संस्कृत के विद्वानों के द्वारा कथित 50 श्लोकस जो आपको अच्छी प्रेरणा देगी। संस्कृत के कुछ श्लोकस, कोट्स और वाक्य जो आपको अच्छे विचार प्रदान करेगी। यहाँ महान विद्वानों के द्वारा कहे गए संस्कृत श्लोकस का संग्रह है जो आपको जीवन में अच्छे कर्मों के लिए प्रेरित करेगी।
Some Sanskrit slokas, quotes and sayings that will give you good ideas. Here is a collection of Sanskrit shlokas said by great scholars that will inspire you to do good deeds in life.
अलसस्य कुतः विद्या अविद्यस्य कुतः धनम्।
अधनस्य कुतः मित्रम् अमित्रस्य कुतः सुखम् ॥आलसी व्यक्ति को विद्या कहां, मुर्ख और अनपढ़ और निर्धन व्यक्ति को मित्र कहां, अमित्र को सुख कहां।
Where is knowledge to a lazy person, where is friend to a foolish and illiterate and poor person, where is happiness to an unfriendly person.
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अभ्यासाद्धार्यते विद्या कुलं शीलेन धार्यते।
गुणेन ज्ञायते त्वार्य कोपो नेत्रेण गम्यते॥अभ्यास से विद्या का, शील-स्वभाव से कुल का, गुणों से श्रेष्टता का तथा आँखों से क्रोध का पता लग जाता है ।
Knowledge is known by practice, family by modesty, excellence by virtues and anger by eyes.
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अष्टौ गुणा पुरुषं दीपयंति प्रज्ञा सुशीलत्वदमौ श्रुतं च।
पराक्रमश्चबहुभाषिता च दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च॥आठ गुण मनुष्य को सुशोभित करते है – बुद्धि, अच्छा चरित्र, आत्म-संयम, शास्त्रों का अध्ययन, वीरता, कम बोलना, क्षमता और कृतज्ञता के अनुसार दान।
Eight qualities adorn a man – intelligence, good character, self-restraint, study of scriptures, bravery, speaking less, charity according to ability and gratitude.
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आयुषः क्षण एकोऽपि सर्वरत्नैर्न न लभ्यते।
नीयते स वृथा येन प्रमादः सुमहानहो ॥सभी कीमती रत्नों से कीमती जीवन है जिसका एक क्षण भी वापस नहीं पाया जा सकता है। इसलिए इसे फालतू के कार्यों में खर्च करना बहुत बड़ी गलती है।
Precious of all precious gems is life which cannot be recovered even for a moment. That's why it is a big mistake to spend it in useless works.
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आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण, लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्।
दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना, छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्॥दुर्जन की मित्रता शुरुआत में बड़ी अच्छी होती है और क्रमशः कम होने वाली होती है। सज्जन व्यक्ति की मित्रता पहले कम और बाद में बढ़ने वाली होती है। इस प्रकार से दिन के पूर्वार्ध और परार्ध में अलग-अलग दिखने वाली छाया के जैसी दुर्जन और सज्जनों व्यक्तियों की मित्रता होती है।
The friendship of the wicked is very good in the beginning and gradually it is going to decrease. The friendship of a gentleman is less at first and later increases. In this way, there is friendship between the wicked and the good people like the different visible shadows in the first half and the second half of the day.
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परान्नं च परद्रव्यं तथैव च प्रतिग्रहम्।
परस्त्रीं परनिन्दां च मनसा अपि विवर्जयेत।।पराया अन्न, पराया धन, दान, पराई स्त्री और दूसरे की निंदा, इनकी इच्छा मनुष्य को कभी नहीं करनी चाहिए ।
Man should never wish for other people's food, other people's money, charity, other people's women and condemnation of others.
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अनेकशास्त्रं बहुवेदितव्यम्, अल्पश्च कालो बहवश्च विघ्ना:।
यत् सारभूतं तदुपासितव्यं, हंसो यथा क्षीरमिवाम्भुमध्यात्॥संसार में अनेक शास्त्र, वेद है, बहुत जानने को है लेकिन समय बहुत कम है और विद्या बहुत अधिक है। अतः जो सारभूत है उसका ही सेवन करना चाहिए जैसे हंस जल और दूध में से दूध को ग्रहण कर लेता है ।
There are many scriptures, Vedas in the world, there is a lot to know but time is very less and knowledge is very much. That's why only that which is essential should be consumed like a swan takes milk from water and milk.
