Sanskrit shlokas on wisdom with their hindi and english meaning . Shloka on knowledge
चलत्येकेन पादेन तिष्ठत्यन्येन पण्डितः ।
नापरीक्ष्य परं स्थानं पूर्वमायतनं त्यजेत् ॥बुद्धिमान मनुष्य एक पैर से चलता है और दूसरे पैर से खडा रहता है (आधार लेता है) । अर्थात् दूसरा स्थान जाने और पाये बगैर पूर्वस्थान छोडना नहीं ।
An intelligent person walks on one foot and stands (takes support) on the other foot. That is, he does not leave the previous place without knowing and finding the next place.
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अर्थनाशं मनस्तापं गृहे दुश्चरितानि च ।
वञ्चनं चापमानं च मतिमान्न प्रकाशयेत् ॥संपत्ति की हानि, मन का संताप, घर के दूषण और अपमानजनक वचन, इन बातों को बुद्धिमान प्रकाश में नहीं लाता ।
Loss of property, anguish of mind, pollution of home and insulting words, a wise man does not bring these things to light.
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बुद्धिर्यस्य बलं तस्य निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम् । पश्य सिंहो मदोन्मत्तः शशकेन निपातितः ॥
जिसके पास बुद्धि है, उसके पास बल है । पर जिसके पास बुद्धि नहीं उसके पास बल कहाँ ? देखो, बलवान शेर को (चतुर) लोमडी ने कैसे मार डाला (था) !
He who has wisdom has strength. But he who does not have wisdom has no strength. See how the clever fox killed the strong lion!
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को देशः कानि मित्राणि-कःकालःकौ व्ययागमौ । कश्चाहं का च मे शक्ति-रितिचिन्त्यं मुहुर्मुहु ॥
(मेरा) देश कौन-सा, (मेरे) मित्र कौन, काल कौन-सा, आवक-खर्च कितना, मैं कौन, मेरी शक्ति कितनी, ये समजदार इन्सान ने हर घडी (बार) सोचना चाहिए ।
Which is (my) country, who is (my) friend, what is the time, how much is my income and expenditure, who am I, how much is my strength, an intelligent person should think about this every moment (time).
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l-shlok13.png" alt="Slokas Image" width="350" height="250" class="img-thumbnail">यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम् ।
लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति ॥जिसे स्वयं की प्रज्ञा (तेज बुद्धि) नहीं उसे शास्त्र किस काम का ? अंधे मनुष्य को दर्पण किस काम का ?
What is the use of scriptures to a person who does not have his own wisdom (sharp intelligence)? What is the use of a mirror to a blind person?
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स्थानभ्रष्टा न शोभन्ते दन्ताः केशा नखा नराः ।
इति संचिन्त्य मतिमान्न स्वस्थानं न परित्यजेत् ॥दांत, बाल, नाखुन और इन्सान, ये चार स्थानभ्रष्ट होने पर अच्छे नहीं लगते । यह समजकर, बुद्धिमान मनुष्य ने अपना (उचित) स्थान छोडना नहीं ।
Teeth, hair, nails and human beings, these four do not look good when they are displaced from their place. Knowing this, a wise man does not leave his (proper) place.
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विद्वानेवोपदेष्टव्यो नाविद्वांस्तु कदाचन । वानरानुपदिश्याथ स्थानभ्रष्टा ययुः खगाः ॥
विद्वान (समजदार) को ही उपदेश करना चाहिए, नहीं कि अविद्वान को । (ध्यान में रहे कि) बंदरो को उपदेश करके पंछी स्थानभ्रष्ट हो गये ।
Only a learned person (wise person) should preach, not a non-learned person. (Keep in mind that) by preaching to monkeys, birds got displaced.
