विश्वकर्मा को देवताओं के महलों का वास्तुकार भी कहा जाता है। इसलिए भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का सबसे पहला इंजीनियर और वास्तुकार माना जाता है। विश्वकर्मा दो शब्दों से विश्व (संसार या ब्रह्मांड) और कर्म (निर्माता) से मिलकर बना है। इसलिए विश्वकर्मा शब्द का अर्थ है दुनिया का निर्माता यानि की दुनिया का निर्माण करने वाला।
पंचांग के अनुसार इस वर्ष विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर रविवार को मनाई जाएगी ।॥ दोहा ॥
विनय करौं कर जोड़कर मन वचन कर्म संभारि ।
मोर मनोरथ पूर्ण कर विश्वकर्मा दुष्टारि ॥
॥ चौपाई ॥
विश्वकर्मा तव नाम अनूपा, पावन सुखद मनन अनरूपा ।
सुन्दर सुयश भुवन दशचारी, नित प्रति गावत गुण नरनारी।
शारद शेष महेश भवानी, कवि कोविद गुण ग्राहक ज्ञानी ।
आगम निगम पुराण महाना, गुणातीत गुणवन्त सयाना ।
जग महँ जे परमारथ वादी, धर्म धुरन्धर शुभ सनकादि ।
नित नित गुण यश गावत तेरे, धन्य-धन्य विश्वकर्मा मेरे ।
आदि सृष्टि महँ तू अविनाशी, मोक्ष धाम तजि आयो सुपासी ।
जग महँ प्रथम लीक शुभ जाकी, भुवन चारि दश कीर्ति कला की ।
ब्रह्मचारी आदित्य भयो जब, वेद पारंगत ऋषि भयो तब ।
दर्शन शास्त्र अरु विज्ञ पुराना, कीर्ति कला इतिहास सुजाना ।
तुम आदि विश्वकर्मा कहलायो, चौदह विद्या भू पर फैलायो ।
लोह काष्ठ अरु ताम्र सुवर्णा, शिला शिल्प जो पंचक वर्णा ।
दे शिक्षा दुख दारिद्र नाश्यो, सुख समृद्धि जगमहँ परकाश्यो ।
सनकादिक ऋषि शिष्य तुम्हारे, ब्रह्मादिक जै मुनीश पुकारे ।
जगत गुरु इस हेतु भये तुम, तम-अज्ञान समूह हने तुम ।
दिव्य अलौकिक गुण जाके वर, विघ्न विनाशन भय टारन कर ।
सृष्टि करन हित नाम तुम्हारा, ब्रह्मा विश्वकर्मा भय धारा ।
विष्णु अलौकिक जगरक्षक सम, शिवकल्याणदायक अति अनुपम ।
नमो नमो विश्वकर्मा देवा, सेवत सुलभ मनोरथ देवा ।
देव दनुज किन्नर गन्धर्वा, प्रणवत युगल चरण पर सर्वा ।
अविचल भक्ति हृदय बस जाके, चार पदारथ करतल जाके ।
सेवत तोहि भुवन दश चारी, पावन चरण भवोभव कारी ।
विश्वकर्मा देवन कर देवा, सेवत सुलभ अलौकिक मेवा ।
लौकिक कीर्ति कला भण्डारा, दाता त्रिभुवन यश विस्तारा ।
भुवन पुत्र विश्वकर्मा तनुधरि, वेद अथर्वण तत्व मनन करि ।
अथर्ववेद अरु शिल्प शास्त्र का, धनुर्वेद सब कृत्य आपका ।
जब जब विपति बड़ी देवन पर, कष्ट हन्यो प्रभु कला सेवन कर ।
विष्णु चक्र अरु ब्रह्म कमण्डल, रुद्र शूल सब रच्यो भूमण्डल ।
इन्द्र धनुष अरु धनुष पिनाका, पुष्पक यान अलौकिक चाका ।
वायुयान मय उड़न खटोले, विद्युत कला तंत्र सब खोले ।
सूर्य चन्द्र नवग्रह दिग्पाला, लोक लोकान्तर व्योम पताला ।
अग्नि वायु क्षिति जल अकाशा, आविष्कार सकल परकाशा ।
मनु मय त्वष्टा शिल्पी महाना, देवागम मुनि पंथ सुजाना ।
लोक काष्ठ, शिल ताम्र सुकर्मा, स्वर्णकार मय पंचक धर्मा ।
शिव दधीचि हरिश्चन्द्र भुआरा, कृत युग शिक्षा पालेऊ सारा ।
परशुराम, नल, नील, सुचेता, रावण, राम शिष्य सब त्रेता ।
द्वापर द्रोणाचार्य हुलासा, विश्वकर्मा कुल कीन्ह प्रकाशा ।
मयकृत शिल्प युधिष्ठिर पायेऊ, विश्वकर्मा चरणन चित ध्यायेऊ ।
नाना विधि तिलस्मी करि लेखा, विक्रम पुतली दृश्य अलेखा ।
वर्णातीत अकथ गुण सारा, नमो नमो भय टारन हारा ।
॥ दोहा ॥
