जीवन पर कुछ संस्कृत के महत्वपूर्ण श्लोक उसके हिंदी और अंग्रेजी अर्थ के साथ पढ़े यहाँ।
येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः ।
ते मृत्युलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।।जिस व्यक्ति के पास विद्या, तप, ज्ञान, शील, गुण और धर्म नहीं है वह हिरण के समान जीवन व्यतीत करता है।
A person who does not have education, penance, knowledge, character, virtue and religion lives like a deer.
प्रेमणा विना जीवनं शून्यमेव न किंचन।
प्रेम के बिना जीवन कुछ भी नहीं है, कुछ भी नहीं।
Life without love is nothing, nothing.
जीवितं क्षणविनाशिशाश्वतं किमपि नात्र।
यह क्षणभुंगर जीवन में कुछ भी शाश्वत नहीं है।
Nothing is eternal in this temporary life.
जीविताशा बलवती धनाशा दुर्बला मम्।।
मेरी जीवन की आशा बलवती है पर धन की आशा दुर्लभ है।
My hope for life is strong but hope for wealth is rare.
नो चेज्जातस्य वैफल्यं कास्य हानिरितिः परा।
जीवन की विफलता से बढ़कर क्या हानि होगी।
What could be a greater loss than the failure of life?
न दाक्षिण्यं न सौशील्यं न कीर्तिःनसेवा नो दया किं जीवनं ते।
ना दान है ना सुशीलता है ना कीर्ति है ना सेवा है ना दया है तो ऐसा जीवन क्या है?
If there is no charity, no good behaviour, no fame, no service, no mercy, then what is such a life?
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति।
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान् स मे प्रियः॥जो हर्ष, द्वेष, शोक और कामनाओं से मुक्त है और जो अच्छे और बुरे दोनों का त्याग करता है, वह मुझे प्रिय है।
He who is free from joy, hatred, sorrow and desire and who renounces both good and evil is dear to me.
सुखं दुःखं न जानामि क्षीणं पुण्यं न जानामि।
तत्त्वज्ञानात् तु मोक्षोऽहम् न च जानामि कर्मणि॥मैं सुख या दुःख को नहीं जानता, न ही मैं क्षीण योग्यता को जानता हूँ। परन्तु मैं तत्त्व के ज्ञान से मुक्त हो गया हूँ और कर्म में नहीं जानता।
I do not know pleasure or pain, nor do I know diminished merit. But I am free from the knowledge of the principle and do not know action.
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपु:।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।।मनुष्य के शरीर में जो आलस्य रहता है, वह (उनका) सबसे बड़ा शत्रु है। मेहनत के समान दूसरा कोई मित्र नहीं, क्योंकि जो परिश्रम करता है वह कभी दुखी नहीं होता।
The laziness that resides in the body of a human being is his greatest enemy. There is no friend like hard work, because the one who works hard is never unhappy.
अलसस्य कुतः विद्या अविद्यस्य कुतः धनम्।
अधनस्य कुतः मित्रम् अमित्रस्य कुतः सुखम् ।।आलसी के लिए विद्या कहाँ, अनपढ़ या मूर्ख के लिए धन कहाँ, दरिद्र के लिए मित्र कहाँ और अमित्र के लिए सुख कहाँ।
Where is education for the lazy, where is wealth for the illiterate or the fool, where is a friend for the poor and where is happiness for an enemy.
यथा द्यौश्च पृथिवी च न बिभीतो न रिष्यतः।
एवा मे प्राण मा विभेः।।जिस प्रकार आकाश और पृथ्वी न तो भय से ग्रस्त होते हैं और न ही नष्ट होते हैं, उसी प्रकार हे मेरे आत्मा! आप भी भयमुक्त रहें।
Just as the heavens and the earth are neither afraid nor destroyed, O my soul, may you also remain free from fear.
