Chanakya Slokas

Chanakya was an Indian teacher, economist and a political adviser. He is also known as Kautilya or Vishnu Gupta. Even as a child, Chanakya had the qualities of a born leader. His level of knowledge was beyond children of his age.

He played a key role in the establishment of the Maurya dynasty. Chanakya slokas are useful slokas for our day-to-day life and environment. His slokas give us very valuable insight into society and political life. Chanakya (चाणक्य) is one of the greatest people in the ancient Indian history. We can read more about him on wikipedia.

Here is best collection of Chanakya'Slokas Or Quotes in Sanskrit with Hindi meanings:

Image of Chanakya

विद्वान् प्रशस्यते लोके विद्वान् सर्वत्र गौरवम्। विद्वया लभते सर्वं विद्या सर्वत्र पूज्यते॥

भावार्थ :

विद्वान की लोक में प्रशंसा होती है, विद्वान को सर्वत्र गौरब मिलता है, विद्या से सब कुछ प्राप्त होता है और विद्या की सर्वत्र पूजा होती है ।

परस्परस्य मर्माणि ये भाषन्ते नराधमाः। ते एव विलयं यान्ति वल्मीकोदरसर्पवत्॥

भावार्थ :

जो व्यक्ति परस्पर एक - दूसरे की बातों को अन्य लोगों को बता देते हैं वे बांबी के अन्दर के सांप के समान नष्ट हो जाते हैं ।

सर्वौषधीनामममृतं प्रधानं सर्वेषु सौख्येष्वशनं प्रधानम्। सर्वेन्द्रियाणां नयनं प्रधानं सर्वेषु गात्रेषु शिरः प्रधानम्॥

भावार्थ :

सभी औषधियों में अमृत (गिलोय) प्रधान है । सभी सुखों में भोजन प्रधान है । सभी इंद्रियों में आँखे मुख्य हैं । सभी अंगों में सर महत्वपूर्ण है ।

विद्यार्थी सेवकः पान्थः क्षुधार्तो भयकातरः। भाण्डारी च प्रतिहारी सप्तसुप्तान् प्रबोधयेत॥

भावार्थ :

विद्यार्थी, सेवक, पथिक, भूख से दुःखी, भयभीत, भण्डारी, द्वारपाल - इन सातों को सोते हुए से जगा देना चाहिए ।

अहिं नृपं च शार्दूलं वराटं बालकं तथा। परश्वानं च मूर्खं च सप्तसुप्तान् बोधयेत्॥

भावार्थ :

सांप, राजा, शेर, बर्र, बच्चा, दूसरे का कुत्ता तथा मूर्ख इनको सोए से नहीं जगाना चाहिए ।

दरिद्रता धीरयता विराजते कुवस्त्रता स्वच्छतया विराजते। कदन्नता चोष्णतया विराजते कुरूपता शीलतया विराजते॥

भावार्थ :

धीरज से निर्धनता भी सुन्दर लगती है, साफ रहने पर मामूली वस्त्र भी अच्छे लगते हैं, गर्म किये जाने पर बासी भोजन भी सुन्दर जान परता है और शील - स्वभाव से कुरूपता भी सुन्दर लगती है ।

धनहीनो न च हीनश्च धनिक स सुनिश्चयः। विद्या रत्नेन हीनो यः स हीनः सर्ववस्तुषु॥

भावार्थ :

धनहीन व्यक्ति हीन नहीं कहा जाता । उसे धनी ही समझना चाहिए । जो विद्यारत्न से है, वस्तुतः वह सभी वस्तुओं में हीन है ।

दृष्टिपूतं न्यसेत् पादं वस्त्रपूतं जलं पिवेत्। शास्त्रपूतं वदेद् वाक्यं मनः पूतं समाचरेत्॥

भावार्थ :

आँख से अच्छी तरह देख कर पांव रखना चाहिए जल वस्त्र से छानकर पीना चाहिए । शाश्त्रों के अनुसार ही बात कहनी चाहिए तथा जिस काम को करने का मन आज्ञा दे, वही करना चाहिए ।

सुखार्थी चेत् त्यजेद्विद्यां त्यजेद्विद्यां विद्यार्थी चेत् त्यजेत्सुखम्। सुखार्थिनः कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिनः सुखम्॥

भावार्थ :

यदि सुखों की इच्छा है, तो विद्या त्याग दो और यदि विद्या की इच्छा है, तो सुखों का त्याग कर दो । सुख चाहनेवाले को विद्या कहां तथा विद्या चाहनेवाले को सुख कहां ।

कवयः किं न पश्यन्ति किं न कुर्वन्ति योषितः। मद्यपा किं न जल्पन्ति किं न खादन्ति वायसाः॥

भावार्थ :

कवि क्या नहीं देखते ? स्त्रियां क्या नहीं करतीं ? शराबी क्या नहीं बकते ? तथा कौए क्या नहीं खाते ?