवानी ! पिता, माता, भाई, दाता, पुत्र, पुत्री, सेवक, स्वामी, पत्नी, विद्या, और मन - इनमें से कोई भी मेरा नहीं है, हे देवी ! अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो ।

भवाब्धावपारे महादुःखभीरु पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः | कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥

भावार्थ :

मैं अपार भवसागर में पड़ा हुआ हूँ, महान् दु:खोंसे भयभीत हूँ, कामी, लोभी मतवाला तथा संसार के घृणित बन्धनों में बँधा हुआ हूँ, हे भवानी ! अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो ।

न जानामि दानं न च ध्यानयोगं न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम् | न जानामि पूजां न च न्यासयोगं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥

भावार्थ :

हे भवानी ! मैं न दान देना जानता हूँ और न ध्यानमार्ग का ही मुझे पता है, तन्त्र और स्तोत्र-मन्त्रों का भी मुझे ज्ञान नहीं है, पूजा तथा न्यास आदि की क्रियाओं से तो मैं एकदम कोरा हूँ, अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो ।

न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित् | न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मात गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥

भावार्थ :

न मैं पुण्य जानता हूँ न तीर्थ, न मुक्ति का पता है न लयका । हे मातः ! भक्ति और व्रत भी मुझे ज्ञात नहीं है , हे भवानी ! अब केवल तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो ।

कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धि: कुदासः कुलाचारहीन: कदाचारलीन: | कुदृष्टि: कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥

भावार्थ :

मैं कुकर्मी, बुरी संगति में रहनेवाला, दुर्बुद्धि, दुष्टदास, कुलोचित सदाचार से हीन, दुराचारपरायण, कुत्सित दृष्टि रखनेवाले और सदा दुर्वचन बोलनेवाले हूँ, हे भवानी ! मुझ अधमकी अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो ।

प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित् | न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥

भावार्थ :

मैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इंद्रा सूर्य, चन्द्रमा तथा अन्य किसी भी देवता को नहीं जानता, हे शरण देनेवाली भवानी ! अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो ।