Here you will get to read the verses written by some great people with their Hindi meaning and English meaning. You must read it once because it will give you good ideas and also you can gain some important knowledge.
Here is collection of Best Sanskrit Slokas :
गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः। सुस्वादुतोयाः प्रभवन्ति नद्यः समुद्रमासाद्य भवन्तपेयाः ॥
गुणवान व्यक्तियों में गुण, गुण ही होते हैं। वे गुणहीन व्यक्तियों को प्राप्त करके दोष बन जाते है। नदिया जिसप्रकार स्वादिष्ट जल से युक्त होकर निकलती हैं ,परन्तु समुद्र में पहुंचकर वे जल पिने योग्य नहीं होती हैं।
The Qualities of the virtuous people are the qualities. Receiving the same quality, the virtuous person becomes a fault. The river comes out with tasty water from the mountains, but when they reach the sea, they will not be portable.
साहित्यसंगीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः। तृणं न खादन्नपि जीवमानः तद्भागधेयं परमं पशूनाम्
साहित्य संगीत तथा कला से रहित व्यक्ति वास्तव में पूँछ व सींग के बिना पशु है ,जो घास न खाता हुआ भी (पशु के समान ) जीवित है। यह उन पशुओं का अत्यधिक सौभाग्य है।
The person who is devoid of literature, music and other skills as like art is actually like a beast without a horn and asking. The one who does not eat grass is alive. well it is a matter of pride for animals that some people are also animals.
पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम्। मूढैः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते ॥
पृथ्वी पर जल, अन्न और सुन्दर वचन तीन रत्न है। मूर्खों के द्वारा पत्थर के टुकड़ो को रत्न का नाम दिया जाता हैं।
Food, Water and beautiful words on Earth are the three gems, Gems are considered In stone Pieces by Foolish person.
सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः। सत्येन वाति वायुश्च सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम ॥
पृथ्वी सत्य के द्वारा ही धारण की जाती हैं। सूर्य सत्यके द्वारा तपता है और वायु भी सत्यके द्वारा बहती है। सारा संसार सत्य पर ही स्थित है।
In this world, The earth is fixed on The truth only, through the truth, the sun roams, the air flows through the truth, the entire world is situated on the truth.
दाने तपसि शौर्ये च विज्ञाने विनये नये। विस्मये न हि कर्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा ॥
दान में , तप में बल में विशेष ज्ञान में नम्रता में और नीति में आश्चर्य नहीं करना चाहिए। निश्चय ही पृथ्वी अनेक रत्नों वाली हैं।
In charity, in tenacity, in force ,in science , in humility, in the policy, should not be surprised, because of course the earth is with lots of gems.
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥
यह हमारा,यह दूसरे का , ऐसा खुद्र बुद्धि वाले ही सोचा करते हैं। विशाल ह्रदय वालों के लिये पूरा संसार ही अपना है -कौइ पराया नहीं है।
This is ours, this is that of others, only those with a pure intellect think this. The whole world is it is own for the big-hearted - it is not alien.
आपस्तु मित्रं जानीयाद्युद्धे शूरं धने शुचिम्। भार्या क्षिणेषु वित्तेषु व्यसनेषु च बान्धवान् ॥
विपत्ति में मित्र, युद्ध में वीर, धन से ईमानदार और निर्धनता से स्त्री तथा आपत्ति के समय बन्धु की परीक्षा करनी चाहिये।
A friend in adversity, in valor, certified by wealth, and by poverty, the student's examiner at the time.
धनधान्येप्रयोगेषु विद्यायाः संग्रहेषु च। आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् ॥
धन और धान्य के प्रयोग में, विद्या के संग्रह में, और भोजन में और व्यवहार में संकोच को छोड़ने वाला सुखी होता है।
The accumulation of knowledge, the person who is willing to use the money and the grain to gather knowledge and leave the suspicion in food and behavior is happy.
शैले शैले न माणिक्यं, मौक्तिकं न गजे गजे। साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने वने ॥
हर पहाड़ में माणिक नहीं मिलते हैं, हर हाथी के मस्तक में मोती नहीं प्राप्त होता सजन हर जगह विद्यमान नहीं और चन्दन का पेड़ हर वन में पाया नहीं जाता।
Ruby is not found in every mountain, the pearl is not found in every elephant's forehead, the prostration is not present everywhere and the sandal tree is not found in every forest.