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गन्धः सुवर्णे फलमिक्षुदण्डे नाकारि पुष्पं खलु चन्दनेषु ।
विद्वान् धनाढ्यो न तु दीर्घजीवी धातुः पुरा कोऽपि न बुद्धिदोऽभूत ॥सोने में सुगंध, गन्ने को फल और चन्दन वृक्ष को फूल होते नहीं है । वैसे ही, विद्वान कभी धनवान और दीर्घजीवी नहीं होता है । इस विषय में ब्रह्मदेव को दिमाग देनेवाला पूर्व कभी मिला नहीं है ।
Gold does not have fragrance, sugarcane does not have fruits and sandalwood tree does not have flowers. Similarly, a learned person never becomes rich and long-lived. Brahmadev never found a person who could give him advice in this matter.
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शुश्रूषा श्रवणं चैव ग्रहणं धारणां तथा ।
ऊहापोहोऽर्थ विज्ञानं तत्त्वज्ञानं च धीगुणाः ॥शुश्रूषा, श्रवण, ग्रहण, धारण, चिंतन, उहापोह, अर्थविज्ञान, और तत्त्वज्ञान – ये बुद्धि के गुण हैं ।
Caring, listening, receiving, holding, thinking, deliberation, economics and philosophy – these are the qualities of intelligence.
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देशाटनं पण्डित मित्रता च वाराङ्गना राजसभा प्रवेशः ।
अनेकशास्त्रार्थ विलोकनं च चातुर्य मूलानि भवन्ति पञ्च ॥देशाटन, बुद्धिमान से मैत्री, वारांगना, राजसभा में प्रवेश, और शास्त्रों का परिशीलन – ये पाँच चतुराई के मूल है ।
Travelling, making friendship with an intelligent person, visiting a courtesan, entering the royal court and studying scriptures are the five sources of cleverness.
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स्थानभ्रष्टा न शोभन्ते दन्ताः केसा नखा नराः ।
इति सञ्चिन्त्य मतिमान् स्वस्थानं न परित्यजेत् ॥दांत, बाल, नाखून, और नर – ये यदि स्थानभ्रष्ट हो तो शोभा नहीं देते; ऐसा समजकर, मतिमान इन्सान ने स्वस्थान का त्याग नहीं करना चाहिए ।
Teeth, hair, nails and man - if they are out of place they do not look good; knowing this, a wise person should not abandon his place of residence.
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यस्तु सञ्चरते देशान् यस्तु सेवेत पण्डितान् ।
तस्य विस्तारिता बुद्धिः तैल बिन्दु रिवाम्भसि ॥जो देशों में घूमता है, जो पंडितों की सेवा करता है, उसकी बुद्धि पानी में तेल के बिंदुवत् विस्तृत होती है ।
He who travels in different countries and serves learned men, his intellect expands like a drop of oil in water.
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यो न सञ्चरते देशान् यो न सेवेत पण्डितान् ।
तस्य सङ्कुचिता बुद्धि र्धुतबिन्दु रिवाम्भसि ॥जो देशों में घूमता नहीं, जो पंडितों की सेवा करता नहीं, उसकी बुद्धि पानी में घी के बिंदुवत् संकुचित रहती है ।
He who does not travel to different countries and does not serve learned men, his intellect remains narrow like a drop of ghee in water.
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परोपदेश पाण्डित्ये शिष्टाः सर्वे भवन्ति वै ।
विस्मरन्ती ह शिष्टत्वं स्वकार्ये समुपस्थिते ॥दूसरे को उपदेश देते वक्त सब शयाने बन जाते हैं; पर स्वयं कार्य करने की बारी आती है, तब पाण्डित्य भूल जाते हैं ।
Everyone becomes a fool when giving advice to others; but when it comes to doing the work themselves, they forget their scholarship.
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परोपदेशे पाण्डित्यं सर्वेषां सुकरं नृणाम् ।
धर्मे स्वीयमनुष्ठानं कस्यचित्तु महात्मनः ॥दूसरों को उपदेश देने में पांडित्य बताना इन्सान के लिए आसान है; पर उसके मुताबिक खुद का आचरण तो किसी महात्मा का हि होता है ।
It is easy for a person to show his erudition in preaching to others; but his own conduct is that of a Mahatma.