दिव्य ज्योति दिव्यांश प्रभु, दिव्य ज्ञान प्रकाश ।
दिव्य दृष्टि तिहुँ कालमहँ विश्वकर्मा प्रभास ॥
विनय करो करि जोरि, युग पावन सुयश तुम्हार ।
धारि हिय भावत रहे होय कृपा उद्गार ॥
॥ छन्द ॥
जे नर सप्रेम विराग श्रद्धा सहित पढ़िहहि सुनि है ।
विश्वास करि चालीसा चौपाई मनन करि गुनि है ।
भव फंद विघ्नों से उसे प्रभु विश्वकर्मा दूर कर ।
मोक्ष सुख देंगे अवश्य ही कष्ट विपदा चूर कर ॥
प्रभु श्री विश्वकर्मा घर आवो प्रभु विश्वकर्मा ।
सुदामा की विनय सुनी, और कंचन महल बनाये ।
सकल पदारथ देकर प्रभु जी दुखियों के दुख टारे ॥
विनय करी भगवान कृष्ण ने द्वारिकापुरी बनाओ ।
ग्वाल बालों की रक्षा की प्रभु की लाज बचायो ॥ वि.॥
रामचन्द्र ने पूजन की तब सेतु बांध रचि डारो ।
सब सेना को पार किया प्रभु लंका विजय करावो ॥ वि.॥
श्री कृष्ण की विजय सुनो प्रभु आके दर्श दिखावो ।
शिल्प विद्या का दो प्रकाश मेरा जीवन सफल बनावो ॥ वि. ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।
सकल सृष्टि के करता, रक्षक स्तुति धर्मा ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।
आदि सृष्टि मे विधि को, श्रुति उपदेश दिया ।
जीव मात्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।
ऋषि अंगीरा तप से, शांति नहीं पाई ।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना ।
संकट मोचन बनकर, दूर दुःखा कीना ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।
जब रथकार दंपति, तुम्हारी टेर करी ।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत सगरी हरी ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज, सकल रूप साजे ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।
ध्यान धरे तब पद का, सकल सिद्धि आवे ।
मन द्विविधा मिट जावे, अटल शक्ति पावे ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।
श्री विश्वकर्मा की आरती, जो कोई गावे ।
भजत गजानांद स्वामी, सुख संपति पावे ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।
सकल सृष्टि के करता,रक्षक स्तुति धर्मा ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा ।
हम सब उतारे आरती तुम्हारी हे विश्वकर्मा, हे विश्वकर्मा ।
युग–युग से हम हैं तेरे पुजारी, हे विश्वकर्मा...।।
मूढ़ अज्ञानी नादान हम हैं, पूजा विधि से अनजान हम हैं ।
भक्ति का चाहते वरदान हम हैं, हे विश्वकर्मा...।।
निर्बल हैं तुझसे बल मांगते, करुणा का प्यास से जल मांगते हैं ।
श्रद्धा का प्रभु जी फल मांगते हैं, हे विश्वकर्मा...।।
चरणों से हमको लगाए ही रखना, छाया में अपने छुपाए ही रखना ।
धर्म का योगी बनाए ही रखना, हे विश्वकर्मा...।।
सृष्टि में तेरा है राज बाबा, भक्तों की रखना तुम लाज बाबा ।
धरना किसी का न मोहताज बाबा, हे विश्वकर्मा...।।
धन, वैभव, सुख–शान्ति देना, भय, जन–जंजाल से मुक्ति देना ।
संकट से लड़ने की शक्ति देना, हे विश्वकर्मा...।।
तुम विश्वपालक, तुम विश्वकर्ता, तुम विश्वव्यापक, तुम कष्टहर्ता ।
तुम ज्ञानदानी भण्डार भर्ता, हे विश्वकर्मा...।।
भगवान विश्वकर्मा की जय। भगवान विश्वकर्मा की जय ।
ॐ आधार शक्तपे नम:, ओम कूमयि नम:,
ओम अनन्तम नम:, पृथिव्यै नम:।
विश्वकर्मा चालीसा का पाठ पढ़ने से क्या लाभ मिलता है ?
