 
 ज्योतिषीयों की गणना के अनुसार बजरंगबली जी का जन्म चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्र नक्षत्र व मेष लग्न के योग में हुआ था। हनुमानजी के पिता सुमेरू पर्वत के वानरराज राजा केसरी थे और माता अंजनी थी। हनुमान जी को पवन पुत्र के नाम से भी जाना जाता है और उनके पिता वायु देव भी माने जाते है।
॥ दोहा ॥
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि ।
                   बरनऊँ रघुवर विमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥
                  बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरों पवन कुमार ।
                  बल बुद्धि विद्या देऊ मोहि, हरहु कलेश विकार ॥ 
॥ चौपाई ॥
 जय हनुमान ज्ञान गुनसागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर  ।
                 रामदूत अतुलित बलधामा, अंजनि पुत्र पवनसुत नामा  ।
                महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी ।
                कंचन वरन बिराज सुवेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा  ।
                हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै, काँधे मूँज जनेऊ साजै  । 
              शंकर सुवन केसरी नन्दन, तेज प्रताप महा जग वन्दन ।
              विद्यावान गुनी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर ।
              प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया ।
              सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा, विकट रूप धरि लंक जरावा ।
               भीम रूप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे ।
              लाय संजीवन लखन जियाये, श्री रघुबीर हरषि उर लाये ।
              रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई ।
              सहस बदन तुम्हरो जस गावैं, अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ।
               सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा, नारद शारद सहित अहीसा।
              यम कुबेर दिगपाल जहाँ ते, कवि कोबिद कहि सके कहाँ ते । 
              तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा ।
 
              तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना, लंकेश्वर भये सब जग जाना ।
              जुग सहस्र योजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू ।
              प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं, जलधि लांघि गए अचरज नाहीं ।
             दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।
            राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे ।
            सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना ।
             आपन तेज सम्हारो आपै तीनों लोक हाँक तें काँपै । 
            भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महाबीर जब नाम सुनावै।
 
            नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमान बीरा ।
              संकट ते हनुमान छुड़ावै, मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ।
            सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा ।
 
            और मनोरथ जो कोई लावै, सोई अमित जीवन फल पावै ।
 
            चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा ।
             साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे ।
 
            अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस वर दीन जानकी माता ।
            राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा ।
            तुम्हरे भजन राम को भावै, जनम जनम के दुख बिसरावै ।
 
            अन्त काल रघुवर पुर जाई, जहां जन्म हरि भक्त कहाई । 
            और देवता चित्त न धरई, हनुमत सेइ सर्व सुख करई ।
             संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।
 
            जय जय जय हनुमान गोसाँई, कृपा करहु गुरूदेव की नाई । 
            जो शत बार पाठ कर कोई, छूटहिं बंदि महा सुख होई ।
 
            जो यह पढ़े हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा ।
             तुलसी दास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ।
      
॥ दोहा ॥
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप । 
      राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥ 
  बाल समय रवि भक्ष लियो, तब तीनहुँ लोक भयो अँधियारो ।
         ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो । 
        देवन आनि करी विनती तब, छाँडि दियो रवि कष्ट निवारो । 
        को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ को. 1
         बालि की त्रास कपीस बसै, गिरिजात महाप्रभु पंथ निहारो । 
        चौंकि महामुनि शाप दियो, तब चाहिये कौन विचार विचारो । 
        कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के शोक निवारो ॥ को. 2
         अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो ।
         जीवत ना बचिहौं हम सों जु, बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो । 
        हेरि थके तट सिंधु सबै तब, लाय सिया सुधि प्राण उबारो ॥ को. 3 
        रावण त्रास दई सिय को तब, राक्षस सों कहि सोक निवारो ।
       ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो। 
      चाहत सीय असोक सों आगिसु, दे प्रभु मुद्रिका सोक निवारो ॥ को. 4
       बान लग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सुत रावण मारो ।
 
      लै गृह वैद्य सुखेन समेत, तबै गिरि द्रोन सुबीर उपारो ।
 
      आनि संजीवनि हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्राण उबारो ॥ को. 5
 
      रावन युद्ध अजान कियो तब, नाग कि फांस सबै सिर डारो ।
       श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो ।
       आनि खगेश तबै हनुमान जु, बन्धन काटि के त्रास निवारो ॥ को. 6 
      बंधु समेत जबै अहिरावण, लै रघुनाथ पाताल सिधारो ।
       देविहिं पूजि भली विधि सों बलि, देऊ सबै मिलि मंत्र बिचारो ।
 
      जाय सहाय भयो तबही, अहिरावण सैन्य समेत संहारो ॥ को. 7
 
      काज किए बड़ देवन के तुम, वीर महाप्रभु देखि बिचारो। 
 
      कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
 
      बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो ॥ को.8
      
॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर ।
  
       बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर ॥ 
॥ दोहा ॥
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करें सनमान ।
       तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करें हनुमान ॥ 
       जय हनुमान सन्त हितकारी, सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।
       जन के काज विलम्ब न कीजे, आतुर दौरि महासुख दीजे ।
           जैसे कूदि सिन्धु महि पारा, सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।
       आगे जाई लंकिनी रोका, मारेहु लात गई सुर लोका । 
      जाय विभीषण को सुख दीन्हा, सीता निरखि परमपद लीन्हा ।
 
      बाग उजारि सिंधु मँह बोरा, अति आतुर यम कातर तोरा । 
      अक्षय कुमार को मार संहारा, लूम लपेट लंक को जारा।
 