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उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥कोई भी काम कड़ी मेहनत के बिना पूरा नहीं किया जा सकता है सिर्फ सोचने भर से कार्य नहीं होते है, उनके लिए प्रयत्न भी करना पड़ता है। कभी भी सोते हुए शेर के मुंह में हिरण खुद नहीं आ जाता उसे शिकार करना पड़ता है।
No work can be completed without hard work, work is not done just by thinking, efforts have to be made for them. The deer itself never enters the mouth of a sleeping lion, it has to be hunted.
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न ही कश्चित् विजानाति किं कस्य श्वो भविष्यति ।
अतः श्वः करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान् ॥किसी को नहीं पता कि कल क्या होगा इसलिए जो भी कार्य करना है आज ही कर ले यही बुद्धिमान इंसान की निशानी है ।
No one knows what will happen tomorrow, so whatever work you want to do, do it today itself, this is the sign of a wise person.
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नास्ति मातृसमा छाय नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राणं नास्ति मातृसमा प्रपा॥माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं। माता के समान इस विश्व में कोई जीवनदाता नहीं ।
There is no shade, no shelter, no protection like a mother. There is no life giver in this world like mother.
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आपदामापन्तीनां हितोऽप्यायाति हेतुताम् ।
मातृजङ्घा हि वत्सस्य स्तम्भीभवति बन्धने ॥जब विपत्तियां आने को होती हैं, तो हितकारी भी उनमें कारण बन जाता है। बछड़े को बांधने मे माँ की जांघ ही खम्भे का काम करती है।
When calamities are about to come, even the benefactor becomes the cause of them. The thigh of the mother acts as a pillar in tying the calf.
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सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमयः पिता।
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत् ।।मनुष्य के लिये उसकी माता सभी तीर्थों के समान तथा पिता सभी देवताओं के समान पूजनीय होते है। अतः उसका यह परम् कर्तव्य है कि वह् उनका अच्छे से आदर और सेवा करे।
For a man, his mother is worshipable like all pilgrimages and father like all gods. So it is his ultimate duty to respect and serve them well.
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तावत्प्रीति भवेत् लोके यावद् दानं प्रदीयते ।
वत्स: क्षीरक्षयं दृष्ट्वा परित्यजति मातरम् ।।लोगों का प्रेम तभी तक रहता है जब तक उनको कुछ मिलता रहता है। मां का दूध सूख जाने के बाद बछड़ा तक उसका साथ छोड़ देता है।
People's love lasts only till they get something. After the mother's milk dries up, even the calf leaves her company.
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विद्या विवादाय धनं मदाय शक्तिः परेषां परिपीडनाय।
खलस्य साधोर् विपरीतमेतद् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय॥दुर्जन की विद्या विवाद के लिये, धन उन्माद के लिये, और शक्ति दूसरों का दमन करने के लिये होती है। सज्जन इसी को ज्ञान, दान, और दूसरों के रक्षण के लिये उपयोग करते हैं।
The knowledge of the wicked is for controversy, money is for frenzy, and power is for suppressing others. Gentlemen use this for knowledge, charity, and protection of others.
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सुसूक्ष्मेणापि रंध्रेण प्रविश्याभ्यंतरं रिपु:
नाशयेत् च शनै: पश्चात् प्लवं सलिलपूरवत् ॥नाव में पानी पतले छेद से भीतर आने लगता है और भर कर उसे डूबा देता है, उसी तरह शत्रु को घुसने का छोटा रास्ता या कोई भेद मिल जाए तो उसी से भीतर आ कर वह कबाड़ कर ही देता है।
Water starts entering the boat through a thin hole and fills it and drowns it, in the same way, if the enemy finds a small way to enter or any difference, then he comes inside through that and destroys it.
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महाजनस्य संपर्क: कस्य न उन्नतिकारक:।
मद्मपत्रस्थितं तोयं धत्ते मुक्ताफलश्रियम् ॥महाजनों गुरुओं के संपर्क से किस की उन्नति नहीं होती। कमल के पत्ते पर पड़ी पानी की बूंद मोती की तरह चमकती है।
Who doesn't progress by contact with moneylenders and gurus. A drop of water lying on a lotus leaf shines like a pearl.
