Sanskrit Slokas/Quotes on donations With Meaning Of Hindi And English. दान पर संस्कृत श्लोक
उत्तमोऽप्रार्थितो दत्ते मध्यमः प्रार्थितः पुनः । याचकै र्याच्यमानोऽपि दत्ते न त्वधमाधमः ॥
A good man gives without being asked, a mediocre man gives after being asked; but if a man is mean he does not give even when beggars ask for it.
उत्तम मनुष्य मागे बगैर देता है, मध्यम मनुष्य मागने के बाद देता है; पर, मनुष्य अधम हो तो याचकों के मागने पर भी नहीं देता ।
कदर्योपात्त वित्तानां भोगो भाग्यवतां भवेत् । दन्ता दलति कष्टेन जिह्वा गिलति लीलया ॥
The money earned by the miser is enjoyed by the lucky ones. The food which the teeth chew with difficulty is easily swallowed by the tongue.
कंजूस ने अर्जित किया हुए धन का उपभोग भाग्यशाली को प्राप्त होता है । दांत कष्ट से जो जिस खुराक को चबाता है, उसे जबान आसानी से निगल जाती है ।
सङ्ग्रहैकपरः प्राप समुद्रोऽपि रसातलम् । दाता तु जलदः पश्य भुवनोपरि गर्जति ॥
Look, the ocean engrossed in collecting has gone to the abyss, but the giving cloud roars on the earth
देखो, संग्रह में मग्न रहनेवाला समंदर रसातल को चला गया, किंतु देनेवाला बादल पृथ्वी पर गर्जता है।
धिग् दानम सत्कारं पौरुषं धिक्कलङ्कितम् । जीवितं मानहीनं धिग् धिक्कन्यां बहुभाषिणीम् ॥
Shame on charity without respect; shame on tainted manliness; shame on a life without honour; and shame on a woman who talks too much.
बिना सत्कार के दान को धिक्कार है; कलंकित पौरुष को धिक्कार है; मानरहित जीवन को धिक्कार है, और बहुत बोलनेवाली स्त्री को भी धिक्कार है ।
रक्षन्ति कृपणाः पाणौ द्रव्यं प्राणमिवात्मनः । तदेव सन्तः सततमुत्सृजन्ति यथा मलम् ॥
A miser (greedy) preserves wealth like his life, but a saint discards the same wealth like excreta.
कृपण (लोभी) प्राण की तरह द्रव्य का अपने हाथ में रक्षण करता है, पर संत पुरुष उसी द्रव्य को मल की तरह त्याग देते है ।
कुपात्र दानात् च भवेत् दरिद्रो दारिद्र्य दोषेण करोति पापम् ।
पापप्रभावात् नरकं प्रयाति पुनर्दरिद्रः पुनरेव पापी ॥Giving alms to the wrong person makes one poor. Sins are committed due to the fault of poverty. One goes to hell due to the effect of sin; again one becomes poor and again commits sins.
कुपात्र को दान देने से दरिद्री बनता है । दारिद्र्य दोष से पाप होता है । पाप के प्रभाव से नरक में जाता है; फिर से दरिद्री और फिर से पाप होता है ।
सुपात्रदानात् च भवेत् धनाढ्यो धनप्रभावेण करोति पुण्यम् ।
पुण्यप्रभावात् सुरलोकवासी पुनर्धनाढ्यः पुनरेव भोगी ॥By giving charity to the deserving, a man becomes wealthy; (then) by the influence of wealth he performs pious deeds; by the influence of virtue he attains heaven; and again he becomes wealthy and again a pleasure-seeker.
सुपात्र को दान देने से, इन्सान धनवान बनता है; (फिर) धन के प्रभाव से पुण्यकर्म करता है; पुण्य के प्रभाव से उसे स्वर्ग प्राप्त होता है; और फिर से धनवान और फिर से भोगी बनता है ।
फलं यच्छति दातृभ्यो दानं नात्रास्ति संशयः । फलं तुल्यं ददात्येतदाश्चर्यं त्वनुमोदकम् ॥
There is no doubt that giving charity brings results, but it is surprising that later it gives an equal amount of result in the form of happiness.
दान करने से दान फल देता है उसमें संशय नहि, पर पीछे से वह उतना ही आनंद रुपी फल देता है, वह आश्चर्य है ।
सुदानात्प्राप्यते भोगः सुदानात्प्राप्यते यशः ।
सुदानात् जायते कीर्तिः सुदानात् प्राप्यते सुखम् ॥By giving true (right) charity one gets fame, reputation and happiness.