      लाह समान लंक जरि गई, जय जय ध्वनि सुरपुर में भई ।
       अब विलम्ब केहि कारन स्वामी, कृपा करहु उर अन्तर्यामी ।
       जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता, आतुर होय दुःख हरहु निपाता ।
 
      जय गिरधर जय जय सुखसागर, सुर समूह समरथ भटनागर । 
      श्री हनु हनु हनु हनुमंत हठीले, बैरिहिं मारु वज्र को कीले ।
      गदा वज्र लै बैरिहिं मारो, महाराज प्रभु दास उबारो ।
      ओंकार हुँकार प्रभु धावो, बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ।
        ओं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमान कपीशा, ओं हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीशा ।
     सत्य होहु हरि शपथ पाय के, रामदूत धरु मारु धाय के ।
     जय जय जय हनुमन्त अगाधा, दुःख पावत जन केहि अपराधा ।
 
    पूजा जप तप नेम अचारा, नहिं जानत हौं दास तुम्हारा ।
     वन उपवन मग, गिरी गृह माँही, तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ।
 
    पाँय परौ कर जोरि मनावौं, यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।
 
    जय अन्जनि कुमार बलवन्ता, शंकर सुवन वीर हनुमन्ता ।
 
    बदन कराल काल कुल घालक, राम सहाय सदा प्रतिपालक ।
     भूत प्रेत पिशाच निशाचर, अग्नि बैताल काल मारी मर ।
 
    इन्हें मारु तोहि शपथ राम की, राखु नाथ मर्यादा नाम की ।
 
    जनक सुता हरिदास कहावो, ताकी शपथ विलम्ब न लावो ।
     जय जय जय धुनि होत अकाशा, सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा ।
       चरण शरण कर जोरि मनावौं, यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।
 
    उठु उठु चलू तोहि राम दुहाई, पाँय परौं कर जोरि मनाई।
 
    ओं चं चं चं चं चपल चलंता, ओं हनु हुन हुन हनु हनुमन्ता ।
     ओं हं हं हाँक देत कपि चंचल, ओं सं सं सहमि पराने खल दल ।
     अपने जन को तुरत उबारो, सुमिरत होय आनन्द हमारो ।
 
    यह बजरङ्ग बाण जेहि मारे, ताहि कहो फिर कौन उबारे ।
    पाठ करे बजरङ्ग बाण की, हनुमत रक्षा करें प्राण की ।
    यह बजरङ्ग बाण जो जापै, ताते भूत प्रेत सब काँपै ।
    धूप देय अरु जपैं हमेशा, ताके तन नहिं रहै कलेशा ।
             
॥ दोहा ॥
प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान ।
 
        तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करें हनुमान ॥ 
आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।
 
                 जाके बल से गिरवर कांपे, रोग दोष जाके निकट न झांके ।
  
                अंजनी पुत्र महा बलदाई, सन्तन के प्रभु सदा सहाई ।
 
                दे बीड़ा रघुनाथ पठाये, लंका जारि सिया सुधि लाये ।
 
                लंका सो कोट समुद्र सी खाई, जात पवनसुत वार न लाई ।
 
                लंका जारि असुर सब मारे, सीता रामजी के काज संवारे ।
 
                लक्ष्मण मूर्छित पड़े धरणी में, लाये संजीवन प्राण उबारे ।
 
                पैठि पाताल तोरि जम कारे, अहिरावण की भुजा उखारे ।
  
                बाईं भुजा असुर संहारे, दाईं भुजा सब सन्त उबारे  ।
 
                सुर नर मुनि जन आरती उतारें, जय जय जय हनुमान उचारें ।
 
                कंचन थार कपूर की बाती, आरती करत अंजना माई ।
 
                जो हनुमान जी की आरती गावैं, बसि बैकुन्ठ अमर पद पावैं ।
 
                लंक विध्वंस किये रघुराई, तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ।
 
 'ॐ नमो भगवते हनुमते नम:।'
ॐ नमो हनुमते रूद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा ।
ॐ नमो हनुमते आवेशाय आवेशाय स्वाहा।
ॐ महाबलाय वीराय चिरंजिवीन उद्दते. हारिणे वज्र देहाय चोलंग्घितमहाव्यये। नमो हनुमते आवेशाय आवेशाय स्वाहा।
हनुमन्नंजनी सुनो वायुपुत्र महाबल: अकस्मादागतोत्पांत नाशयाशु नमोस्तुते ।
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ।
ॐ हं हनुमते नमः।हनुमान जी को प्रणाम! अतुलनीय शक्ति का निवास, जिसका शरीर सोने के पहाड़ की तरह चमकता है, जो राक्षसों की वन अग्नि है, जो बुद्धिमानों में प्रमुख है, जो भगवान राम के प्रिय भक्त हैं, मैं भगवान हनुमान की पूजा करता हूं। पवन-देवता का पुत्र। वह एक नया व्याकरण विद्वान है; उनका शरीर सोने के पहाड़ की तरह चमकता है; वह सभी जन अनीस की अग्रिम पंक्ति में हैं। वह श्री राम के सबसे प्रिय भक्त हैं।
ॐ आञ्जनेयाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि ।
तन्नो हनुमत् प्रचोदयात् ॐ हं हनुमते नमः ।।ओम, हम अंजनीकुमार और वायुपुत्र का ध्यान करते हैं।भगवान हनुमान हमें जगाते हैं।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।।हे कृपालु, जो हवा में, तेज में, ज्ञान में रहता है। हे वायु सेनापति, हे वन कमांडर, श्री रामदूत, हम सब आपकी दया पर हैं।