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श्रूयतां धर्मसर्वस्वं, श्रुत्वा चैवावधार्यताम् ।
आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत् ।।धर्म का सार तत्व यह है कि जो आप को बुरा लगता है वह काम आप दूसरों के लिए भी न करें ।
The essence of religion is that you should not do the work which you feel bad for others.
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मानात् वा यदि वा लोभात् क्रोधात् वा यदि वा भयात्।
यो न्यायं अन्यथा ब्रूते स याति नरकं नरः ।।कहा गया है कि यदि कोई अहंकार के कारण, लोभ से, क्रोध से या डर से गलत फैसला करता है तो उसे नरक को जाना पड़ता है।
It has been said that if someone takes a wrong decision due to ego, greed, anger or fear then he has to go to hell.
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दारिद्रय रोग दुःखानि बंधन व्यसनानि च ।
आत्मापराध वृक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम् ।।दरिद्रता , रोग, दुख, बंधन और विपदाएं तो अपराध रूपी वृक्ष के फल हैं। इन फलों का उपभोग मनुष्य को करना ही पड़ता है ।
Poverty, disease, sorrow, bondage and calamities are the fruits of the tree of crime. Man has to consume these fruits.
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त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्।
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ।।कहते हैं कि कुल की भलाई के लिए की किसी एक को छोड़ना पड़े तो उसे छोड़ देना चाहिए। गांव की भलाई के लिए यदि किसी एक परिवार का नुकसान हो रहा हो तो उसे सह लेना चाहिए। जनपद के ऊपर आफत आ जाए और वह किसी एक गांव के नुकसान से टल सकती हो तो उसे भी झेल लेना चाहिए। पर अगर खतरा अपने ऊपर आ पड़े तो सारी दुनिया छोड़ देनी चाहिए।
It is said that for the good of the whole, if one has to be abandoned, then he should be abandoned. For the good of the village, if any one family is being harmed, then it should be tolerated. If a calamity befalls the district and it can be averted by the loss of any one village, then that too should be tolerated. But if danger comes upon oneself, then the whole world should be left.
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नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते वने।
विक्रमार्जितसत्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता ॥सिंह को जंगल का राजा नियुक्त करने के लिए न तो कोई अभिषेक किया जाता है, न कोई संस्कार। अपने गुण और पराक्रम से वह खुद ही मृगेंद्रपद प्राप्त करता है।
There is neither any consecration nor any ceremony to appoint a lion as the king of the jungle. He himself attains Mrigendrapad by his qualities and bravery.
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पश्य कर्म वशात्प्राप्तं भोज्यकालेऽपि भोजनम् ।
हस्तोद्यम विना वक्त्रं प्रविशेत न कथंचन ॥भोजन थाली में परोस कर सामने रखा हो पर जब तक उसे उठा कर मुंह में नहीं डालोगे , वह अपने आप मुंह में तो चला नहीं जाएगा।
Food is served in a plate and placed in front of you, but unless you pick it up and put it in your mouth, it will not go into your mouth on its own.
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आहार निद्रा भय मैथुनं च सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम् ।
धर्मो हि तेषामधिको विशेष: धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ॥आहार, निद्रा, भय और मैथुन– ये तो इन्सान और पशु में समान है। इन्सान में विशेष केवल धर्म है, अर्थात् बिना धर्म के लोग पशुतुल्य है।
Food, sleep, fear and sex – these are the same in humans and animals. Only religion is special in humans, that is, people without religion are like animals.
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धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः ।
तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते ॥धर्म को जाननेवाले, धर्म मुताबिक आचरण करनेवाले, धर्मपरायण, और सब शास्त्रों में से तत्त्वों का आदेश करनेवाले गुरु कहे जाते हैं।
Those who know Dharma, who behave according to Dharma, who are pious, and who order the elements from all the scriptures are called Guru.
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विवादो धनसम्बन्धो याचनं चातिभाषणम् ।
आदानमग्रतः स्थानं मैत्रीभङ्गस्य हेतवः ॥वाद-विवाद, धन के लिये सम्बन्ध बनाना, माँगना, अधिक बोलना, ऋण लेना, आगे निकलने की चाह रखना – यह सब मित्रता के टूटने में कारण बनते हैं।
Arguments, making relationships for money, demanding, speaking more, taking loans, wanting to get ahead – all these become reasons for the break of friendship.
