भर्तृहरि संस्कृत के लोकप्रिय कवियों में से एक हैं। संस्कृत साहित्य में उनकी तीन कृतियाँ—'नीति-शतक', 'शृंगार-शतक' एवं 'वैराग्य-शतक' प्रसिद्ध हैं। यद्यपि कवि के रूप में भर्तृहरि का कृतित्व इन तीन शतकों तक ही सीमित है, किंतु गुणात्मक दृष्टि से उसे कवित्व व काव्यकला की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि माना जा सकता है।
दिक्कालाद्यनवविच्छिन्नानन्तचिन्मात्रमूर्तये।
स्वानुभूत्येकमानाय नमः शान्ताय तेजसे ।। 1।दिशा (पूर्वपश्चिमादि) और काल (वर्तमान, भूत, भविष्यादि) से अनवच्छिन्न अर्थात् परमित न किये गये, अनन्त, चैतन्यस्वरूप, स्वानचभूत्यैकगम्य ज्योतिः स्वरूप ब्रह्म को नमस्कार है।।
Salutations to Brahma who is undivided from direction (east, past, etc.) and time (present, past, future, etc.), i.e., not limited, eternal, conscious, self-contained, in the form of light.
यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता, साऽप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्यसक्तः।
अस्मत्कृते च परितप्यति काचिदन्या, धिक् तां च तं च मदनं च इमां च मां च।।2।।जिस स्त्री का मैं अहो-रात्र चिन्तन करता हूँ, वह मुझसे विमुख है। वह भी दूसरे पुरुष को चाहती है। उसका अभीष्ट वह पुरुष भी किसी अन्य स्त्री पर आसक्त है तथा मुझ पर कोई अन्य स्त्री अनुरक्त है। अतः उस स्त्री को , उस पुरुष को, कामदेव को, मुझ पर अनुरक्त स्त्री को, तथा मुझे धिक्कार है।
The woman I think about day and night is averse to me. She too loves another man. The man she desires is also infatuated with another woman and another woman is infatuated with me. So shame on that woman, that man, Kaamdev, the woman infatuated with me, and me.
अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः।
ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्माऽपि तं नरं न रञ्जयति।।3।।अज्ञ अर्थात् मुर्ख मनुष्य को सरलता से मनाया जा सकता है। विशेषज्ञ अर्थात् बहुत कुछ जानने वाले को भी प्रसन्न किया जा सकता है या सरलता से मनाया जा सकता है। परन्तु अल्पज्ञ अर्थात् थोडा सा ज्ञान पाकर अपने आपको निपुण समझने वाले व्यक्ति को भगवान ब्रह्मा जी भी प्रसन्न नहीं कर सकते हैं।
An ignorant person, that is, a fool, can be easily convinced. An expert, that is, a person who knows a lot, can also be pleased or convinced easily. But a person who is ignorant, that is, a person who considers himself proficient after getting a little knowledge, cannot be pleased even by Lord Brahma.
प्रसह्य मणिमुद्धरेन्मकरवक्त्रदंष्ट्राङ्कुरात्,
समुद्रमपि संतरेत् प्रचलदूर्मिमालाऽऽकुलम्।
भुजङ्गमपि कोपितं शिरसि पुष्पवद् धारयेन्,
न तु प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तमाराधयेत्।।4।।मनुष्य सहास करके मगरमच्छ के मुंह के अन्दर (दाड़ के अग्रभाग) से मणि निकाल सकता है और चाहे तो समुद्र की उत्तुंग लहरों को भी पार कर सकता है तथा अगर चाहे तो क्रोधित सर्प को भी पुष्पमाला की तरह अपने सिर पर धारण कर सकता है, परन्तु जिद्दी मूर्ख मनुष्य के चित्त को कभी भी शान्त या सन्तुष्ट नहीं कर सकता है।
A man can, by daring, take out a gem from the mouth of a crocodile (from the front part of its molars) and if he wants, he can even cross the high waves of the ocean and if he wants, he can even wear an angry serpent on his head like a garland of flowers, but a stubborn and foolish man's mind can never be pacified or satisfied.
