सताम् आचारः सदाचारः कथ्यते । सज्जनाः यानि कर्माणि कुर्वन्ति तानी एव अस्माभिः कर्तव्यानि । ऋषयश्च वदन्ति यानि अनिन्द्यानि कर्माणि तानि सेवितव्यानि नेतराणि । गुरुजनानां सेवा, सरलता सत्यभाषणम्, इन्द्रियनिग्रहः अद्रोहः, अपैशून्यम् आदि गुणानां गणना सदाचारे भवति । सदाचारवान् जनः दीर्घसूत्री न भवति । स हि अतन्द्रितः स्वकर्मानुष्ठानम् समयेन करोति । सदा मधुरं भाषणं करोति । स हि न कस्मैचिदपि द्रुह्यते । पुरा भारते सर्वेजनाः सदाचारवन्तः आसन् । इदानीं रामचन्द्रस्य मर्यादापुरुषोत्तमस्य जीवनं सदाचारस्य उत्कृष्टम् उदाहरणम् अस्ति । अस्माभिः तस्यैव जीवनम् अनुकरणीयम् ।
यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रियाः ।
चित्ते वाचि क्रियायांच साधुनामेक्रूपता ॥हिन्दी अनुवाद :
सत्य आचार को सदाचार कहा जाता है । सज्जन लोग जिस प्रकार के कार्य करते है उसी तरह हमलोगों को भी करना । ऋषियों के द्वारा कहा जाता है कि निन्दनीय कार्य नहीं करना चाहिए । गुरुओं की सेवा, सत्य बोलना, इन्द्रियों को वश में रखना, द्रोही नहीं होना आदि गुणों की गणना सदाचार में किया जाता है । सदाचारवान व्यक्ति दीर्घसूत्री नहीं होता है । वह अपना सभी कार्य समय पर करता है । वह हमेशा मधुर वोलता है । वह किसी को परेशान नहीं करता है । प्राचीन भारत में सभी लोग सदाचारवान थे । इस समय मर्यादापुरुषोत्तम राम का जीवन सदाचार का सबसे अच्छा उदाहरण है । हमलोगों को भी उनके जीवन का अनुकरण करना चाहिए ।
अच्छे लोगों के मन में जो बात होती है, वे वही वो बोलते हैं और ऐसे लोग जो बोलते हैं,
वही करते हैं. सज्जन पुरुषों के मन, वचन और कर्म में एकरूपता होती है ।