Sanskrit Essay On Ganga Nadi(गंगानदी संस्कृत निबंध)

गंगानदी

अस्माकं देशे सर्वासु नदीषु गंगा अतिश्रेष्ठा प्रधाना पवित्रतमा च वर्तते । इयम् हिमालयात् निःसृत्य बंगोपसागरे पतति । अस्याः पावने तटे विशालाः प्राचीनाः नगर्यः स्थिताः सन्ति, यथा-हरिद्धारः, प्रयागः, वाराणसी, पाटलिपुत्रादि । अस्माकं सभ्यता-संस्कृति एषु नगरेषु उन्नता जाता । गंगा एव भारतवर्षस्य धार्मिक विचारधारायाः पारिचायिका अस्ति । चिरकाल-रक्षितेऽपि गंगाजले कीटाणवः प्रभवन्ति । अतएव गंगानदी नित्या पूजनीय, वन्दनीया, सेवनीया च । भारतीयाः जनाः गंगायाः जलस्य मात्र सेवनं न कुर्वन्ति अपितु देववत् पूजयन्ति च । गंगास्मरणमात्रेण पापः शिरः धुनोति इति कथ्यते ।

पतितोद्धारिणि जाह्नवि गङ्गे खण्डित गिरिवरमण्डित भङ्गे । भीष्म जननि हे मुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवन धन्ये॥

हिन्दी अनुवाद :

हमारे देश के सभी नदियों में गंगा श्रेष्ठ, प्राचीन और पवित्र है । यह हिमालय से निकलकर वंगोपसागर में गिरता है । इसके पावन तट पर अनेक प्राचीन नगर वसे हुए है जैसे हरिद्धार, प्रयाग, वाराणसी, पाटलिपुत्र (पटना) आदि । हमलोग का सभ्यता और संस्कृति इसी नगर से उन्नत हुए है । गंगा भारतवर्ष के धार्मिक विचार का परिचायक है । बहुत दिनों तक रखने पर भी गंगाजल में कीटाणु नहीं होता है । अतः इसलिए गंगानदी प्रतिदिन पूजनीय, वेदनीय और सेवनीय है । भारत के लोग गंगाजल का सिर्फ सेवन ही नहीं करते है वल्कि देवता के समान पूजते भी है । गंगा के स्मरण मात्र से पाप शिर से मिट जाता है ऐसा कहा जाता है ।

हे पतितजनों का उद्धार करनेवाली जह्नुकुमारी गंगे ! तुम्हारी तरंगे गिरिराज हिमालय को खण्डित करके बहती हुई सुशोभित होती हैं, तुम भीष्म की जननी और जह्नुमुनिकी कन्या हो, पतितपावनी होने के कारण तुम त्रिभुवन में धन्य हो । निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं ।