बच्चों के लिए कुछ प्रमुख संस्कृत के श्लोक व उनके अर्थ।संस्कृत श्लोक का महत्व भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में गहरा है। यह शब्द, वाक्य और छंद की श्रेष्ठतम रचना है जो संस्कृत भाषा में लिखी जाती है। बच्चों को संस्कृत श्लोक अर्थ सहित पढ़ाने के पाँच महत्वपूर्ण कारण इस तरह से हैं
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥तुम ही माता हो, तुम ही पिता हो, तुम ही बंधु हो और तुम ही सखा हो।
तुम ही विद्या हो, तुम ही धन हो, तुम ही सब कुछ हो, मेरे देवता हे देव।You are the mother, you are the father, you are the brother and you are the friend. You are knowledge, you are wealth, you are everything, my god oh god.
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥गुरु अर्थात शिक्षक ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है, गुरु ही महेश्वर अर्थात शंकर भगवान हैं।
गुरु ही साक्षात परब्रह्म है अर्थात गुरु परमात्मा हैं, उन महान गुरु को नमस्कार है।Guru i.e. teacher is Brahma, Guru is Vishnu, Guru is Maheshwar i.e. Lord Shankar. Guru is the ultimate Supreme Being, that is, Guru is the Supreme Soul, salutations to that great Guru.
काम क्रोध अरु स्वाद, लोभ शृंगारहिं कौतुकहिं।
अति सेवन निद्राहि, विद्यार्थी आठौ तजै ॥इस श्लोक के माध्यम से विद्यार्थियों को 8 चीजों से बचने के लिए कहा गया है।
काम, क्रोध, स्वाद, लोभ, शृंगार, मनोरंजन, अधिक भोजन और नींद सभी को त्यागना जरूरी है।Through this verse, students have been asked to avoid 8 things. It is necessary to give up work, anger, taste, greed, make-up, entertainment, excess food and sleep.
विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् ।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥विद्या से विनय अर्थात विवेक व नम्रता मिलती है, विनय से मनुष्य को पात्रता मिलती है यानी पद की योग्यता मिलती है। वहीं, पात्रता व्यक्ति को धन देती है। धन फिर धर्म की ओर व्यक्ति को बढ़ाता और धर्म से सुख मिलता है। इस मतलब यह हुआ कि जीवन में कुछ भी हासिल करने के लिए विद्या ही मूल आधार है।
From education one gets modesty i.e. prudence and humility, from modesty one gets eligibility i.e. one gets the qualification for a position. At the same time, entitlement gives wealth to a person. Wealth then pushes a person towards religion and religion brings happiness. This means that education is the basic foundation to achieve anything in life.
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनं:।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं ॥बड़े-बुजुर्गों का अभिवादन अर्थात नमस्कार करने वाले और बुजुर्गों की सेवा करने वालों की 4 चीजें हमेशा बढ़ती हैं। ये 4 चीजें हैं: आयु, विद्या, यश और बल। इसी वजह से हमेशा वृद्ध और स्वयं से बड़े लोगों की सेवा व सम्मान करना चाहिए।
4 things always increase in those who greet elders and those who serve elders. These 4 things are: Age, Knowledge, Fame and Strength. For this reason, one should always serve and respect elders and people older than oneself.
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा: ॥महज इच्छा रखने भर से कोई कार्य पूरा नहीं होता, बल्कि उसके लिए उद्यम अर्थात मेहनत करना जरूरी होता है। ठीक उसी तरह जैसे शेर के मुंह में सोते हुए हिरण खुद-ब-खुद नहीं आ जाता, बल्कि उसे शिकार करने के लिए परिश्रम करना होता है।
No work can be accomplished merely by wishing, but it requires effort i.e. hard work. Just like a sleeping deer does not come into the lion's mouth on its own, but one has to make efforts to hunt it.
न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि।
व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम् ॥एक ऐसा धन जिसे न चोर चुराकर ले जा सकता है, न ही राजा छीन सकता है, जिसका न भाइयों में बंटवार हो सकता है, जिसे न संभालना मुश्किल व भारी होता है और जो अधिक खर्च करने पर बढ़ता है, वो विद्या है। यह सभी धनों में से सर्वश्रेष्ठ धन है।
A wealth which neither a thief can steal nor a king can snatch away, which cannot be divided among brothers, which is difficult and heavy to handle and which increases with more expenditure, is knowledge. This is the best of all wealth.
काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च।
अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं ॥एक विद्यार्थी के पांच लक्षण होते हैं। कौवे की तरह हमेशा कुछ नया जानने की प्रबल इच्छा। बगुले की तरह ध्यान व एक्राग्रता। कुत्ते की जैसी नींद, जो एक आहट में भी खुल जाए। अल्पाहारी मतलब आवश्यकतानुसार खाने वाला और गृह-त्यागी।
There are five characteristics of a student. Like a crow, there is always a strong desire to know something new. Meditation and concentration like a heron. Sleep like a dog, which wakes up even with a sound. A picky eater means one who eats as per need and a householder.
सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्याऽभ्यासेन रक्ष्यते । मृज्यया रक्ष्यते रुपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते ॥
धर्म का रक्षण सत्य से, विद्या का अभ्यास से, रुप का सफाई से, और कुल का रक्षण आचरण करने से होता है ।
सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः । सत्येन वायवो वान्ति सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम् ॥
सत्य से पृथ्वी का धारण होता है, सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से पवन चलता है । सब सत्य पर आधारित है ।
नास्ति सत्यसमो धर्मो न सत्याद्विद्यते परम् । न हि तीव्रतरं किञ्चिदनृतादिह विद्यते ॥
सत्य जैसा अन्य धर्म नहीं । सत्य से पर कुछ नहीं । असत्य से ज्यादा तीव्रतर कुछ नहीं ।
सत्यमेव व्रतं यस्य दया दीनेषु सर्वदा । कामक्रोधौ वशे यस्य स साधुः – कथ्यते बुधैः ॥
'केवल सत्य' ऐसा जिसका व्रत है, जो सदा दीन की सेवा करता है, काम-क्रोध जिसके वश में है, उसी को ज्ञानी लोग 'साधु' कहते हैं ।
सत्यमेव जयते नानृतम् सत्येन पन्था विततो देवयानः । येनाक्रमत् मनुष्यो ह्यात्मकामो यत्र तत् सत्यस्य परं निधानं ॥
जय सत्य का होता है, असत्य का नहीं । दैवी मार्ग सत्य से फैला हुआ है । जिस मार्ग पे जाने से मनुष्य आत्मकाम बनता है, वही सत्य का परम् धाम है ।
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम् । नासत्यं च प्रियं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः ॥
सत्य और प्रिय बोलना चाहिए; पर अप्रिय सत्य नहीं बोलना और प्रिय असत्य भी नहीं बोलना यह सनातन धर्म है ।
नानृतात्पातकं किञ्चित् न सत्यात् सुकृतं परम् । विवेकात् न परो बन्धुः इति वेदविदो विदुः ॥
वेदों के जानकार कहते हैं कि अनृत (असत्य) के अलावा और कोई पातक नहीं; सत्य के अलावा अन्य कोई सुकृत नहीं और विवेक के अलावा अन्य कोई भाई नहीं ।