दारिद्रय रोग दुःखानि बंधन व्यसनानि च।
आत्मापराध वृक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम्।दरिद्रता, रोग, दुःख, बंधन और विपत्तियाँ अपराध के वृक्ष के फल हैं। मनुष्य को इन फलों का सेवन अवश्य करना चाहिए।
Poverty, disease, sorrow, bondage and adversity are the fruits of the tree of crime. Man must eat these fruits.
सत्यं अपि तत् न वाच्यं यत् उक्तं असुखावहं भवति।
अगर कोई बात सच है लेकिन सुनकर किसी को ठेस पहुंचती है तो उसे नहीं कहना चाहिए।
If something is true but hearing it hurts someone, then it should not be said.
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।
मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है।
The mind is the reason for man's bondage and liberation.
ऐश्वर्ये वा सुविस्तीर्णे व्यसने वा सुदारुणे।
रज्जवेव पुरुषं बद्ध्वा कृतान्तः परिकर्षति॥अत्यधिक ऐश्वर्यवान तथा बुरे व्यसनों मे लिप्त व्यक्ति रस्सियों से बंधे हुए व्यक्ति के समान होते हैं और अन्ततः उनका भाग्य उनको प्रताडित कर अत्यन्त कष्ट देता है।
People who are extremely wealthy and indulge in bad habits are like people tied with ropes and ultimately their fate torments them and causes them extreme suffering.
कण्टकावरणं यादृक्फलितस्य फलाप्तये।
तादृक्दुर्जनसङ्गोSपि साधुसङ्गाय बाधनं॥जिस प्रकार एक फलदायी वृक्ष के कांटे उसके फलों को प्राप्त करणे में बाधा उत्पन्न करते हैं, वैसे ही दुष्ट व्यक्तियों की सङ्गति (मित्रता) भी साधु और सज्जन व्यक्तियों की सङ्गति में बाधा उत्पन्न करती है।
Just as the thorns of a fruit-bearing tree create obstacles in obtaining its fruits, similarly the company (friendship) of evil people also creates obstacles in the company of saints and good men.
येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।
ते मर्त्यलोके भुविभारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति॥जिनमें न ज्ञान है, न तप है, न दान है, न विद्या है, न गुण है, न धर्म है। वे नश्वर संसार में पृथ्वी के बोझ हैं और मानव रूप में हिरण (पशु ) की तरह घूमते हैं।
Those who have no knowledge, no penance, no charity, no education, no virtue, no religion, they are a burden on the earth in the mortal world and roam around like deer (animal) in human form.
न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति।
हविषा कृष्णवर्त्मेन भूय एवाभिवर्धते॥भोग करने से कभी भी कामवासना शान्त नहीं होती है, परन्तु जिस प्रकार हवनकुण्ड में जलती हुई अग्नि में घी आदि की आहुति देने से अग्नि और भी प्रज्ज्वलित हो जाती है वैसे ही कामवासना भी और अधिक भडक उठती है।
Sexual desire is never satisfied by enjoyment, but just as the fire burns more brightly when ghee is offered in the fire-pit, similarly, sexual desire also flares up more.
नारुंतुदः स्यादार्तोSपि न परद्रोहकर्मधीः।
ययास्योद्विजते वाचा नालोक्यां तामुदीरयेत्॥मनुष्य का कर्तव्य है कि यथा सम्भव किसी को पीडा दे कर उसका हृदय न दुखाये, भले ही स्वयं दुःख उठा ले। किसी के प्रति अकारण द्वेष-भाव न रखे और कोई कटु बात कह कर किसी का मन उद्विग्न न करे।
It is the duty of a human being to not hurt anyone by causing them pain, even if he himself has to bear the pain. He should not bear hatred towards anyone without any reason and should not upset anyone by saying harsh words.
अधमाः धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः।
उत्तमाः मानमिच्छन्ति मानो हि महताम् धनम्॥निम्न वर्ग के लोग केवल पैसे में रुचि रखते हैं, और ऐसे लोग सम्मान की परवाह नहीं करते हैं। मध्यम वर्ग धन और सम्मान दोनों चाहता है, और केवल उच्च वर्ग की गरिमा महत्वपूर्ण है। सम्मान पैसे से ज्यादा कीमती है।
People of the lower class are only interested in money, and such people do not care about respect. The middle class wants both money and respect, and only dignity is important for the upper class. Respect is more valuable than money.
