Sanskrit Shlokas

इह लोके हि धनिनां परोऽपि स्वजनायते । स्वजनोऽपि दरिद्राणां सर्वदा दुर्जनायते ॥

भावार्थ :

इस संसार में धनिकों के लिए पराया व्यक्ति भी अपना हो जाता है और निर्धनों के मामले में तो अपने लोग भी दुर्जन हो जाते हैं ।

मङ्गलं भगवान् विष्णुः मङ्गलं गरूडध्वजः । मङ्गलं पुण्डरीकाक्षः मंगलायतनो हरिः ॥

भावार्थ :

भगवान् विष्णु मंगल हैं, गरुड वाहन वाले मंगल हैं, कमल के समान नेत्र वाले मंगल हैं, हरि मंगल के भंडार हैं । मंगल अर्थात् जो मंगलमय हैं, शुभ हैं, कल्याणप्रद हैं ।

नैकयान्यस्त्रिया कुर्याद् यानं शयनमासनम् । लोकाप्रासादकं सर्वं दृष्ट्वा पृष्ट्वा च वर्जयेत् ॥

भावार्थ :

अकेली परायी स्त्री के साथ-साथ वाहन पर बैठने, लेटने और आसन ग्रहण करने का कार्य न करे । गौर से देखकर तथा औरों से पूछकर उन बातों से बचे जो आम लोगों को अप्रिय लगती हों ।

न बाहूत्क्षेपकं कञ्चिच्छब्दयेदल्पसम्भ्रमे । अच्छटादि तु कर्तव्यमन्यथा स्यादसंवृतः ॥

भावार्थ :

उतावली में भी जोर-जोर से हाथ उठाकर तथा ऊंची आवाज देकर किसी को न पुकारे । चुटकी या उसी प्रकार की हल्की आवाज देनी चाहिए । ऐसा न करने पर व्यक्ति का असंयमित होना समझा जाना चाहिए ।

सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् । वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः ॥

भावार्थ :

किसी कार्य को बिना सोचे-विचारे अनायास नहीं करना चाहिए । विवेकहीनता आपदाओं का परम या आश्रय स्थान होती है । अच्छी प्रकार से गुणों की लोभी संपदाएं विचार करने वाले का स्वयमेव वरण करती हैं, उसके पास चली आती हैं ।

क्रुद्धः पापं न कुर्यात् कः क्रृद्धो हन्यात् गुरूनपि । क्रुद्धः परुषया वाचा नरः साधूनधिक्षिपेत्॥

भावार्थ :

क्रोध से भरा हुआ कौन व्यक्ति पापकर्म नहीं कर बैठता है ? कुद्ध मनुष्य बड़े एवं पूज्य जनों को तक मार डालता है । ऐसा व्यक्ति कटु वचनों से साधुजनों पर भी निराधार आक्षेप लगाता है ।

वाच्यावाच्यं प्रकुपितो न विजानाति कर्हिचित् । नाकार्यमस्ति क्रुद्धस्य नावाच्यं विद्यते क्वचित् ॥

भावार्थ :

गुस्से से भरा मनुष्य को किसी भी समय क्या कहना चाहिए और क्या नहीं का ज्ञान नहीं रहता है । ऐसे व्यक्ति के लिए कुछ भी अकार्य नहीं होता है और न ही कहीं अवाच्य रह जाता है ।

यः समुत्पतितं क्रोधं क्षमयैव निरस्यति । यथोरगस्त्वचं जीर्णां स वै पुरुष उच्यते ॥

भावार्थ :

जिस प्रकार सांप अपनी जीर्ण-शीर्ण हो चुकी त्वचा को शरीर से उतार फेंकता है, उसी प्रकार अपने सिर पर चढ़े क्रोध को क्षमाभाव के साथ छोड़ देता है वही वास्तव में पुरुष है, यानी गुणों का धनी श्लाघ्य व्यक्ति है ।