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यस्य कृत्यं न विघ्नन्ति शीतमुष्णं भयं रतिः ।
समृद्धिरसमृद्धिर्वा स वै पण्डित उच्यते ॥जो व्यक्ति सरदी-गरमी, अमीरी-गरीबी, प्रेम-धृणा इत्यादि विषय परिस्थितियों में भी विचलित नहीं होता और तटस्थ भाव से अपना राजधर्म निभाता है, वही सच्चा ज्ञानी है।
The person who does not get distracted even in the circumstances of cold-heat, richness-poverty, love-hate etc. and performs his royal duty with a neutral spirit, he is a true scholar.
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उद्योगे नास्ति दारिद्रयं जपतो नास्ति पातकम् ।
मौनेन कलहो नास्ति जागृतस्य च न भयम्॥उद्यम से दरिद्रता तथा जप से पाप दूर होता है। मौन रहने से कलह और जागते रहने से भय नहीं होता ।
Poverty is removed by enterprise and sin is removed by chanting. There is no discord by being silent and there is no fear by being awake.
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आत्मार्थं जीवलोकेऽस्मिन् को न जीवति मानवः ।
परं परोपकारार्थं यो जीवति स जीवति ॥इस जीवलोक में स्वयं के लिए कौन नहीं जीता ? परंतु, जो परोपकार के लिए जीता है, वही सच्चा जीना है।
Who does not live for himself in this world? But, the one who lives for charity, that is the true living.
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शनैः पन्थाः शनैः कन्था शनैः पर्वतलङ्घनम् ।
शनैर्विद्या शनैर्वित्तं पञ्चैतनि शनैः शनैः ॥राह धीरे धीरे कटती है, कपड़ा धीरे धीरे बुनता है, पर्वत धीरे धीरे चढा जाता है, विद्या और धन भी धीरे-धीरे प्राप्त होते हैं, ये पाँचों धीरे धीरे ही होते हैं ।
The path is cut slowly, the cloth is woven slowly, the mountain is climbed slowly, knowledge and wealth are also obtained slowly, all these five happen slowly.
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युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु ।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा ॥जो खाने, सोने, आमोद-प्रमोद तथा काम करने की आदतों में नियमित रहता है, वह योगाभ्यास द्वारा समस्त भौतिक क्लेशों को नष्ट कर सकता है।
One who is regular in the habits of eating, sleeping, enjoying and working, can destroy all material afflictions by the practice of yoga.
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आढ् यतो वापि दरिद्रो वा दुःखित सुखितोऽपिवा ।
निर्दोषश्च सदोषश्च व्यस्यः परमा गतिः ॥चाहे धनी हो या निर्धन, दुःखी हो या सुखी, निर्दोष हो या सदोष – मित्र ही मनुष्य का सबसे बड़ा सहारा होता है।
Whether rich or poor, sad or happy, innocent or guilty - friend is the biggest support of a man.
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न ही कश्चित् विजानाति किं कस्य श्वो भविष्यति ।
अतः श्वः करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान्॥कल क्या होगा यह कोई नहीं जानता है इसलिए कल के करने योग्य कार्य को आज कर लेने वाला ही बुद्धिमान है ।
No one knows what will happen tomorrow, so the one who does the work that can be done tomorrow is wise.
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कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित् कस्यचित् रिपु:।
अर्थतस्तु निबध्यन्ते, मित्राणि रिपवस्तथा ॥न कोई किसी का मित्र है और न ही शत्रु, कार्यवश ही लोग मित्र और शत्रु बनते हैं ।
No one is friend and no one is enemy, people become friends and enemies because of work.
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मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च ।
दुःखितैः सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति ॥मूर्ख शिष्य को पढ़ाने पर , दुष्ट स्त्री के साथ जीवन बिताने पर तथा दुःखियों- रोगियों के बीच में रहने पर विद्वान व्यक्ति भी दुःखी हो ही जाता है ।
Even a learned person becomes sad after teaching a foolish disciple, living with a wicked woman and being in the midst of suffering and sick people.
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दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः । ससर्पे गृहे वासो मृत्युरेव न संशयः ॥
दुष्ट पत्नी , शठ मित्र , उत्तर देने वाला सेवक तथा सांप वाले घर में रहना , ये मृत्यु के कारण हैं इसमें सन्देह नहीं करनी चाहिए ।
Evil wife, false friend, answerable servant and living in a house with snakes, these are the causes of death, there should be no doubt about it.
