ऐसी संस्कृत स्लोकः आप यहाँ पढ़ सलते हैं जो हमें स्वास्थ्य, मानव शरीर, पारस्परिक संबंधों और योगा से संबंधित सीख प्रदान करती हैं।
व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं दीर्घायुष्यं बलं सुखं। आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम् ॥
Trees give fruit for charity, rivers flow for charity and cows give milk for charity, that is, this body is also for charity.
व्यायाम से स्वास्थ्य, लम्बी आयु, बल और सुख की प्राप्ति होती है। निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं ।
व्यायामं कुर्वतो नित्यं विरुद्धमपि भोजनम् । विदग्धमविदग्धं वा निर्दोषं परिपच्यते ॥
No matter what kind of bad food the person doing exercise eats, burnt or raw, regardless of his nature, Even against it, it is digested well and does not harm anything.
व्यायाम करने वाला मनुष्य गरिष्ठ, जला हुआ अथवा कच्चा किसी प्रकार का भी खराब भोजन क्यों न हो, चाहे उसकी प्रकृति के भी विरुद्ध हो, भलीभांति पचा जाता है और कुछ भी हानि नहीं पहुंचाता ।
शरीरोपचयः कान्तिर्गात्राणां सुविभक्तता । दीप्ताग्नित्वमनालस्यं स्थिरत्वं लाघवं मृजा ॥
The body grows with exercise. The luster and beauty of the body increases. All the parts of the body are shapely. Digestive power increases. Laziness runs away. The body becomes strong and light and the energy comes. All the three doshas (soil) are purified.
व्यायाम से शरीर बढ़ता है । शरीर की कान्ति वा सुन्दरता बढ़ती है । शरीर के सब अंग सुड़ौल होते हैं । पाचनशक्ति बढ़ती है । आलस्य दूर भागता है । शरीर दृढ़ और हल्का होकर स्फूर्ति आती है । तीनों दोषों की (मृजा) शुद्धि होती है।
न चैनं सहसाक्रम्य जरा समधिरोहति । स्थिरीभवति मांसं च व्यायामाभिरतस्य च ॥
Old age does not attack the exercising man suddenly, the body and flesh of the exercising man are all stable.
व्यायामी मनुष्य पर बुढ़ापा सहसा आक्रमण नहीं करता, व्यायामी पुरुष का शरीर और हाड़ मांस सब स्थिर होते हैं ।
पुनर्वित्तं पुनर्मित्रं पुनर्भार्या पुनर्मही। एतत्सर्वं पुनर्लभ्यं न शरीरं पुनः पुनः ॥
Everything in life can be recovered – wife, kingdom, friends and wealth. The only thing you can never get back is your body. Once your body/health is lost, it can never reach its perfection again. That's why it is important that you take care of your body on a daily basis.
जीवन में सब कुछ वापस पाया जा सकता है- पत्नी, राज्य, मित्र और धन। केवल एक चीज जिसे आप कभी वापस नहीं पा सकते हैं वह है आपका शरीर। एक बार आपका शरीर/स्वास्थ्य खो जाने के बाद, यह फिर से अपनी पूर्णता तक नहीं पहुंच सकता है। इसलिए जरूरी है कि आप रोजाना अपने शरीर की देखभाल करें।
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय। सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥
You should be honest in performing your everyday duties. You should give up the attachment of success and failure. Such a balance can be achieved through yoga.
आपको अपने रोजमर्रा के कर्तव्यों को निभाने में ईमानदार होना चाहिए। आपको सफलता और असफलता के मोह को त्याग देना चाहिए। ऐसा संतुलन योग के जरिए हासिल किया जा सकता है।
भोजनाग्रे सदा पथ्यं लवणाद्रकभक्षणम्। अग्निसन्दीपनम् रूच्यं जिह्वाकण्ठविशोधनं ॥
You should eat fresh ginger with rock salt powder before starting any meal. It will help boost your digestion, clean your throat and tongue, and activate your taste buds as well.
आप कोई भी भोजन शुरू करने से पहले ताजे अदरक को सेंधा नमक पाउडर के साथ खाना चाहिए। यह आपके पाचन को बढ़ावा देने में मदद करेगा, आपके गले और जीभ को साफ करेगा, और आपकी स्वाद कलियों को भी सक्रिय करेगा।
श्रमक्लमपिपासोष्णशीतादीनां सहिष्णुता । आरोग्यं चापि परमं व्यायामदुपजायते ॥
The power to bear labor, tiredness, guilt (sorrow), thirst, cold (winter), heat (heat) etc. comes only through exercise and Ultimate health, that is, health is also achieved through exercise.
श्रम थकावट ग्लानि (दुःख) प्यास शीत (जाड़ा) उष्णता (गर्मी) आदि सहने की शक्ति व्यायाम से ही आती है और परम आरोग्य अर्थात् स्वास्थ्य की प्राप्ति भी व्यायाम से ही होती है ।
न चास्ति सदृशं तेन किंचित्स्थौल्यापकर्षणम् । न च व्यायामिनं मर्त्यमर्दयन्त्यरयो भयात् ॥
There is no better medicine than exercise to remove excessive fatness, his enemies are always afraid of the exercising man and do not hurt him.
अधिक स्थूलता को दूर करने के लिए व्यायाम से बढ़कर कोई और औषधि नहीं है, व्यायामी मनुष्य से उसके शत्रु सर्वदा डरते हैं और उसे दुःख नहीं देते ।
समदोषः समाग्निश्च समधातुमलक्रियः । प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः स्वस्थ इत्यभिधीयते ॥
The person whose doshas are Vata, Pitta and Kapha, Agni (Jathragni), Rasadi seven metals, are in the same state and stable, The activity of stool and urine is fine and all the activities of the body are equal and appropriate, and the person whose mind, senses and soul are happy is healthy.
जिस मनुष्य के दोष वात, पित्त और कफ, अग्नि (जठराग्नि), रसादि सात धातु, सम अवस्था में तथा स्थिर रहते हैं, मल मूत्रादि की क्रिया ठीक होती है और शरीर की सब क्रियायें समान और उचित हैं, और जिसके मन इन्द्रिय और आत्मा प्रसन्न रहें वह मनुष्य स्वस्थ है ।