Essay On Brahmacharya In Sanskrit - ब्रह्मचर्यम् पर अनुछेद

ब्रह्मचर्य पर संस्कृत अनुछेद - ब्रह्मचर्यम् पर अनुछेद

Sanskrit Essay On Brahmacharya - Brahmacharya Par Anuched

ब्रह्मचर्यम् - ब्रह्मचर्य

अध्ययनस्य सर्वथा परिवर्तन जातम् तथापि यावत् छात्रः छात्रा वा महाविद्यालये अध्ययन करोति, तावत् तस्य कृते ब्रह्मचर्यकालः अस्ति । प्राचीनकाले अध्ययनं समाप्य एव छात्राः विवाह कुर्वन्ति स्म किन्तु अधुना. तादृशः कोऽपि नियमो नास्ति । पठनकालेऽपि छात्राणां विवाहः क्रियते । ग्रामेषु तु अबोधबालकानामपि विवाह: अधुना भवति, एतेन ब्रह्मचर्यस्य हानिः भवति । पञ्चविंशति वर्षाणि यावत् यदि कश्चित् अविवाहितः जितेन्द्रियश्च तिष्ठति तदा स शतायुः नीरोगश्च लोक प्रसिद्धो भवति । केचन जनाः आजीवनम् ब्रह्मचर्यस्य व्रतं पालयन्ति । तादृशाः मनुष्याः असाधारण पराक्रमशालिनो भवन्ति । महाभारतस्य पितामहो भीष्मः एतादृशः एव आसीत् । परशुरामः अपि ब्रह्मचर्यस्य प्रभावेण सर्वान् वीरान् अजयत् । उक्तञ्च-"ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमुपाध्नत ।"

हिन्दी अनुवाद :

ब्रह्मचर्य

अध्ययन का सर्वथा परिवर्तन होता है फिर भी जबतक छात्र अथवा छात्रा महाविद्यालय में अध्ययन करते हैं, तबतक उनके लिए ब्रह्मचर्य काल है। प्राचीनकाल में अध्ययन समाप्त कर ही छात्र विवाह करते थे किन्तु आजकल वैसा कोई भी नियम नहीं है। इस समय पढाई काल में भी छात्र विवाह करते हैं। आजकल गांवों में तो अवोध बालकों का भी विवाह होता है, इससे ब्रह्मचर्य की हानि होती है। पच्चीस वर्षों तक यदि कोई अविवाहित और जितेन्द्रिय रहता है तब वह सौ वर्षों तक निरोगी और लोक में प्रसिद्ध होता है। कुछ लोग आजीवन (पुराजीवन) ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हैं। वैसे मनुष्य असाधारण पराक्रम शालि होते हैं। महाभारत के पितामह भीष्म ऎसे ही थे। परशुराम भी ब्रह्मचर्य के प्रभाव से सभी वीरों पर विजय प्राप्त किए। कहा गया है- ब्रह्मचर्य से तपस्या से देवताओं ने मृत्यु जीत लिया।