विश्वकर्मा चालीसा का पाठ करने से मनुष्य के सुख एवम सौभाग्य में वृद्धि होती है। विश्वकर्मा चालीसा का पाठ कब करना चाहिए ? विश्वकर्मा चालीसा का पाठ मनुष्य को वैसे तो रोज़ करना चाहिए लेकिन विश्कर्मा पूजा के दिन अवश्य करना चाहिए ।
भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा में क्या क्या सामग्री होती है ?
सूर्योदय से पहले उठ जाना चाहिए, पति -पत्नी को साथ मिलकर पूजा करनी चाहिए, पति पत्नी हाथ में चावल और सफ़ेद फूल लेकर भगवन विश्कर्मा जी को चढ़ा दे, अपनी मशीनों और औज़ारो को तिलक लगाए और उनकी पूजा करे
विश्वकर्मा जयंती - Vishwakarma Jayanti
विश्वकर्मा को भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है। विश्वकर्मा को दुनिया में सबसे पहले वास्तु और इंजीनियरिंग की उपाधि दी गई है। विश्वकर्मा का जन्म कन्या संक्रांति के दिन हुआ था। इस लिए हर साल इनके जन्म तिथि पर विश्वकर्मा जयंती मनाई जाती है। इस दिन सभी लोग अपने घरों में सुख-शांति और अपने और अपने कारोबार में तरक्की के लिए विश्वकर्मा पूजा करते हैं।
विश्वकर्मा की पूजा कैसे करे ? - How to worship Vishwakarma ?
सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहन लें, - फिर भगवान विश्वकर्मा की पूजा करें. - पूजा में हल्दी, अक्षत, फूल, पान, लौंग, सुपारी, मिठाई, फल, दीप और रक्षासूत्र शामिल करें, - पूजा में घर में रखा लोहे का सामान और मशीनों को शामिल करें।
विश्वकर्मा के पांच पुत्र कौन हैं ?
उनके पांच बच्चे थे - मनु, माया, त्वस्तार, शिल्पी और विश्वज्ना - और इन्हें विश्वकर्मा समुदाय द्वारा उनके पांच उप-समूहों के पूर्वज माना जाता है, जो क्रमशः लोहार, बढ़ई, बेल मेटलवर्कर्स के गोत्र (कबीले) होते हैं। धातु ढलाईकार), राजमिस्त्री और सुनार ।
विश्वकर्मा पूजा का महत्व
नरेंद्र उपाध्याय ने बताया कि विश्वकर्मा जयंती के दिन सभी कारखानों और औद्योगिक संस्थानों में भगवान विश्वकर्मा की विधि-विधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। साथ ही व्यापार में तरक्की और उन्नति होती है।
श्री विश्वकर्मा अष्टकम -
॥ विश्वकर्माष्टकम् ॥
निरञ्जनो निराकारः निर्विकल्पो मनोहरः ।
निरामयो निजानन्दः निर्विघ्नाय नमो नमः ॥ 1 ॥निर्गुण निराकार, विकलारहित, सुन्दर आनंदस्वरूप विघ्नहतो, निर्मल, भगवान श्री विश्वकर्मा को प्रणाम ।
Salutations to Lord Shri Vishwakarma who is formless, formless, free from defects, free from obstacles, free from obstacles and an embodiment of beautiful bliss.
