शरीरेण मानसिकेन कृतं कर्म -श्रमं इति कथ्यते । श्रमेण विना जीवनं जीवनं नहि । श्रमेण विना न विद्या भवति न द्रव्यं, परिवारे समाजे, राष्ट्रे च श्रमस्य महत्त्वं दृश्यते । आविष्कारकः वैज्ञानिकः शारीरिक-मानसिक-श्रमेण नव-नव पदार्थान् आविष्करोति । श्रमेण विना भोजनमपि दुष्पाप्यम् भवति । अतएव आशैशवम् एव श्रमं कुर्यात् । अनेन श्रमेण राष्ट्रः समाजः परिवारश्च उन्नतिपथमारोहति ।
श्रमेण लभ्यं सकलं न श्रमेण विना क्वचित् ।
सरलाङ्गुलि संघर्षात् न निर्याति घनं घृतम् ॥हिन्दी अनुवाद :
शरीर के द्वारा मन से किया गया कार्य श्रम कहलाता है । श्रम के विना जीवन, जीवन नहीं है । श्रम के विना न विद्या होती है, न द्रव्य परिवार और समाज में श्रम का महत्व देखा जाता है । आविष्कार करने वाले वैज्ञानिक शारीरिक और मानसिक श्रम के द्वारा ही नये-नये पदार्थ का आविष्कार करते हैं । परिश्रम के विना भोजन भी दूर्लभ हो जाता है । अतः वचपन से ही हमें परिश्रम करना चाहिए । श्रम के द्वारा ही राष्ट्र, समाज और परिवार उन्नति मार्ग पर चलता है ।
श्रम से सब मिलता है, श्रम बिना कुछ नहीं । सीधी उँगली से घी निकलता नहीं ।