लभेत सिकतासु तैलमपि यत्नतः पीडयन्, पिबेच्च मृगतृष्णिकासु सलिलं पिपासार्दितः।
कदाचिदपि पर्यटञ्छशविषाणमासादयेत्, न तु प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तमाराधयेत्।।5।।मनुष्य परिश्रम से कदाचित रेत या बालू से भी तेल निकाल सकता है। अत्यधिक प्यास होने पर मृगमरीचिका से भी चल प्राप्त करके पी सकता है तथा घूमते घूमते खरगोश के सींग भी प्राप्त कर सकता है परन्तु हठ युक्त मूर्ख मनुष्य के चित्त को खुश नहीं कर सकता है।
With hard work, man can perhaps extract oil from sand. If he is very thirsty, he can drink water by moving through a mirage and can also get the horns of a rabbit while roaming around, but a stubborn fool cannot make the mind of a man happy.
व्यालं बालमृणालतन्तुभिरसौ रोद्धुं समुज्जृम्भते, छेत्तुं वज्रमणिं शिरीषकुसुमप्रान्तेन सन्नह्यते।
माधुर्यं मधुबिन्दुना रचयितुं क्षाराम्बुधेरीहते, नेतुं वाञ्छति यः खलान्पथि सतां सूक्तैः सुधास्यन्दिभिः।।6।।जो मनुष्य सरस और मधुर सरल सूक्तियों से दुष्ट मनुष्यों को सन्मार्ग पर लाना चाहता है, वह कोमल कमलनाल के तन्तुओं से पागल हाथी को बांधने की चेष्टा के तुल्य है तथा मानो वह शिरीषपुष्प के अग्रभाग से हीरे को काटना का प्रयास कर रहा हो और वह समुद्र के खारे पानी को शहद की एक बूंंद से मीठा बनाना चाहता हो। अर्थात् अल्पज्ञ मूर्ख व्यक्ति को किसी भी दशा में नहीं समझाया जा सकता है।
A person who tries to bring wicked people on the right path with sweet and simple sayings is like trying to tie a mad elephant with the fibres of a soft lotus stem and as if he is trying to cut a diamond from the top of a Shirish flower and he wants to make the salty water of the sea sweet with a drop of honey. That is, a foolish person with little knowledge cannot be explained under any circumstances.
व्यालं बालमृणालतन्तुभिरसौ रोद्धुं समुज्जृम्भते, छेत्तुं वज्रमणिं शिरीषकुसुमप्रान्तेन सन्नह्यते।
माधुर्यं मधुबिन्दुना रचयितुं क्षाराम्बुधेरीहते, नेतुं वाञ्छति यः खलान्पथि सतां सूक्तैः सुधास्यन्दिभिः।।6।।जो मनुष्य सरस और मधुर सरल सूक्तियों से दुष्ट मनुष्यों को सन्मार्ग पर लाना चाहता है, वह कोमल कमलनाल के तन्तुओं से पागल हाथी को बांधने की चेष्टा के तुल्य है तथा मानो वह शिरीषपुष्प के अग्रभाग से हीरे को काटना का प्रयास कर रहा हो और वह समुद्र के खारे पानी को शहद की एक बूंंद से मीठा बनाना चाहता हो। अर्थात् अल्पज्ञ मूर्ख व्यक्ति को किसी भी दशा में नहीं समझाया जा सकता है।
A person who tries to bring wicked people on the right path with sweet and simple sayings is like trying to tie a mad elephant with the fibres of a soft lotus stem and as if he is trying to cut a diamond from the top of a Shirish flower and he wants to make the salty water of the sea sweet with a drop of honey. That is, a foolish person with little knowledge cannot be explained under any circumstances.
स्वायत्तमेकान्तगुणं विधात्रा विनिर्मितं छादनमज्ञातायाः।
विशेषतः सर्वविदां समाजे विभूषणं मौनमपण्डितानाम्।।7।।विधाता ने अज्ञानी मूर्ख मनुष्यों के लिए विद्वानों की सभा में सुशोभित रहने के लिए अज्ञान आवरक तथा अपने अधीन रहने वाला मौन को उत्तम गुण माना है।
The Creator has considered silence, which covers up ignorance and remains under one's control, as the best virtue for ignorant and foolish people to look good in the assembly of learned people.