हर्तृ र्न गोचरं याति दत्ता भवति विस्तृता। कल्पान्तेऽपि न या नश्येत् किमन्यद्विद्यया विना ॥
जो चोरों को नजर नहीं आती, देने से जिसका विस्तार होता है, प्रलय काल में भी जिसका विनाश नहीं होता, वह विद्या के अलावा कौन सा धन हो सकता है ?
Which is invisible to thieves, which expands by giving, which does not get destroyed even in the holocaust, what other wealth can it be than knowledge?
माता शत्रुः पिता वैरी येन बालों ने पाठितः ।। न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा ॥
जो माता-पिता अपने बच्चों को नहीं पढ़ाते हैं, वह माता शत्रु के समान है और पिता बैरी है, ऐसा मनुष्य विद्वानों की सभा में शोभा नहीं देता जैसे हँसों के बीच बगुला
Those parents who do not teach their children, the mother is like an enemy and the father is an enemy;
नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥
अर्थार्थ आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है।
Meaning, neither weapons can cut the soul, nor fire can burn it. Neither water can wet it, nor wind can dry it.
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः। कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ॥
काम क्रोध और लोभ-ये तीन प्रकारके नरक के दरवाजे जीवात्मा का पतन करनेवाले हैं। इसलिये मनुष्य को शांति पूर्वक जीवन जीने के लिए इन तीनों का त्याग कर देना चाहिये।
Lust, anger and greed - these three types of doors of hell are the downfall of the soul. That's why man should give up these three to live a peaceful life.
अष्टौ गुणाः पुरुषं दीपयन्ति प्रज्ञा च कौल्यं च दमः श्रुतं च।
पराक्रमश्चाबहुभाषिता च दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च ॥बुद्धि, उच्च कुल, इंद्रियों पर काबू, शास्त्रज्ञान, पराक्रम, कम बोलना, यथाशक्ति दान देना तथा कृतज्ञता – ये आठ गुण मनुष्य की ख्याति बढ़ाते हैं ।
Wisdom, high family, control over senses, knowledge of scriptures, bravery, speaking less, giving charity and gratitude - these eight qualities increase the fame of a man.
सुदुर्बलं नावजानाति कञ्चित् युक्तो रिपुं सेवते बुद्धिपूर्वम् ।
न विग्रहं रोचयते बलस्थैः काले च यो विक्रमते स धीरः ॥जो किसी कमजोर का अपमान नहीं करता, हमेशा सावधान रहकर बुद्धि-विवेक द्वारा शत्रुओं से निबटता है, बलवानों के साथ जबरन नहीं भिड़ता तथा उचित समय पर शौर्य दिखाता है, वही सच्चा वीर है ।
The one who does not insult the weak, always deals with enemies with wisdom and discretion, does not fight forcibly with the strong and shows bravery at the right time, he is a true hero.
प्राप्यापदं न व्यथते कदाचि- दुद्योगमन्विच्छति चाप्रमत्तः।
दुःखं च काले सहते महात्मा धुरन्धरस्तस्य जिताः सप्तनाः ॥जो व्यक्ति मुसीबत के समय भी कभी विचलित नहीं होता, बल्कि सावधानी से अपने काम में लगा रहता है, विपरीत समय में दुःखों को हँसते-हँसते सह जाता है, उसके सामने शत्रु टिक ही नहीं सकते; वे तूफान में तिनकों के समान उड़कर छितरा जाते हैं ।
The person who never gets distracted even in times of trouble, but carefully engages in his work, tolerates sorrows in adverse times with a smile, enemies cannot stand in front of him; They get scattered like straws in a storm.
अनर्थकं विप्रवासं गृहेभ्यः पापैः सन्धि परदाराभिमर्शम् । दम्भं स्तैन्य पैशुन्यं मद्यपानं न सेवते यश्च सुखी सदैव ॥
जो व्यक्ति अकारण घर के बाहर नहीं रहता ,बुरे लोगों की सोहबत से बचता है ,परस्त्री से संबध नहीं रखता ;चोरी ,चुगली ,पाखंड और नशा नहीं करता -वह सदा सुखी रहता है ।
The person who does not stay outside the house unnecessarily, avoids the company of bad people, does not keep relations with other women, does not steal, backbite, hypocrisy and intoxication - he always remains happy.
न संरम्भेणारभते त्रिवर्गमाकारितः शंसति तत्त्वमेव । न मित्रार्थरोचयते विवादं नापुजितः कुप्यति चाप्यमूढः ॥
जो जल्दबाजी में धर्म ,अर्थ तथा काम का प्रारंभ नहीं करता ,पूछने पर सत्य ही उद् घाटित करता है, मित्र के कहने पर विवाद से बचता है ,अनादर होने पर भी दुःखी नहीं होता। वही सच्चा ज्ञानवान व्यक्ति है ।
The one who does not start religion, meaning and work in haste, reveals the truth when asked, avoids controversy when asked by a friend, does not feel sad even if he is disrespected. He is the real knowledgeable person.
