Shiv Chalisa - शिव चालीसा

Shiv Chalisa - शिव चालीसा - Shri Shiv Chalisa


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शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है ।शिव या महादेव सनातन संस्कृति में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं । इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि कई नामों से भी जाना जाता है।

Shiv Chalisa In Hindi - Shiv Ji Chalisa - Shiva Chalisa - Shiv Chalisa Lyrics

॥ दोहा ॥

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥

॥ चौपाई ॥

जय गिरजापति दीनदयाला, सदा करत सन्तन प्रतिपाला ।
भाल चन्द्रमा सोहत नीके, कानन कुण्डल नागफनी के ।
अंग गौर शिर गंग बहाये, मुण्डमाल तन छार लगाये ।
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे, छवि को देख नाग मुनि मोहे ।
मैना मातु कि हवे दुलारी, वाम अंग सोहत छवि न्यारी ।
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी, करत सदा शत्रुन क्षयकारी ।
नन्दि गणेश सोहैं तहँ कैसे, सागर मध्य कमल हैं जैसे ।
कार्तिक श्याम और गणराऊ, या छवि को कहि जात न काऊ ।
देवन जबहीं जाय पुकारा, तबहीं दुःख प्रभु आप निवारा ।
किया उपद्रव तारक भारी, देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी |
तुरत पडानन आप पठायउ, लव निमेष महँ मारि गिरायऊ ।
आप जलंधर असुर संहारा, सुयश तुम्हार विदित संसारा ।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई, सबहिं कृपा कर लीन बचाई ।
किया तपहिं भागीरथ भारी, पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ।
दानिन महँ तुम सम कोई नाहिं, सेवक अस्तुति करत सदाहीं ।
वेद नाम महिमा तव गाई, अकथ अनादि भेद नहिं पाई ।
प्रगटी उदधि मंथन में ज्वाला, जरे सुरासुर भये विहाला ।
कीन्हीं दया तहँ करी सहाई, नीलकण्ठ तब नाम कहाई ।
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा, जीत के लंक विभीषण दीन्हा ।
सहस कमल में हो रहे धारी, कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ।
एक कमल प्रभु राखे जोई, कमल नयन पूजन चहँ सोई ।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर, भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ।
जै जै जै अनन्त अविनासी, करत कृपा सबकी घटवासी ।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै, भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ।
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो, यहि अवसर मोहि आन उबारो ।
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो, संकट से मोहि आन उबारो ।
मातु पिता भ्राता सब कोई, संकट में पूछत नहीं कोई ।
स्वामी एक है आस तुम्हारी, आय हरहु मम संकट भारी ।
धन निर्धन को देत सदाहीं, जो कोई जाँचे वो फल पाहीं ।
अस्तुति केहि विधि करों तिहारी, क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ।
शंकर हो संकट के नाशन, मंगल कारण विघ्न विनाशन ।
योगि यति मुनि ध्यान लगावैं, नारद शारद शीश नवावैं ।
नमो नमो जय नमो शिवाये, सुर ब्रह्मादिक पार न पाए ।
जो यह पाठ करे मन लाई, तापर होत हैं शम्भु सहाई ।
ऋनिया जो कोई हो अधिकारी, पाठ करे सो पावन हारी ।
पुत्रहीन इच्छा कर कोई, निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ।
पंडित त्रयोदशी को लावे, ध्यान पूर्वक होम करावे ।
त्रयोदशी व्रत करे हमेशा, तन नहिं ताके रहे कलेशा ।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे, शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ।
जन्म जन्म के पाप नसावे अन्त वास शिवपुर में पावे ।
कहै अयोध्या आस तुम्हारी, जानि सकल दुःख हरहु हमारी ।

॥ दोहा ॥

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीस ।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ऋतु, संवत् चौंसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ॥

आरती श्री शिव जी की

जय शिव ओंकारा, भज हर शिव ओंकारा, ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धाङ्गी धारा ।
एकानन चतुरानन पंचानन राजै, हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजै ।
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहै, तीनों रूप निरखते त्रिभुवन मन मोहे ।
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी, चंदन मृगमद चंदा सोहै त्रिपुरारी ।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे, सनकादिक ब्रह्मादिक भूतादिक संगे ।
करके मध्ये कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी, सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी ।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका, प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका ।
त्रिगुण शिव जी की आरती जो कोई नर गावे, कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पत्ति पावे ।

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शिव जी की आरती संस्कृत में

ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा ।
त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा॥ हर...॥

कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रमविपिने ।
गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने॥

कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता ।
रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥ हर...॥

तस्मिंल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता ।
तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता॥

क्रीडा रचयति भूषारंचित निजमीशम् ।
इंद्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम् ॥ हर...॥

बिबुधबधू बहु नृत्यत नामयते मुदसहिता ।
किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता ॥

धिनकत थै थै धिनकत मृदंग वादयते ।
क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते ॥हर...॥

रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्वलिता ।
चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां॥

तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते ।
अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥ हर...॥

कपूर्रद्युतिगौरं पंचाननसहितम् ।
त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम्॥

सुन्दरजटायकलापं पावकयुतभालम् ।
डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम् ॥ हर...॥

मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम् ।
वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम्॥

सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम् ।
इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणं ॥ हर...॥

शंखनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते ।
नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते॥

अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा ।
अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा॥ हर...॥

ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा ।
रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा॥

संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते ।
शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः श्रृणुते ॥ हर...॥

भगवान शिव की मूल मंत्र

भगवान शिव की आराधना का मूल और सबसे सरल मंत्र है 'ॐ नमः शिवाय' अर्थात मैं अपने आराध्य भगवान शिव को नमन करता हूं। इसके बाद दूसरा मंत्र है महामृत्युंजय मंत्र।

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खं न मन्त्रो न तीर्थं न वेदो न यज्ञः ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥

भावार्थ :

न मैं पुण्य हूँ, न पाप, न सुख और न दुःख, न मन्त्र, न तीर्थ, न वेद और न यज्ञ, मैं न भोजन हूँ, न खाया जाने वाला हूँ और न खाने वाला हूँ, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ…।