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धनिकः श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पञ्चमः। पञ्च यत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवसे वसेत ॥
जहां कोई सेठ, वेदपाठी विद्वान, राजा और वैद्य न हो, जहां कोई नदी न हो, इन पांच स्थानों पर एक दिन भी नहीं रहना चाहिए ।
Where there is no Seth, Vedapathi scholar, king and doctor, where there is no river, one should not stay at these five places even for a day.
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जानीयात्प्रेषणेभृत्यान् बान्धवान्व्यसनाऽऽगमे। मित्रं याऽऽपत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये ॥
किसी महत्वपूर्ण कार्य पर भेज़ते समय सेवक की पहचान होती है । दुःख के समय में बन्धु-बान्धवों की, विपत्ति के समय मित्र की तथा धन नष्ट हो जाने पर पत्नी की परीक्षा होती है ।
The servant is identified while sending on some important work. Relatives are tested in times of sorrow, friends in times of calamity, and wives in times of loss of wealth.
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यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः। न च विद्यागमोऽप्यस्ति वासस्तत्र न कारयेत् ॥
जिस देश में सम्मान न हो, जहाँ कोई आजीविका न मिले , जहाँ अपना कोई भाई-बन्धु न रहता हो और जहाँ विद्या-अध्ययन सम्भव न हो, ऐसे स्थान पर नहीं रहना चाहिए ।
One should not live in a country where there is no respect, where there is no livelihood, where there are no relatives and friends and where education is not possible.
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माता यस्य गृहे नास्ति भार्या चाप्रियवादिनी। अरण्यं तेन गन्तव्यं यथारण्यं तथा गृहम् ॥
जिसके घर में न माता हो और न स्त्री प्रियवादिनी हो , उसे वन में चले जाना चाहिए क्योंकि उसके लिए घर और वन दोनों समान ही हैं ।
One who does not have a mother or a female lover in his house, he should go to the forest because for him both the house and the forest are the same.
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आपदर्थे धनं रक्षेद् दारान् रक्षेद् धनैरपि। आत्मानं सततं रक्षेद् दारैरपि धनैरपि ॥
विपत्ति के समय के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए । धन से अधिक रक्षा पत्नी की करनी चाहिए । किन्तु अपनी रक्षा का प्रसन सम्मुख आने पर धन और पत्नी का बलिदान भी करना पड़े तो नहीं चूकना चाहिए ।
Money should be saved for the time of calamity. Should protect wife over money . But even if you have to sacrifice money and wife when the pleasure of your protection comes in front, you should not miss it.
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लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता। पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात्तत्र संगतिम् ॥
जिस स्थान पर आजीविका न मिले, लोगों में भय, और लज्जा, उदारता तथा दान देने की प्रवृत्ति न हो, ऐसी पांच जगहों को भी मनुष्य को अपने निवास के लिए नहीं चुनना चाहिए ।
A person should not choose any of these five places for his abode, where there is no livelihood, there is no fear and shame, generosity and charity among the people.
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आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रुसण्कटे। राजद्वारे श्मशाने च यात्तिष्ठति स बान्धवः ॥
जब कोई बीमार होने पर, असमय शत्रु से घिर जाने पर, राजकार्य में सहायक रूप में तथा मृत्यु पर श्मशान भूमि में ले जाने वाला व्यक्ति सच्चा मित्र और बन्धु है ।
When someone is sick, when he is surrounded by an untimely enemy, who helps him in the work of government and takes him to the cremation ground when he dies, he is a true friend and brother.
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भोज्यं भोजनशक्तिश्च रतिशक्तिर वरांगना । विभवो दानशक्तिश्च नाऽल्पस्य तपसः फलम् ॥
भोज्य पदाथ, भोजन-शक्ति, रतिशक्ति, सुन्दर स्त्री, वैभव तथा दान-शक्ति, ये सब सुख किसी अल्प तपस्या का फल नहीं होते ।
Food items, food-power, night-power, beautiful women, splendor and charity-power, all these pleasures are not the result of a little penance.
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भोज्यं भोजनशक्तिश्च रतिशक्तिर वरांगना । विभवो दानशक्तिश्च नाऽल्पस्य तपसः फलम् ॥
भोज्य पदाथ, भोजन-शक्ति, रतिशक्ति, सुन्दर स्त्री, वैभव तथा दान-शक्ति, ये सब सुख किसी अल्प तपस्या का फल नहीं होते ।
Food items, food-power, night-power, beautiful women, splendor and charity-power, all these pleasures are not the result of a little penance.