यदा किञ्चिज्ज्ञोऽहं गज इव मदान्धः समभवं तदा सर्वज्ञोऽस्मीत्यभवदवलिप्तं मम मनः।
यदा किञ्चित्किञ्चिद् बुधजनसकाशादवगतं तदा मूर्खोऽस्मीति ज्वर इव मदो मे व्यपगतः।।8।।जब मैं अल्पज्ञ या अज्ञानी था तब हाथी के मद की तरह अभिमान से अन्धा था और खुद को सर्वज्ञ समझता था परन्तु जब मैं विद्वान लोगों के संसर्ग में आया तब मेरा वह गर्व ज्वर की भांति उतर गया और मुझे भासित होने लगा कि मैं मूर्ख हूँ।
When I was ignorant or uneducated, I was blinded by pride like the pride of an elephant and considered myself to be omniscient, but when I came in contact with learned people, my pride went away like a fever and I started realizing that I am a fool.
कृमिकुलचितं लालाक्लिन्नं विगर्हि जुगुप्सितं निरुपमरसं प्रीत्या खादन्नरास्थि निरामिषम्।
सुरपतिमपि श्वा पार्श्वस्थं विलोक्य न शङ्कते न हि गणयति क्षुद्रो जन्तुः परिग्रहल्गुताम्।।9।।कुत्ता कृमि अर्थात् कीड़ो से भरी हुई, लार युक्त, दुर्गन्धयुक्त, निन्दित, घृणाजनित, एवं मांस रहित मनुष्य की हड्डी को आराम से चूसता रहता है और भगवान इन्द्र से भी लज्जित नहीं होता, ठीक है क्षुद्र प्राणी अपनाई हुई वस्तु की निःसारता नहीं समझता है।
A dog comfortably sucks the human bone which is full of worms, saliva, stinking, condemned, disgusting and without flesh and does not feel ashamed even in front of Lord Indra. It is true that such a lowly creature does not understand the worthlessness of the thing it has adopted.
शिरः शार्वं स्वर्गात् पतति शिरस्तत् क्षितिधरं महीध्रादुत्तुङ्गादवनिमवनेश्चापि जलधिम्।
अधोऽधो गङ्गेयं पदमुपगता स्तोकमथवा विवेकभ्रष्टानां भवति विनिपातः शतमुखः।।10।।जिस प्रकार गंगा स्वर्ग से भगवान शिवशंकर के सिर पर गिरती है, वहाँ से हिमालय के शिखर पर और उन हिमशिखर पर्वत से पृथ्वी पर तथा पृथ्वी से समुद्र में गिरती है। अर्थात् धीरे-धीरे अधोपतन होता है, ठीक उसी तरह विवेक से भ्रष्ट लोगों का पतन होता है।
Just as the Ganges falls from heaven on the head of Lord Shiva, from there it falls on the peak of the Himalayas, from those snow-capped mountains it falls on the earth and from the earth it falls into the ocean. That is, there is a gradual degradation, in the same way people who have lost their wisdom also fall.
शक्यो वारयितुं जलेन हुतभुक् छत्त्रेण सूर्यातपो नागेन्द्रो निशिताङ्कुशेन समदौ दण्डेन गोगर्दभौ।
व्याधिर्भेषजसंग्रैश्च विविधैर्मन्त्रप्रयोगैर्विषं सर्वस्यौषधमस्ति शास्त्रविहितं मूर्खस्य नास्त्यौषधम्।।11।।अग्नि जल से शान्त होती है, सूर्य की धूप छाते से, मतवाला हाथी को तीक्ष्ण अंकुश से वश में किया जा सकता है, बैल और गधे को दण्डे से सही रास्ता दिखाया जा सकता है, बिमारी का निदान औषधियों से और विष का उपशमन अनेक मन्त्रों के प्रयोगों से शान्त किया जा सकता है। अर्थात् शास्त्रों में सब प्रकार की औषधि है परन्तु मुर्ख मनुष्य के लिए कोई औषधि नहीं है।
Fire can be extinguished by water, Sun's rays can be controlled by an umbrella, a drunk elephant can be controlled by a sharp hook, a bull or a donkey can be shown the right path by a stick, a disease can be cured by medicines and poison can be cured by the use of many mantras. That is, there are all kinds of medicines in the scriptures but there is no medicine for a foolish person.
साहित्य सङ्गीतकलाविहीनः साक्षातः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः।
तृणं न खादन्नपि जीवमान- स्तद्भागधेयं परमं पशूनाम्।।12।।साहित्य, संगीत और कला से अनभिज्ञ या अनजान मनुष्य विना सींग और विना पुच्छ का प्रत्यक्ष पशु है, जो घास या तृण न खाकर भी जीवित रह रहा है। यह पशुओं का परम सौभाग्य है।
Unaware or unaware of literature, music and art, man is a direct animal without horns and tail, who is surviving even without eating grass or weeds. This is the ultimate fortune of animals.
येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं गुणो न धर्मः।
ते मृर्त्युलोके भुविभारभूता मनुष्यरुपेण मृगाश्चरन्ति।।13।।जिस मनुष्य के पास न विद्या है, न तप है, न दान है, न ज्ञान है, न सदाचार है और न ही धर्म है, वे मनुष्य इस धरती पर भार के समान हैं अर्थात् निरर्थक जीवन जी रहे हैं और मनुष्य के भेष में वे पशु के समान विचरण कर रहे हैं।
Those people who have no education, no penance, no charity, no wisdom, no moral conduct and no religion, are like a burden on this earth i.e. they are living a meaningless life and are roaming like animals in the guise of humans.
वरं पर्वतदुर्गेषु भ्रान्तं वनचरैः सह।
न मूर्खजनसम्पर्कः सुरेन्द्रभवनेष्वपि।पर्वतों और दुर्गम मार्ग पर चलने वाले वनवासियों के साथ रहना या भ्रमण करनाअच्छा है किन्तु मुर्ख लोगों के साथ आरामदायक इन्द्र के महलों में रहना अच्छा नहीं है।
It is good to live or travel with forest dwellers in the mountains and on difficult paths but it is not good to live in the comfortable palaces of Indra with foolish people.
शास्त्रोपस्कृतशब्दसुन्दरगिरः शिष्यप्रदेयाऽऽगमा विख्याताः
कवयो वसन्ति विषये यस्य प्रभोर्निर्धनाः।
तज्जाड्यं वसुधाधिपस्य कवयो ह्यर्थं विनापीश्वाराः
कुत्स्याः स्युः कुपरीक्षका हि मणयो यैरर्घतः पातिताः।।15।।शास्त्रों के द्वारा सुसज्जित किये हुए शब्दों से सुन्दर वाणी वाले तथा अपने शिष्यों को शास्त्र की अच्छी शिक्षा देने वाले कवि लोग जिस राजा के राज्य में निर्धन होकर रहते हैं, उस राजा की वह मूर्खता है। विद्वान कवि तो धन के विना ही पूजनीय है, क्योंकि वह पारखी ही निन्दनीय है जिन कुपरीक्षकों ने मणि के मूल्य को गिराया है।
It is the foolishness of the king in whose kingdom the poets, who have beautiful voices decorated with the words of the scriptures and who give good teachings of the scriptures to their disciples, live in poverty. The learned poet is worshipable even without wealth, because the connoisseur is condemnable, those bad examiners who have lowered the value of the gem.
हर्तुर्याति न गोचरं किमपि शं पुष्णाति यत्सर्वदा- ऽप्यर्थिभ्यः
प्रतिपाद्यमानमनिशं प्राप्नोति वृद्धिं पराम्। कल्पान्तेष्वपि
न प्रयाति निधनं विद्याख्यमन्तर्धनं येषां
तान्प्रति मानमुज्झत नृपाः! कस्तैः सह स्पर्धते।।16।।जो विद्या धन चोर के द्वारा नहीं चुराया जा सकता है, जो सर्वदा अनिर्वचनीय आनन्द प्रदान करता है और जो याचक को दिये जाने पर नित्य बढता रहता है तथा जो प्रलयकाल में भी नष्ट नहीं होता है, वह विद्यारूपी गुप्त धन जिसके पास है, हे राजाओं उनके प्रति अपना अहंकार दिखाना छोड़ दो। उनकी समानता संसार में कोई नहीं कर सकता है।
O kings, stop showing your pride towards those who possess the secret wealth of knowledge which cannot be stolen by thieves, which always provides indescribable joy, which keeps on increasing when given to a beggar, and which does not get destroyed even during the time of doomsday. No one in the world can equal them.