न योऽभ्यसुयत्यनुकम्पते च न दुर्बलः प्रातिभाव्यं करोति ।
नात्याह किञ्चित् क्षमते विवादं सर्वत्र तादृग् लभते प्रशांसाम् ॥जो व्यक्ति किसी की बुराई नही करता ,सब पर दया करता है ,दुर्बल का भी विरोध नही करता ,बढ-चढकर नही बोलता ,विवाद को सह लेता है ,वह संसार मे कीर्ति पाता है ।
The person who does not harm anyone, shows kindness to everyone, does not oppose even the weak, does not speak excessively, tolerates disputes, he gets fame in the world.
यो नोद्धतं कुरुते जातु वेषं न पौरुषेणापि विकत्थतेऽन्त्यान्। न मूर्च्छितः कटुकान्याह किञ्चित् प्रियंसदा तं कुरुते जनो हि ॥
जो व्यक्ति शैतानों जैसा वेश नहीं बनाता ,वीर होने पर भी अपनी वीरता की बड़ाई नही करता ,क्रोध् से विचलित होने पर भी कड़वा नहीं बोलता ,उससे सभी प्रेम करते हैं ।
The person who does not dress like devils, does not brag about his bravery even when he is brave, does not speak bitterly even when distracted by anger, everyone loves him.
क्षमावशीकृतिर्लोके क्षमया किं न साध्यते । शान्तिखडगः करे यस्य किं करिष्यति दुर्जनः॥
संसार में क्षमा वशीकरण है। क्षमा के द्वारा क्या सिद्ध नही होता है ? जिसके हाथ में शान्ति रूपी तलवार है, दुष्ट उसका क्या कर सकता है।
Everything Can be proven by forgiveness . The man, who has a pardoned sword can not spoil anything. therefore, forgiveness is in the world.
यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं। लोचनाभ्याम विहीनस्य, दर्पण:किं करिष्यति ॥
जिस मनुष्य के पास स्वयं का(प्रज्ञा) विवेक नहीं है, उसके शास्त्र किस काम के, जैसे नेत्रविहीन व्यक्ति के लिए दर्पण व्यर्थ है।
Of what use are the scriptures to a man who does not have his own (prudence) discretion, just as a mirror is useless to a person without eyes.
नमन्ति फलिता वृक्षाः, नमन्ति विबुधा नराः। शुष्कं काष्ठं च मूर्खश्च, न नमस्ति तृटन्ति च ॥
फले हुए वृक्ष नमते हैं, विद्वान मनुष्य नमते हैं, लेकिन सूखा काठ और मूर्ख मनुष्य कभी नहीं नमते, पर टूट जाते हैं।
Fallen trees are moist, learned humans are moist, but dry wood and foolish humans never moist, but they break.
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को प्रणाम ।
Guru is Brahma, Guru is Vishnu, Guru is Shankar; The Guru is the real Parabrahma; Greetings to that Sadguru.
या देवी सर्वभूतेशु, शक्तिरूपेण संस्थिता । नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नम: ॥
देवी सभी जगह व्याप्त है जिसमे सम्पूर्ण जगत की शक्ति निहित है ऐसी माँ भगवती को मेरा प्रणाम, मेरा प्रणाम, मेरा प्रणाम ।
Goddess pervades everywhere, in whom lies the power of the whole world, my salutations, my salutations, my salutations to such Mother Bhagwati.
सुखार्थिनः कुतोविद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम् । सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् ॥
जिसे सुख की अभिलाषा हो (कष्ट उठाना न हो) उसे विद्या कहाँ से ? और विद्यार्थी को सुख कहाँ से ? सुख की ईच्छा रखनेवाले को विद्या की आशा छोडनी चाहिए, और विद्यार्थी को सुख की ।
The one who desires happiness (does not have to suffer), from where does he get knowledge? And where is the happiness for the student? One who desires happiness should give up the hope of education, and the student should give up hope of happiness.
हस्तस्य भूषणम दानम, सत्यं कंठस्य भूषणं। श्रोतस्य भूषणं शास्त्रम,भूषनै:किं प्रयोजनम ॥
हाथ का आभूषण (गहना) दान है, गले का आभूषण सत्य है, कान की शोभा शास्त्र सुनने से है, अन्य आभूषणों की क्या आवश्यकता है।
The ornament of the hand is charity, the ornament of the neck is truth, the beauty of the ear is by listening to the scriptures, what is the need of other ornaments.
यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं। लोचनाभ्याम विहीनस्य, दर्पण:किं करिष्यति ॥
जिस मनुष्य के पास स्वयं का(प्रज्ञा) विवेक नहीं है, उसके शास्त्र किस काम के, जैसे नेत्रविहीन व्यक्ति के लिए दर्पण व्यर्थ है।
Of what use are the scriptures to a man who does not have his own (prudence) discretion, just as a mirror is useless to a person without eyes.
विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् । पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥
विद्या विनय (विनम्रता) देती है, विनय से पात्रता (योग्यता) आती है, पात्रता से धन आता है, धन से धर्म होता है, और धर्म से सुख प्राप्त होता है
Vidya gives Vinay (humility), from Vinay comes Eligibility (merit), from Eligibility comes wealth, from wealth comes Dharma, and from Dharma comes happiness.
सर्वद्रव्येषु विद्यैव द्रव्यमाहुरनुत्तमम् । अहार्यत्वादनध्यत्वादक्षयत्वाच्च सर्वदा ॥
सब धनों में विद्यारुपी धन सर्वोत्तम है, क्योंकि इसे न तो छीना जा सकता है और न यह चोरी की जा सकती है|इसकी कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती है और उसका न इसका कभी नाश होता है।
The wealth of learning is the best of all wealth, because it can neither be taken away nor stolen. It cannot be valued and it can never be destroyed.
अपूर्वः कोऽपि कोशोड्यं विद्यते तव भारति । व्ययतो वृद्धि मायाति क्षयमायाति सञ्चयात् ॥
हे सरस्वती ! तेरा खज़ाना सचमुच अदुभत है; जो खर्च करने से बढ़ता है, और जमा करने से कम होता है।
Hey Saraswati! Your treasure is indeed wonderful; that increases by spending, and decreases by accumulating.
ज्ञानवानेन सुखवान् ज्ञानवानेव जीवति । ज्ञानवानेव बलवान् तस्मात् ज्ञानमयो भव ॥
ज्ञानी व्यक्ति हीं सुखी है, और ज्ञानी हीं सही अर्थों में जीता है. जो ज्ञानी है वही बलवान है, इसलिए तू ज्ञानी बन।
Only a knowledgeable person is happy, and only a knowledgeable person lives in true sense. The one who is knowledgeable is strong, so you become wise.
कर्मणये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन । मां कर्मफलहेतुर्भू: मांते संङगोस्त्वकर्मणि ॥
आपको सिर्फ कर्म करने का अधिकार है, लेकिन कर्म का फल देने का अधिकार भगवान् का है, कर्म फल की इच्छा से कभी काम मत करो। और न ही आपकी कर्म न करने की प्रवर्ती होनी चाहिए।
You only have the right to do work, but God has the right to give the result of your work, never work with the desire of the result of your work. Nor should your action be prone to non-action.
क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः। स्मृतिभ्रंशाद्भुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ॥
क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही नाश कर बैठता है।
Man's mind is killed by anger, that is, it becomes stupid, due to which the memory gets confused. A person's intelligence is destroyed due to memory-confusion and when the intelligence is destroyed, a person destroys himself.
आरोग्यमानृण्यमविप्रवासः सद्भिर्मनुष्यैस्सह संप्रयोगः ।
स्वप्रत्यया वृत्तिरभीतवासः षट् जीवलोकस्य सुखानि राजन् ॥स्वस्थ रहना, उऋण रहना, परदेश में न रहना, सज्जनों के साथ मेल-जोल, स्वव्यवसाय द्वारा आजीविका चलाना तथा भययुक्त जीवनयापन – ये छह बातें सांसारिक सुख प्रदान करती हैं ।
Staying healthy, staying in debt, not living in foreign countries, socializing with gentlemen, earning a livelihood by self-business and living a fearless life – these six things provide worldly happiness.
ईर्ष्यी घृणी न संतुष्टः क्रोधनो नित्यशङ्कितः। परभाग्योपजीवी च षडेते नित्यदुःखिताः ॥
ईर्ष्यालु, घृणा करने वाला, असंतोषी, क्रोधी, सदा संदेह करने वाला तथा दूसरों के भाग्य पर जीवन बिताने वाला- ये छह तरह के लोग संसार में सदा दुःखी रहते हैं ।
Envious, hating, discontented, wrathful, always doubting and depending on the fate of others - these six types of people are always unhappy in the world.