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निषेवते प्रशस्तानी निन्दितानी न सेवते । अनास्तिकः श्रद्धान एतत् पण्डितलक्षणम् ॥
सद्गुण, शुभ कर्म, भगवान् के प्रति श्रद्धा और विश्वास, यज्ञ, दान, जनकल्याण आदि, ये सब ज्ञानीजन के शुभ- लक्षण होते हैं ।
Good qualities, auspicious deeds, devotion and faith in God, Yagya, charity, public welfare etc., all these are auspicious characteristics of the wise.
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क्रोधो हर्षश्च दर्पश्च ह्रीः स्तम्भो मान्यमानिता। यमर्थान् नापकर्षन्ति स वै पण्डित उच्यते ॥
जो व्यक्ति क्रोध, अहंकार, दुष्कर्म, अति-उत्साह, स्वार्थ, उद्दंडता इत्यादि दुर्गुणों की और आकर्षित नहीं होते, वे ही सच्चे ज्ञानी हैं ।
The person who does not get attracted towards bad qualities like anger, arrogance, misdeeds, over-enthusiasm, selfishness, arrogance etc., they are the true wise.
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यस्य कृत्यं न विघ्नन्ति शीतमुष्णं भयं रतिः । समृद्धिरसमृद्धिर्वा स वै पण्डित उच्यते ॥
जो व्यक्ति सरदी-गरमी, अमीरी-गरीबी, प्रेम-धृणा इत्यादि विषय परिस्थितियों में भी विचलित नहीं होता और तटस्थ भाव से अपना राजधर्म निभाता है, वही सच्चा ज्ञानी है ।
The person who does not get distracted even in the subject of cold-heat, richness-poverty, love-hate etc. One who follows his Rajdharma, he is the real wise.
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क्षिप्रं विजानाति चिरं शृणोति विज्ञाय चार्थ भते न कामात्। नासम्पृष्टो व्युपयुङ्क्ते परार्थे तत् प्रज्ञानं प्रथमं पण्डितस्य ॥
ज्ञानी लोग किसी भी विषय को शीघ्र समझ लेते हैं, लेकिन उसे धैर्यपूर्वक देर तक सुनते रहते हैं । किसी भी कार्य को कर्तव्य समझकर करते है, कामना समझकर नहीं और व्यर्थ किसी के विषय में बात नहीं करते ।
Wise people understand any subject quickly, but keep listening to it patiently for a long time. He does any work considering it as his duty, not as a wish and does not talk unnecessarily about anyone.
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आत्मज्ञानं समारम्भः तितिक्षा धर्मनित्यता । यमर्थान्नापकर्षन्ति स वै पण्डित उच्यते ॥
जो अपने योग्यता से भली-भाँति परिचित हो और उसी के अनुसार कल्याणकारी कार्य करता हो, जिसमें दुःख सहने की शक्ति हो, जो विपरीत स्थिति में भी धर्म-पथ से विमुख नहीं होता, ऐसा व्यक्ति ही सच्चा ज्ञानी कहलाता है ।
The one who is well aware of his ability and does welfare work accordingly, who has the power to bear sorrow, who does not deviate from the path of religion even in adverse situation, such a person is called a true wise person.
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यस्य कृत्यं न जानन्ति मन्त्रं वा मन्त्रितं परे। कृतमेवास्य जानन्ति स वै पण्डित उच्यते ॥
दूसरे लोग जिसके कार्य, व्यवहार, गोपनीयता, सलाह और विचार को कार्य पूरा हो जाने के बाद ही जान पाते हैं, वही व्यक्ति ज्ञानी कहलाता है ।
The person whose work, behavior, privacy, advice and thoughts are known to others only after the work is completed, that person is called knowledgeable.
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यथाशक्ति चिकीर्षन्ति यथाशक्ति च कुर्वते। न किञ्चिदवमन्यन्ते नराः पण्डितबुद्धयः ॥
विवेकशील और बुद्धिमान व्यक्ति सदैव ये चेष्ठा करते हैं की वे यथाशक्ति कार्य करें और वे वैसा करते भी हैं तथा किसी वस्तु को तुच्छ समझकर उसकी उपेक्षा नहीं करते, वे ही सच्चे ज्ञानी हैं ।
Reasonable and intelligent people always try to work as per their capacity and they do that and do not ignore any thing considering it as trivial, they are the true wise ones.
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