अधिगतपरमार्थान् पण्डितान् माऽवमंस्था-
स्तृणमिव लघु लक्ष्मीर्नैव तान् संरुणद्धि।
अभिनवमदरेखाश्यामगण्डस्थलानां
न भवति विसतन्तुर्वारणं वारणानाम्।।17।।जिनको तत्त्व का वास्तविक ज्ञान हो गया है ऐसे पण्डित लोगों का अपमान मत करो। तुच्छ तृण की भाँति लक्ष्मी उन्हें अपने वश में नहीं कर सकती है। कोमल कमलनाल के सूत्र भी नवीन मदमस्त गण्डस्थल मदान्ध हाथियों को नहीं बांध सकते हैं।
Do not insult learned people who have attained the true knowledge of the truth. Lakshmi cannot control them like a mere blade of grass. Even the strings of a soft lotus stalk cannot bind the newly intoxicated elephants with intoxicated foreheads.
अम्भोजिनीवननिवास विलासमेव हंसस्य हन्ति
नितरां कुपितो विधाता। न त्वस्य दुग्धजलभेदविधौ प्रसिद्धां
वैदग्ध्यकीर्तिमपहर्तुमसौ समर्थः।।18।।अत्यन्त क्रोधित होकर विधाता भी अधिक से अधिक हंसो के कमलिनी के वन को नष्ट कर सकता है, परन्तु जो हंस का गुण है दूध और पानी को अलग करने का वह विधाता भगवान बह्मा भी नहीं नष्ट कर सकता है।
At the most even the Creator, in a very angry mood, can destroy the forest of the lotus-like swans, but the quality of the swans to separate milk and water, cannot be destroyed even by the Creator, Lord Brahma.
केयूराणि न भूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वला
न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालङ्कृता मूर्द्धाजाः।
वाण्येका समलङ्करोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते
क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम्।।19।।मनुष्य की शोभा न तो आभूषणों से होती है और न ही चन्द्रमा के तुल्य हार से, न स्नानं, न चन्दनादि का लेप लगाने से तथा न ही बालों को सज्जाने और संवारने से। केवल एक मात्र संस्कार युक्त वाणी को बोलने से मनुष्य की शोभा बढती है। समय के साथ- साथ सभी आभूषण नष्ट हो जायेंगे परन्तु वाणी आभूषण एक ऐसा आभूषण है जो सर्वदा रहने वाला है।
A person's beauty is neither enhanced by ornaments nor by a necklace like the moon, nor by bathing, nor by applying sandalwood paste, nor by dressing and grooming the hair. A person's beauty is enhanced only by speaking in cultured words. With time all ornaments will be destroyed but the ornament of speech is one such ornament which will remain forever.
विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनं
विद्या भोगकरी यशःसुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतं
विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः।।20।।विद्या ही मनुष्य की का सर्वश्रेष्ठ स्वरुप और अत्यंत गुप्त धन है। विद्या भोग पदार्थ देने वाली तथा यश और सुख प्रदान करने वाली है। यह गुरुओं की भी गुरु है। विद्या विदेश में भी बन्धुजन का काम करती है। विद्या परम भूततत्त्व है। राजा लोग भी विद्या की ही पूजा करते हैं, धन की नहीं, इसी कारण विद्या से हीन मनुष्य को पशु के समान माना है।
Education is the best form of a man's life and the most secret wealth. Education gives material things and fame and happiness. It is the teacher of the teachers. Education helps in making friends even in foreign lands. Education is the ultimate material element. Even kings worship education and not wealth, that is why a man devoid of education is considered to be like an animal.
क्षान्तिश्चेत्कवचेन किं किमरिभिः क्रोधोऽस्ति
चेद्देहिनां ज्ञातिश्चेदनलेन किं यदि सुहृद् दिव्यौषधैः किं फलम्।
किं सर्पैः यदिदुर्जनाः किमु धनैः विद्याऽनवधा यदि व्रीडा
चेत्किमु भूषणैः सुकविता यद्यस्ति राज्येन किम्।।21।।मनुष्यों में यदि क्षमा है, तो कवच की क्या आवश्यकता है और यदि क्रोध है तो शत्रुओं की क्या आवश्यकता है, बन्धुजन है तो अग्नि की क्या आवश्यकता है। यदि मित्र है तो दिव्यौषधियों की क्या आवश्यकता है, दुर्जन है तो सर्पों की क्या आवश्यकता है, निर्दोष विद्या है तो धन की क्या आवश्यकता है लज्जा है तो आभूषणों का क्या काम है और यदि सुन्दर कविता लेखन क्षमता हो तो राज्य से क्या प्रयोजन।
If there is forgiveness in humans, then what is the need of armor and if there is anger then what is the need of enemies, if there are friends then what is the need of fire. If there are friends then what is the need of divine medicines, if there are evil people then what is the need of snakes, if there is flawless knowledge then what is the need of wealth, if there is modesty then what is the use of ornaments and if there is the ability to write beautiful poetry then what is the use of the kingdom.