कार्यार्थी भजते लोकं यावत्कार्य न सिद्धति।
उत्तीर्णे च परे पारे नौकायां किं प्रयोजनम्।।जिस प्रकार लोग नदी पार करने के बाद नाव को भूल जाते हैं, उसी तरह लोग अपना काम पूरा होने तक दूसरों की प्रशंसा करते हैं और काम पूरा होने के बाद दूसरे को भूल जाते हैं।
Just as people forget the boat after crossing the river, similarly people praise others until their work is completed and forget others after the work is done.
अचोद्यमानानि यथा, पुष्पाणि फलानि च।
स्वं कालं नातिवर्तन्ते, तथा कर्म पुरा कृतम्।जिस तरह फल, फुल बिना किसी प्रेरणा के समय पर उग जाते हैं, उसी प्रकार पहले किये हुए कर्म भी यथासमय ही अपने फल देते हैं। यानिकी कर्मों का फल अनिवार्य रूप से मिलता ही है।
Just as fruits and flowers grow on time without any motivation, similarly the deeds done earlier also give their fruits in due time. That is, the fruits of deeds are definitely received.
दिवसेनैव तत् कुर्याद् येन रात्रौ सुखं वसेत्।
दिनभर ऐसा कार्य करो जिससे रात में चैन की नींद आ सके।
Do such work throughout the day that you can sleep peacefully at night.
ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति य:।
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा।।जो व्यक्ति कर्मफलों को परमेश्वर को समर्पित करके आसक्तिरहित होकर अपना कर्म करता है, वह पापकर्मों से उसी प्रकार अप्रभावित रहता है, जिस प्रकार कमलपत्र जल से अस्पृश्य रहता है।
A person who surrenders the fruits of his actions to the Supreme Lord and performs his duties without attachment remains unaffected by sinful acts just as a lotus leaf remains untouched by water.
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मण:।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मण:।।तू शास्त्रों में बताए गए अपने धर्म के अनुसार कर्म कर, क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा।
You should perform your duties as per the religion mentioned in the scriptures because doing duty is better than not doing it and by not doing duty, you will not even be able to sustain your body.
कर्मणामी भान्ति देवाः परत्र कर्मणैवेह प्लवते मातरिश्वा।
अहोरात्रे विदधत् कर्मणैव अतन्द्रितो नित्यमुदेति सूर्यः।।कर्म के कारण ही देवता चमक रहे हैं। कर्म के कारण ही वायु बह रही है। सूर्य भी आलस्य से रहित कर्म करके नित्य उदय होकर दिन और रात का विधान कर रहा है।
It is because of work that the gods are shining. It is because of work that the wind is blowing. The sun too, by performing work without laziness, rises every day and establishes day and night.
सेवितव्यो महावृक्ष: फ़लच्छाया समन्वित:।
यदि देवाद फलं नास्ति,छाया केन निवार्यते।।एक विशाल वृक्ष की सेवा करनी चाहिए, क्योंकि वह फल और छाया से युक्त होता है। यदि किसी दुर्भाग्य से फल नहीं देता तो उसकी छाया कोई नहीं रोक सकता है।
A huge tree should be served because it gives fruits and shade. If due to some misfortune it does not give fruits, then no one can stop its shade.
काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च।
अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।।हर विद्यार्थी में हमेशा कौवे की तरह कुछ नया सीखाने की चेष्टा, एक बगुले की तरह एक्राग्रता और केन्द्रित ध्यान एक आहत में खुलने वाली कुते के समान नींद, गृहत्यागी और यहाँ पर अल्पाहारी का मतबल अपनी आवश्यकता के अनुसार खाने वाला जैसे पांच लक्षण होते है।
Every student has five characteristics like always trying to teach something new like a crow, concentration and focused attention like a heron, sleep like a hurt dog, renunciation of home and here light eater means one who eats as per his requirement.