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सत्यं तपो ज्ञानमहिंसता च विद्वत्प्रणामं च सुशीलता च । एतानि यो धारयति स विद्वान् न केवलं यः पठते स विद्वान् ॥
सत्य, तप, ज्ञान, अहिंसा, विद्वानों को प्रणाम, (और) सुशीलता – इन गुणों को जो धारण करता है, वह विद्वान और नहीं कि जो केवल अभ्यास करता है वह ।
Truth, penance, knowledge, non-violence, respect for the learned, (and) good behaviour – he who possesses these qualities is a learned person and not one who merely practises them.
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निषेवते प्रशस्तानि निन्दितानि न सेवते ।
अनास्तिकः श्रद्धानः एतत् पण्डितलक्षणम् ॥सत्पुरुषों की सेवा, निंदितों का त्याग, अनास्तिक होना, (और) श्रद्धावान होना – ये पंडित के लक्षण हैं ।
Serving good people, forsaking those who are condemned, being an atheist, and being a person of faith - these are the characteristics of a Pandit.
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रत्नैर्महार्हैस्तुतुषुर्न देवाः न भेजिरे भीमविषेण भीतिं ।
सुधां विना न प्रययुर्विरामम् न निश्चितार्थाद्विरमन्ति धीराः ॥अति मूल्यवान रत्नों के ढेर मिलने पर देव संतुष्ट न हुए, या भयंकर विष निकलने पर वे डरे नहीं; अमृत न मिलने तक वे रुके नहीं (डँटे रहे) । उसी तरह, धीर इन्सान निश्चित किये कामों में से पीछे नहीं हटते ।
The gods were not satisfied even after getting heaps of precious gems, or they were not afraid even after getting deadly poison; they did not stop (remained adamant) until they got Amrit (nectar). In the same way, patient people do not back out from the tasks they have decided.
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नेयं स्वर्णपुरी लङ्का रोचते मम लक्ष्मण ।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥हे लक्ष्मण ! यह स्वर्णपुरी लंका मुझे अच्छी नहीं लगती । माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बडे होते है ।
O Lakshmana! I do not like this golden city Lanka. Mother and motherland are greater than even heaven.
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यस्मिन् देशे न सन्मानो न प्रीति र्न च बान्धवाः । न च विद्यागमः कश्चित् न तत्र दिवसं वसेत् ॥
जिस देश में सन्मान नहीं, प्रीति नहीं, संबंधी नहीं, और जहाँ विद्या मिलना संभव न हो, वहाँ एक दिन भी नहीं ठहरना चाहिए ।
One should not stay even for a day in a country where there is no respect, no love, no relatives and where it is not possible to gain knowledge.
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मर्कटस्य सुरापानं तत्र वृश्चिकदंशनम् । तन्मध्ये भूतसंचारो यद्वा तद्वा भविष्यति ॥
बंदर ने शराब पी, उसे बिच्छु ने काटा, उपर से उस में भूत प्रविष्ट हुआ, फिर सर्वथा अनिष्ट ही होगा (होने में क्या शेष बचेगा ?) ।
The monkey drank alcohol, a scorpion stung him, a ghost entered him, then something terrible will happen (what will be left to happen?).
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पन्चाग्न्यो मनुष्येण परिचर्या: प्रयत्नत:।
पिता माताग्निरात्मा च गुरुश्च भरतर्षभ ॥माता, पिता, अग्नि, आत्मा और गुरु इन्हें पंचाग्नी कहा गया है। मनुष्य को इन पाँच प्रकार की अग्नि की सजगता से सेवा-सुश्रुषा करनी चाहिए । इनकी उपेक्षा करके हानि होती है ।
Mother, father, fire, soul and guru are called Panchagni. Man should do service and care with the awareness of these five types of fire. Ignoring them leads to loss.
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