परोपकार से तात्पर्य ऐसे दान या अन्य अच्छे कार्यों से है जो दूसरों या पूरे समाज की मदद करते हैं। परोपकार का अर्थ है दूसरों की भलाई करना। परोपकार के समान कोई धर्म नहीं है। परोपकार ऐसा कार्य है, जिससे शत्रु भी मित्र बन जाता है। यहाँ जो भी परपोकर श्लोक का संग्रह है वो परोपकार को जीवन का उद्देश्य बताता है, और यह जीवन में खुशी और संतुष्टि प्राप्त करने का सबसे महत्वपूर्ण मार्ग है, यह भी बताता है।
परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः । परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थ मिदं शरीरम् ॥
परोपकार के लिए वृक्ष फल देते हैं, नदीयाँ परोपकार के लिए ही बहती हैं और गाय परोपकार के लिए दूध देती हैं अर्थात् यह शरीर भी परोपकार के लिए ही है ।
रविश्चन्द्रो घना वृक्षा नदी गावश्च सज्जनाः । एते परोपकाराय युगे दैवेन निर्मिता ॥
सूर्य, चन्द्र, बादल, नदी, गाय और सज्जन - ये हरेक युग में ब्रह्मा ने परोपकार के लिए निर्माण किये हैं ।
परोपकारशून्यस्य धिक् मनुष्यस्य जीवितम् । जीवन्तु पशवो येषां चर्माप्युपकरिष्यति ॥
परोपकार रहित मानव के जीवन को धिक्कार है । वे पशु धन्य है, मरने के बाद जिनका चमडा भी उपयोग में आता है ।
आत्मार्थं जीवलोकेऽस्मिन् को न जीवति मानवः । परं परोपकारार्थं यो जीवति स जीवति ॥
इस जीवलोक में स्वयं के लिए कौन नहीं जीता ? परंतु, जो परोपकार के लिए जीता है, वही सच्चा जीना है ।
परोपकृति कैवल्ये तोलयित्वा जनार्दनः । गुर्वीमुपकृतिं मत्वा ह्यवतारान् दशाग्रहीत् ॥
विष्णु भगवान ने परोपकार और मोक्षपद दोनों को तोलकर देखे, तो उपकार का पल्लु ज्यादा झुका हुआ दिखा; इसलिए परोपकारार्थ उन्हों ने दस अवतार लिये ।
पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः । नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः परोपकाराय सतां विभृतयः ॥
नदियाँ अपना पानी खुद नहीं पीती, वृक्ष अपने फल खुद नहीं खाते, बादल ( स्वयं के सिंचित जल से उगाया हुआ) अनाज खुद नहीं खाते । सत्पुरुषों का जीवन परोपकार के लिए ही होता है ।
Rivers do not drink their own water, trees do not eat their own fruits, clouds do not eat their own crops (grown with their own water). The life of a good person is only for doing good to others.
आत्मार्थं जीवलोकेऽस्मिन् को न जीवति मानवः । परं परोपकारार्थं यो जीवति स जीवति ॥
इस जीवलोक में स्वयं के लिए कौन नहीं जीता ? परंतु, जो परोपकार के लिए जीता है, वही सही रूप में जीता है अर्थात् जिसका जीवन परोपकार के लिए है , उसका जीवन ही वास्तव में जीवन है ।
Who does not live for himself in this world? But, only he who lives for the welfare of others lives in the true sense i.e. the life of one whose life is for the welfare of others is the true life.
भवन्ति नम्रस्तरवः फलोद्रमैः । नवाम्बुभिर्दूरविलम्बिनो घनाः । अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः। स्वभाव एवैष परोपकारिणाम् ॥
वृक्षों पर फल आने से वे झुकते हैं अर्थात् नम्र बनते हैं; पानी में भरे बादल आकाश सेनीचे आ जाते हैं; अच्छे लोग समृद्धि से नम्र और सहृदय बने रहते हैं क्योंकि परोपकार करने वालों स्वभाव ही ऐसा होता है।
Trees bend down when they bear fruits, i.e. they become humble; clouds filled with rain come down from the sky; good people remain humble and kind hearted even after prosperity because such is the nature of those who do charity.
श्लोकार्धेन प्रवक्ष्यामि यदुक्तं ग्रन्थकोटिभिः ।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥जो करोडो ग्रंथों में कहा है, वह मैं आधे श्लोक में कहता हूँ; परोपकार पुण्यकारक है, और दूसरे को पीडा देना पापकारक है ।
भवन्ति नम्रस्तरवः फलोद्रमैः नवाम्बुभिर्दूरविलम्बिनो घनाः ।
अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः स्वभाव एवैष परोपकारिणाम् ॥वृक्षों पर फल आने से वे झुकते हैं (नम्र बनते हैं); पानी में भरे बादल आकाश में नीचे आते हैं; अच्छे लोग समृद्धि से गर्विष्ठ नहीं बनते, परोपकारियों का यह स्वभाव हि होता है ।
राहिणि नलिनीलक्ष्मी दिवसो निदधाति दिनकराप्रभवाम् ।
अनपेक्षितगुणदोषः परोपकारः सतां व्यसनम् ॥दिन में जिसे अनुराग है वैसे कमल को, दिन सूर्य से पैदा हुई शोभा देता है । अर्थात् परोपकार करना तो सज्जनों का व्यसन-आदत है, उन्हें गुण-दोष की परवा नहीं होती ।
पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः ।
नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः परोपकाराय सतां विभृतयः ॥नदियाँ अपना पानी खुद नहीं पीती, वृक्ष अपने फल खुद नहीं खाते, बादल खुद ने उगाया हुआ अनाज खुद नहीं खाते । सत्पुरुषों का जीवन परोपकार के लिए हि होता है ।
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् ।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥अठारह पुराणों के सार के रूप में महर्षि व्यास ने सिर्फ दो बातें कहीं !! दूसरो का उपकार करने से पुण्य होता है और दुःख देने से पाप।
Maharishi Vyas said only two things as the essence of the eighteen Puranas!! Doing good to others is a virtue and giving pain is a sin.
परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः ।
परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थ मिदं शरीरम् ॥परोपकार के लिए वृक्ष फल देते हैं, नदीयाँ परोपकार के लिए ही बहती हैं और गाय परोपकार के लिए दूध देती हैं, (अर्थात्) यह शरीर भी परोपकार के लिए ही है ।
Trees give fruits for the welfare of others, rivers flow for the welfare of others and cows give milk for the welfare of others, (meaning) this body is also for the welfare of others.