Subhashita means good speech. They are wise sayings, instructions and stories, composed in Sanskrit language.
Subhasitas act as teacher in formulating the sense of morality and character,
which sums up the total of a person’s virtues including dispositions, behaviors, habits, likes, dislikes,
capacities, traits, ideals, ideas, values, feelings, and intuitions.
सुभाषित नैतिकता और चरित्र की भावना तैयार करने में शिक्षक के रूप में कार्य करते हैं, जो स्वभाव, व्यवहार, आदतों, पसंद, नापसंद, क्षमता, लक्षण, आदर्शों, विचारों, मूल्यों, भावनाओं और अंतर्ज्ञान सहित किसी व्यक्ति के गुणों का योग करता है।
Sanskrit Subhashitani - 101 संस्कृत सुभाषितानि श्लोक उसके हिंदी और अँग्रेजी भावार्थ सहितअग्निशेषमृणशेषं शत्रुशेषं तथैव च ।
पुन: पुन: प्रवर्धेत तस्माच्शेषं न कारयेत् ॥यदि कोई आग, ऋण, या शत्रु अल्प मात्रा अथवा न्यूनतम सीमा तक भी अस्तित्व में बचा रहेगा तो बार बार बढ़ेगा ; अत: इन्हें थोड़ा सा भी बचा नही रहने देना चाहिए । इन तीनों को सम्पूर्ण रूप से समाप्त ही कर डालना चाहिए ।
If any fire, debt, or enemy continues to exist even to a small extent or minimum extent, it will increase again and again; Therefore, they should not be allowed to remain even a little bit. All these three should be abolished completely.
नाभिषेको न संस्कार: सिंहस्य क्रियते मृगैः ।
विक्रमार्जितराज्यस्य स्वयमेव मृगेंद्रता ॥वन्य जीव शेर का राज्याभिषेक (पवित्र जल छिड़काव) तथा कतिपय कर्मकांड के संचालन के माध्यम से ताजपोशी नहीं करते किन्तु वह अपने कौशल से ही कार्यभार और राजत्व को सहजता व सरलता से धारण कर लेता है
Wild animals do not crown the lion through coronation (sprinkling holy water) and conducting certain rituals, but He takes charge and kingship easily and simply by his skill.
उद्यमेनैव हि सिध्यन्ति,कार्याणि न मनोरथै ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य,प्रविशन्ति मृगाः॥प्रयत्न करने से ही कार्य पूर्ण होते हैं, केवल इच्छा करने से नहीं, सोते हुए शेर के मुख में मृग स्वयं प्रवेश नहीं करते हैं।
Tasks are accomplished only by effort, not by mere desire, the antelope itself does not enter the mouth of a sleeping lion.
विद्वत्वं च नृपत्वं च न एव तुल्ये कदाचन् ।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते॥विद्वता और राज्य अतुलनीय हैं, राजा को तो अपने राज्य में ही सम्मान मिलता है पर विद्वान का सर्वत्र सम्मान होता है|
Knowledge and state are incomparable, the king is respected only in his own state, but the scholar is respected everywhere.
पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम् ।
मूढै: पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा प्रदीयते ॥पृथ्वी पर तीन ही रत्न हैं जल अन्न और अच्छे वचन । फिर भी मूर्ख पत्थर के टुकड़ों को रत्न कहते हैं ।
There are only three gems on earth, water, food and good words. Still fools call pieces of stone gems.
पातितोऽपि कराघातै-रुत्पतत्येव कन्दुकः।
प्रायेण साधुवृत्तानाम-स्थायिन्यो विपत्तयः॥हाथ से पटकी हुई गेंद भी भूमि पर गिरने के बाद ऊपर की ओर उठती है, सज्जनों का बुरा समय अधिकतर थोड़े समय के लिए ही होता है।
The ball hit by hand also rises upwards after falling on the ground, the bad times of the gentlemen are mostly short-lived.
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियं ।
प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः॥सत्य बोलें, प्रिय बोलें पर अप्रिय सत्य न बोलें और प्रिय असत्य न बोलें, ऐसी सनातन रीति है ॥
Speak truth, speak dear but do not speak unpleasant truth and dear do not speak untruth, such is the eternal practice.
मूर्खस्य पञ्च चिन्हानि गर्वो दुर्वचनं तथा ।
क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादरः॥मूर्खों के पाँच लक्षण हैं - गर्व, अपशब्द, क्रोध, हठ और दूसरों की बातों का अनादर॥
There are five signs of fools - pride, abusive language, anger, stubbornness and disrespect for others' words.
अतितॄष्णा न कर्तव्या तॄष्णां नैव परित्यजेत् ।
शनै: शनैश्च भोक्तव्यं स्वयं वित्तमुपार्जितम् ॥अधिक इच्छाएं नहीं करनी चाहिए पर इच्छाओं का सर्वथा त्याग भी नहीं करना चाहिए। अपने कमाये हुए धन का धीरे-धीरे उपभोग करना चाहिये॥
One should not have too many desires, but one should not completely abandon the desires. You should consume your earned money slowly.