दुर्जन:स्वस्वभावेन परकार्ये विनश्यति।
नोदर तृप्तिमायाती मूषक:वस्त्रभक्षक:।।दुष्ट व्यक्ति का स्वभाव ही दूसरे के कार्य बिगाड़ने का होता है। वस्त्रों को काटने वाला चूहाकभी भी पेट भरने के लिए कपड़े नहीं काटता।
The nature of a wicked person is to spoil the work of others. A rat that bites clothes never bites clothes to fill its stomach.
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:ख भाग्भवेत्।।संसार में सभी सुखी हो, निरोगी हो, शुभ दर्शन हो और कोई भी ग्रसित ना हो।
Everyone in the world should be happy, healthy, have auspicious vision and no one should suffer.
धृतिः शमो दमः शौचं कारुण्यं वागनिष्ठुरा।
मित्राणाम् चानभिद्रोहः सप्तैताः समिधः श्रियः।।धैर्य, मन पर अंकुश, इन्द्रियसंयम, पवित्रता, दया, मधुर वाणी और मित्र से द्रोह न करना ये सात चीजें लक्ष्मी को बढ़ाने वाली हैं।
Patience, control over the mind, sense-control, purity, kindness, sweet speech and not betraying a friend are the seven things that increase Lakshmi.
निन्दन्तु नीतिनिपुणाः यदि वा स्तुवन्तु,
लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्।
अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा,
न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः।नीतिनिपुण व्यक्ति चाहे निंदा करे या प्रसंशा, लक्ष्मी आये या चली जाए। मृत्यु आज ही हो जाये या बाद में। धैर्यवान पुरुष के कदम कभी भी न्याय पथ से विचलित नहीं होते।
Whether a wise man criticizes or praises, Lakshmi may come or go, death may occur today or later. The steps of a patient man never deviate from the path of justice.
धैर्यं सर्वत्र सर्वदा, सर्वदा धैर्यमेव हि।
धैर्येण हि सुखं सर्वं, नास्ति दुःखं कदाचन।।धैर्य हर जगह और हर समय में होता है। धैर्य ही से सब सुख होता है, कभी दुःख नहीं होता।
Patience is everywhere and at all times. Patience is the only thing that brings happiness and never sadness.
काकतालीयवत्प्राप्तं दृष्ट्वापि निधिमग्रतः।
न स्वयं दैवमादत्ते पुरुषार्थमपेक्षते।।भले ही भाग्य से, एक खजाना सामने पड़ा हुआ दिखाई दे, (काका-तलिया न्याय के रूप में), भाग्य इसे हाथ में नहीं देता है, कुछ प्रयास (उसे उठाने का) (अभी भी) अपेक्षित है।
Even if by luck, a treasure is seen lying in front, (as in Kaka-Talia Nyaya), luck does not give it in hand, some effort (to pick it up) is (still) required.
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।मेहनत से, उद्योग से काम मिलता है, चाहने से नहीं। सोये हुए सिंह के मुँह में जानवर प्रवेश नहीं करते।
Work is obtained by hard work and industry, not by desire. Animals do not enter the mouth of a sleeping lion.
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महारिपुः।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।।आलस्य शरीर का सबसे बड़ा शत्रु है। मेहनत से अच्छा कोई दोस्त नहीं होता, उसे करने के बाद कोई उदास नहीं रहता।
Laziness is the biggest enemy of the body. There is no better friend than hard work, no one remains sad after doing it.
उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
नहि सुप्तस्य सिंहस्य मुखे प्रविशन्ति मृगाः।।किसी भी कार्य को केवल सक्रिय उत्साह से ही पूरा किया जा सकता है, अकेले काल्पनिक विचारों से कभी नहीं। सोते हुए सिंह के मुख में मृग (पशु) प्रवेश नहीं करते।
Any task can be accomplished only with active enthusiasm, never with imaginary ideas alone. Deer (animals) do not enter the mouth of a sleeping lion.