अनादिरप्रमेयश्च अरूपश्च जयाजयः ।
लोकरूपो जगन्नाथः विश्वकर्मन्नमो नमः ॥ 2 ॥आनंदकर्ता, स्वरूप रहित, अजय, जगत का स्वामी, संसार स्वरूप भगवान श्री विश्वकर्मा को प्रणाम।
Salutations to Lord Shri Vishwakarma, the giver of joy, formless, immortal, lord of the world, embodiment of the world.
नमो विश्वविहाराय नमो विश्वविहारिणे ।
नमो विश्वविधाताय नमस्ते विश्वकर्मणे ॥ 3॥विश्वभर में विचरण करने वाले, विश्व के रूप को बनाने वाले, विश्व के विधाता, भगवान श्री विश्वकर्मा को प्रणाम।
Salutations to Lord Shri Vishwakarma, the one who roams around the world, the creator of the world, the creator of the world.
नमस्ते विश्वरूपाय विश्वभूताय ते नमः ।
नमो विश्वात्मभूथात्मन् विश्वकर्मन्नमोऽस्तु ते ॥ 4 ॥संसार के स्वरूप संसार के ऐश्वर्य संसार के विभूतियों के आत्मा, भगवान श्री विश्वकर्मा को प्रणाम।
Salutations to Lord Shri Vishwakarma, the embodiment of the world, the opulence of the world, the soul of the great personalities of the world.
विश्वायुर्विश्वकर्मा च विश्वमूर्तिः परात्परः ।
विश्वनाथः पिता चैव विश्वकर्मन्नमोऽस्तु ते ॥ 5॥संसार के निर्माता, संसार के स्वरूप, सर्वश्रेष्ठ, संसार के नाथ भगवान श्री विश्वकर्मा को प्रणाम।
Salutations to Lord Shri Vishwakarma, the creator of the world, the form of the world, the best, the Lord of the world.
विश्वमङ्गलमाङ्गल्यः विश्वविद्याविनोदितः ।
विश्वसञ्चारशाली च विश्वकर्मन्नमोऽस्तु ते ॥ 6॥संसार के मंगलकर्ता, संसार को आनंद देनेवाले, संसार को संचालन करने वाले भगवान श्री विश्वकर्मा को प्रणाम ।
Salutations to Lord Shri Vishwakarma, the benefactor of the world, the one who gives happiness to the world, the one who governs the world.
विश्वैकविधवृक्षश्च विश्वशाखा महाविधः ।
शाखोपशाखाश्च तथा तद्वृक्षो विश्वकर्मणः ॥ 7 ॥संसाररूपी वृक्ष के एक वृक्ष, वृक्ष के विविध शाखा, उपशाखा, सभी भगवान श्री विश्वकर्मा ही है।
One tree of the world-like tree, various branches and sub-branches of the tree, all are Lord Shri Vishwakarma.
तद्वृक्षः फलसम्पूर्णः अक्षोभ्यश्च परात्परः ।
अनुपमानो ब्रह्माण्डः बीजमोङ्कारमेव च ॥ 8 ॥उन संसार रूप वृक्ष के सम्पूर्ण फल, उनका बढ़, ब्रह्माण्ड के आकर रूपी बीज, जिसका उपमा नहीं है, ऐसे एहिलौकिक, पारलौकिक श्रेष्ठ ब्रह्माण्ड भगवान श्री विश्वकर्मा ही है।
The entire fruits of that world-like tree, its growth, the seeds in the form of the universe, which has no comparison, such worldly and beyond worldly best universe is Lord Shri Vishwakarma.