सत् (सम्यक्) दान करने से यश, कीर्ति और सुख प्राप्त होते हैं ।
मायाहंङ्कार लज्जाभिः प्रत्युपक्रिययाऽथवा ।
यत्किञ्चिद्दीयते दानं न तध्दर्मस्य साधकम् ॥Whatever donation is made out of illusion, ego, shame or a feeling of revenge, Dharma cannot be achieved by that donation.
माया से, अहंकार से, लज्जा से या बदला लेने की भावना से जो कुछ भी दान दिया जाता है, उस दान से धर्म नहि प्राप्त किया जाता है ।
यदि चास्तमिते सूर्ये न दत्तं धनमर्थिनाम् ।
तध्दनं नैव जानामि प्रातः कस्य भविष्यति ॥I do not know who will own the wealth that is not given to the beggars at sunset the next morning!
सूर्यास्त के वक्त जो धन याचकों को नहि दिया जाता, वह दूसरे दिन सुबह किसका होगा, यह मैं नहीं जानता !
अशनादीनि दानानि धर्मोपकरणानि च ।
साधुभ्यः साधुयोग्यानि देयानि विधिना बुधैः ॥Wise people should make donations to saints in a proper manner, such as food and other religious material suitable for saints.
साधु पुरुषों को, साधुओं के योग्य अशन आदि धर्म के उपकरणों का दान बुधजनों ने विधिपूर्वक करना चाहिए ।
नाना दानं मया दत्तं रत्नानि विविधानि च ।
नो दत्तं मधुरं वाक्यं तेनाहं शूकरो मुखे ॥I gave many types of donations and various gems, but did not say a single sweet word, that is why I have the face of a pig
मैं ने अनेक प्रकार के दान और विविध रत्न दिये, पर एक भी मधुर वाक्य नहि दिया, इस लिए मेरा मुख सूअर का है
अर्थिप्रश्नकृतौ लोके सुलभौ तौ गृहे । दाता चोत्तरदश्चैव दुर्लभौ पुरुषौ भुवि ॥
In this world, beggars and questioners are available in every home, but givers and answers are very rare
इस दुनिया में याचक और प्रश्नकर्ता घर-घर में सुलभ है, पर दाता और उत्तर देनेवाले अति दुर्लभ है
गर्जित्वा बहुदूरमुन्नति-भृतो मुञ्चन्ति मेघा जलम् भद्रस्यापि गजस्य दानसमये सञ्जायतेऽन्तर्मदः ।
पुष्पाडम्बर यापनेन ददति प्रायः फलानि द्रुमाः नो छेको नो मदो न कालहरणं दान प्रवृतौ सताम् ॥Such elevated clouds give rain by roaring from a distance, even a noble elephant gets intoxicated at the time of giving alms (when juice is produced in the gland), trees also give fruits by shedding the pretense of flowers; i.e. gentlemen do not have any arrogance, pride or time-wasting while giving alms.
उन्नत ऐसे बादल, दूर से गर्जना करके पानी देते हैं, भद्र हाथी में भी दान के समय (गण्डस्थल में रस उत्पन्न होते वक्त) मद उत्पन्न होता है, वृक्ष भी पुष्पों का आडंबर दूर करके फल देते हैं; अर्थात् दानप्रवृत्त होने में सज्जनों को दंभ, घमंड या कालहरण होते नहीं ।
दानं धार्यते पृथ्वी: दानमेवं भुवनत्रयं
दानमेकाः द्वारपाल: कृत्वा त्रिलोकीनाथं च लक्ष्मीपतिं ॥Charity alone sustains the earth and charity alone sustains all three worlds. Charity alone has made Triloki Nath and Lakshmipati Ji gatekeepers.
दान ही धारण पृथ्वी करता और दान ही भुवन तीनों को। दान एक ने ही द्वारपाल कर दिया त्रिलोकी नाथ और लक्ष्मीपति जी को ।
स्वकार्यार्थे स्वकर्मश्च दानमेकं च इहलोके।
यः करोति नरं न आप्नोति शरीरश्च प्रार्थना धनमस्य ॥Being engaged in one's own work means doing one's own work and charity in this world. By doing this, one does not get the blessings of human body and wealth.
अपने कार्यों में लगे होने के अर्थ स्व कर्म और दान को एक को इस लोक में है। इसे करने से नर शरीर और धन की प्रार्थना को प्राप्त नहीं होता।