Prayers Sanskrit Slokas

Prayers Sanskrit Slokas - संस्कृत प्रार्थना - संस्कृत मंत्र

Prayer is the exercise of faith and hope.

Prayer is an invocation or act that seeks to activate a rapport with an object of worship through deliberate communication.

Here is collection of Prayer Sanskrit Slokas :

Prayers Slokas With Meaning

Image of Prayer

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके । शरण्ये त्र्म्बकें गौरी नारायणि नमोस्तुते ॥

भावार्थ :

जो सभी में श्रेष्ठ है, मंगलमय हैं जो भगवान शिव की अर्धाग्नी हैं जो सभी की इच्छाओं को पूरा करती हैं ऐसी माँ भगवती को नमस्कार करती हूँ ।

या देवी स्तुयते नित्यं विबुधैर्वेदपरागै: । सा मे वसतु जिह्रारो ब्रह्मरूपा सरस्वती ॥

भावार्थ :

ज्ञान की देवी माँ सरस्वती जिसकी जिव्हा पर सारे श्लोकों का सार है जो बुद्धि की देवी कही जाती है और जो ब्रह्म देव की पत्नी है ऐसी माँ का वास मेरे अन्दर सदैव रहे ऐसी कामना है ।

नमस्तेस्तु महामायें श्रीपीठे सुरपूजिते । शंख्चक्ररादाह्स्ते महालक्ष्मी नमस्तु ते ॥

भावार्थ :

माँ लक्ष्मी जो शक्ति की देवी है जो धन की देवी है जो समस्त देवताओ द्वारा पूजी जाती है जिनके हाथो में शंख और चक्र है ऐसी माँ लक्ष्मी को मेरा प्रणाम है ।

निराकारमोङ्करमूलं तुरीयं गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् । करालं महाकालकालं कृपालं गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥

भावार्थ :

जिनका कोई आकार नहीं, जो ॐ के मूल हैं, जिनका कोई राज्य नहीं, जो गिरी के वासी हैं, जो कि सभी ज्ञान, शब्द से परे हैं, जो कि कैलाश के स्वामी हैं, जिनका रूप भयावह हैं, जो कि काल के स्वामी हैं, जो उदार एवम् दयालु हैं, जो गुणों का खजाना हैं, जो पुरे संसार के परे हैं उनके सामने मैं नत मस्तक हूँ ।

या कुंदेंदुतुषारहार धवला, या शुभ्र वस्त्रावृता । या वीणावरदण्डमंडितकरा, या श्वेतपद्मासना ॥ या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभ्रृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता । सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा ॥

भावार्थ :

जो विद्या देवी कुंद के पुष्प, शीतल चन्द्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह श्वेत वर्ण की है और जिन्होंने श्वेत वर्ण के वस्त्र धारण किये हुए है, जिनके हाथ में वीणा शोभायमान है और जो श्वेत कमल पर विराजित हैं तथा ब्रह्मा,विष्णु और महेश और सभी देवता जिनकी नित्य वन्दना करते है वही अज्ञान के अन्धकार को दूर करने वाली माँ भगवती हमारी रक्षा करें ।

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं । वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धाकारापाहां ॥ हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम । वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदां ॥

भावार्थ :

शुक्ल वर्ण वाली, सम्पूर्ण जगत में व्याप्त, महाशक्ति ब्रह्मस्वरूपीणी, आदिशक्ति परब्रहम के विषय में किये गये विचार एवम चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से मुक्त करने वाली, अज्ञान के अंधकार को मिटाने वाली, हाथो में वीणा,स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजित बुध्दि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, माँ भगवती शारदा को मैं वंदन करती हूँ ।