प्राचीनयुगात् अस्माकं समाजे स्त्रीणां विशिष्टं स्थानं वर्तते। यथा ऋग्वैदिककालेषु लोपामुद्रा, घोषा, सिकता, आपला एवं विश्वास इति विदूषी स्त्रीणां वर्णनं विद्यते। अस्मासु पौराणिक ग्रंथेषु नार्ये उक्तं च- "यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता: " ताथापि व्यंगम् इदं दृश्यताम् नारीणां सशक्तिकरणस्य आवश्यकता अनुभूयते । स्त्रीयैव मानववर्गस्य अस्तित्वः भुता इति मन्यते। सरलशब्देषु महिला सशक्तिकरणं परिभाषितं कर्त्तु शक्यते। स्वजीवने निर्णय ग्रहणस्य या शक्ति नारीषु वर्तते, तस्याः शक्ते: बोधः उपयोगश्च एका नारी कुर्यात समाजे तस्याः वास्तविक अधिकारं प्राप्ताय सक्षमनिणार्यैव महिला सशक्तिकरण अस्ति।
हिन्दी अनुवाद :
महिला सशक्तिकरण
प्राचीन युग से हमारे समाज में महिलाओं (स्त्री) का विशेष स्थान है। जैसे - ऋग्वैदिक काल में लोपामुद्रा, घोषा, सिकता, आपला, विश्वास जैसी विदूषी स्त्री का वर्णन है। हमारे पुराण ग्रंथों में नारी के लिए कहा गया है- जहाँ नारी की पूजा करते हैं वहां देवता निवास करते हैं। फिर भी यह आश्चर्य की बात देखिए, नारी को सशक्तिकरण की आवश्यकता हो रही है। स्त्री से ही मानव जाति का अस्तित्व है यह मानते हैं । सीधे शब्दों में महिला सशक्तिकरण की परिभाषा कर सकते हैं, अपने जीवन में निणर्य करने की जो शक्ति नारी में हैं, उसको जानना उपयोग करना एक नारी स्वयं करे । समाज में उसके वास्तविक अधिकार प्राप्ति के लिए सक्षम निर्णय हि महिलासशक्तिकरण है।