महाजनस्य संपर्क: कस्य न उन्नतिकारक:।
मद्मपत्रस्थितं तोयं धत्ते मुक्ताफलश्रियम्।।महाजनों और गुरुओं के संपर्क से कौन उन्नति नहीं करता? कमल के पत्ते पर पड़ी पानी की एक बूंद मोती की तरह चमकती है।
Who does not progress by the company of moneylenders and gurus? A drop of water lying on a lotus leaf shines like a pearl.
अविश्रामं वहेत् भारं शीतोष्णं च न विन्दति ।
ससन्तोष स्तथा नित्यं त्रीणि शिक्षेत गर्दभात् ॥विश्राम लिए बिना भार वहन करना, ताप-ठंड ना देखना, सदा संतोष रखना यह तीन चीजें हमें गधे से सीखनी चाहिए।
Carrying load without taking rest, not caring about heat or cold, always being content, these are the three things we should learn from the donkey.
जीवचक्रं भ्रमत्येवं मा धैर्यात्प्रच्युतो भव।
जीवन का चक्र ऐसे ही चलता है इसीलिए धैर्य ना खोए।
The cycle of life goes on like this so don't lose patience.
सद्भिरेव सहासीत सद्भिः कुर्वीत सङ्गतिम्।
सद्भिर्विवादं मैत्री च नासद्भिः किञ्चिदाचरेत्॥सज्जनों के साथ बैठना, सज्जनों के साथ ही संगति करनी चाहिए। सज्जनों के साथ ही विवाद एवं मित्रता करनी चाहिए सज्जनों के साथ कोई व्यवहार नहीं करना चाहिए।
One should sit with gentlemen and keep company with gentlemen only. One should argue and befriend only gentlemen. One should not have any dealings with gentlemen.
काकचेष्टो बकध्यानी श्वाननिद्रस्तथैव च।
अल्पाहारी गृहत्यागी, विद्यार्थी पञ्चलक्षणः॥कोई जैसी चेष्टा अगले जैसा ध्यान कुत्ते जैसी निंद्रा तथा कम खाने वाला और ग्रह का त्याग करने वाला यही विद्यार्थी के पांच लक्षण है।
One's efforts are like those of another, one's attention is like that of a dog, one who eats less and renounces the world, these are the five characteristics of a student.
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्मात् प्रियं हि वक्तव्यं वचने का दरिद्रता॥प्रिय वचन बोलने से सब जन संतुष्ट होते हैं इसलिए प्रिय वचन ही बोले। प्रिया वचन बोलने से कहां दरिद्रता आती अर्थात प्रवचन बोलने से कहीं नहीं मिलता नहीं आती तो प्रिया वचन बोले।
Everyone is satisfied by speaking sweet words, therefore speak only sweet words. Speaking sweet words does not bring poverty i.e. preaching does not help in achieving anything, so speak sweet words.
जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं !
मानोन्नतिं दिशति पापमपा करोति !!बुद्धि की जटिलता को हरने वाला अच्छे दोस्तों का साथ है। बोली सच बोलने लगती है, महान और उन्नति पड़ती है तथा पाप मिट जाता है।
The company of good friends is the one that defeats the complexities of the intellect. One starts speaking the truth, one becomes great and progresses and sins are eradicated.
विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन !
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते !!राजा और विद्वान में कभी तुलना नहीं हो सकती क्योंकि राजा अपने राज्य में पूजा जाता है वही विद्वान जहां जाता है वहां पूजनीय है।
There can never be any comparison between a king and a scholar because a king is worshipped in his kingdom whereas a scholar is revered wherever he goes.
षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता !
निद्रा तद्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रता !!व्यक्ति के बर्बाद होने के छह लक्षण है- नींद, तद्रा, क्रोध, आलस्य एवं काम को टालने की आदत।
There are six symptoms of a person's ruin - sleep, drowsiness, anger, laziness and the habit of procrastinating.
अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते !
अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः !!किसी स्थान पर बिन बुलाए चले जाना, बिना पूछे बोलते रहना, किसी व्यक्ति पर विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करना मूर्ख लोगों के लक्षण हैं।
Going to a place without being invited, talking without asking, trusting a person should not be done because doing such things are the characteristics of foolish people.
निर्विषेणापि सर्पेण कर्तव्या महती फणा।
विषं भवतु वा माऽभूत् फणटोपो भयङ्करः।सांप जहरीला ना होने पर भी फन जरूर उठाता है, अगर वह ऐसा भी ना करें तो लोग उसकी रीड को जूतों से कुचल कर तोड़ देंगे।
Even if the snake is not poisonous, it definitely raises its hood. Even if it does not do so, people will break its spine by crushing it with their shoes.
दारिद्रय रोग दुःखानि बंधन व्यसनानि च।
आत्मापराध वृक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम्।दरिद्र रोग दुख बंधन और बताएं यह आत्मा रूपी वृक्ष के अपराध का फल है जिसका उपभोग मनुष्य को करना ही पड़ता है।
Poverty, disease, sorrow, bondage and tell me that these are the fruits of the crimes of the tree of soul which man has to suffer.
सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् !
वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः।।विवेक में ना रहना सबसे बड़ा दुर्भाग्य है इसलिए बिना सोचे समझे कोई काम नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति सोच समझकर कार्य करता है मां लक्ष्मी स्वयं उसका चुनाव करती है।
Not being prudent is the biggest misfortune, therefore one should not do any work without thinking. Mother Lakshmi herself chooses the person who works after thinking.
न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि !
व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।।जिसे ना चोर चुरा सकता है, ना ही राजा छीन सकता है, ना ही इसे संभालना मुश्किल है, नाही भाइयों में बंटवारा हो सकता है, यह खर्च करने से भरने वाला धन विद्या है जो सर्वश्रेष्ठ है।
Which neither a thief can steal nor a king can snatch, nor is it difficult to handle, nor can it be divided among brothers, this wealth which is filled by spending is knowledge which is the best.
शतेषु जायते शूरः सहस्रेषु च पण्डितः !
वक्ता दशसहस्रेषु दाता भवति वा न वा !!100 लोगों में एक शूरवीर होता है, हजार लोगों में एक पंडित(विद्वान) होता है, 10000 लोगों में वक्ता होता है, लाख लोगों में एक दानी होता है।
There is one brave man among 100 people, one scholar among 1000 people, one speaker among 10,000 people, one generous man among a lakh people.
यस्तु सञ्चरते देशान् सेवते यस्तु पण्डितान् !
तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसियस्तु सञ्चरते देशान् सेवते यस्तु पण्डितान् !
तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसि।।वह व्यक्ति जो भिन्न-भिन्न देशों में भ्रमण करता है एवं विद्वानों की सेवा करता है ऐसे व्यक्ति की बुद्धि उसी तरह बढ़ती है जैसे तेल की बूंद पानी में फैल जाती है।
A person who travels to different countries and serves scholars, his intelligence increases in the same way as a drop of oil spreads in water.
यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रियाः !
चित्ते वाचि क्रियायांच साधुनामेक्रूपता !!साधु जन वही बोलते हैं जो उनके चित्र में होता है और जो उनके चित्र में होता है वही उनकी क्रिया में होता है। ऐसे साधु जन के मन वचन एवं क्रिया में समानता होती है।
Sadhus speak what is in their picture and what is in their picture is what is in their actions. Such Sadhus have similarity in their thoughts, words and actions.
मनःशौचं कर्मशौचं कुलशौचं च भारत ।
देहशौचं च वाक्शौचं शौचं पंञ्चविधं स्मृतम्।मन शौच, कर्म शौच, देश शौच और वाणी शौच यह पांच प्रकार के शौच हैं।
There are five types of purity: mental purity, action purity, place purity and speech purity.
मनसा शस्त्रं तपो वाचा
मन पर नियंत्रण रखें, वाणी पर नियंत्रण रखें।
Control your mind, control your speech.