दाक्षिण्यं स्वजने दया परिजने शाठ्यं सदा दुर्जने प्रीतिः साधुजने नयो नृपजने विद्वज्जने चार्जवम्। शौर्यं शत्रुजने क्षमा गुरुजने नारीजने धूर्तता ये चैवं पुरुषाः कलासु कुशलास्तेष्वेव लोकस्थितिः।।22।।
अपने संगे-सम्बन्धियों के साथ उदारता, परिजनों पर दया, दुर्जनों के साथ दुष्टता, सज्जनों से मित्रता, राजा के साथ नीति, विद्धानों से विनम्रता, शत्रुओं पर पराक्रम, वृद्धों के प्रति क्षमा, स्त्रियों के साथ चातुर्य, जो मनुष्य इस प्रकार की कलाओं में निपुण होता है, उन्हीं पर यह संसार स्थिर है।
Generosity towards one's friends, kindness towards one's family, wickedness towards the wicked, friendship with the gentlemen, policy towards the king, politeness towards the learned, bravery against enemies, forgiveness towards the elderly, cleverness with women, the man who is skilled in these kinds of arts, this world is based on them.
जाड्यं धियो हरति सिञ्चति वाचि सत्यं
मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति। चेतः प्रसादयति
दिक्षु तनोति कीर्ति सत्सङ्गतिः कथय किं न करोति पुंसाम्।।23।।सत्सङ्गति मनुष्यों के लिए क्या नहीं करती? सत्सङ्गति मनुष्यों के बुद्धि की जडता/ अज्ञानता को दूर करती है। वाणी में सत्य का प्रसार करती है। मान-सम्मान में वृद्धि करती है। पाप को दूर करती है। चित्त को प्रसन्न करती है तथा उसके यश को चारों दिशाओं में प्रसारित करती है।
What does good company not do for human beings? Good company removes the dullness and ignorance of human beings' intellect. It spreads truth in speech. It increases honour and respect. It removes sins. It makes the mind happy and spreads its fame in all four directions.
जयन्ति ते सुकृतिनो रससिद्धाः कवीश्वराः।
नास्ति येषां यशः काये जरामरणजं भयम्।।24।।जिन महाकवियों के यशरुपी शरीर को जरा (वृद्धावस्था) और मरण का भय नहीं रहता है, उन पुण्यात्मा एवं रसनिरुपुण सिद्धहस्त महाकवियों की विजय होती है।
Those great poets whose body of fame is not afraid of old age and death, those virtuous souls and great poets who are adept at the essence of the sentiment are victorious.
सूनुः सच्चरितः सति प्रियतमा स्वामी प्रसादोन्मुखः
स्निग्धं मित्रमवञ्चकः परिजनो निष्क्लेशलेशं मनः।
आकारो रुचिरः स्थिरश्च विभवो विद्यावदातं मुखं
तुष्टे विष्टपहारिणीष्टदहरो सम्प्राप्यते देहिना।।25।।संसार के कष्ट हरने वाले भगवान प्रसन्न होने पर मनुष्य को सदाचारी, पुत्र, पतिव्रता पत्नी, प्रसन्न रहने वाला स्वामी, स्नेहयुक्त मित्र, विश्वासपात्र सेवक, सर्वदा क्लेश रहित चित्त, सुन्दर स्वरुप, स्थायी सम्पति और विद्या के कारण ओजस्वी मुख प्राप्त होतें हैं।
When the Lord who removes the troubles of the world is pleased, a man gets a virtuous son, a faithful wife, a happy husband, a loving friend, a trustworthy servant, a mind free of troubles, a beautiful appearance, permanent wealth and a radiant face due to knowledge.