Collection of popular slokas from various sanskrit scriptures and books. You may find them interesting. Most of them are full with teachings about life and it may be applicable in your life situations.
क्रोधो वैवस्वतो राजा तॄष्णा वैतरणी नदी। विद्या कामदुघा धेनु सन्तोषो नन्दनं वनम्॥
क्रोध यमराज के समान है और तृष्णा नरक की वैतरणी नदी के समान। विद्या सभी इच्छाओं को पूरी करने वाली कामधेनु है और संतोष स्वर्ग का नंदन वन है ।
लोभमूलानि पापानि संकटानि तथैव च। लोभात्प्रवर्तते वैरं अतिलोभात्विनश्यति॥
लोभ पाप और सभी संकटों का मूल कारण है, लोभ शत्रुता में वृद्धि करता है, अधिक लोभ करने वाला विनाश को प्राप्त होता है ।
बालस्तावत् क्रीडासक्त तरुणस्तावत् तरुणीसक्तः। वृद्धस्तावच्चिन्तासक्त परे ब्रह्मणि कोऽपि न सक्तः॥
बचपन में खेल में रूचि होती है , युवावस्था में युवा स्त्री के प्रति आकर्षण होता है, वृद्धावस्था में चिंताओं से घिरे रहते हैं पर प्रभु से कोई प्रेम नहीं करता है ।
नलिनीदलगतजलमतितरलम्, तद्वज्जीवितमतिशयचपलम्। विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं,लोक शोकहतं च समस्तम्॥
जीवन कमल-पत्र पर पड़ी हुई पानी की बूंदों के समान अनिश्चित एवं अल्प (क्षणभंगुर) है। यह समझ लो कि समस्त विश्व रोग, अहंकार और दु:ख में डूबा हुआ है ।
धॄति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:। धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्॥
धर्म के दस लक्षण हैं - धैर्य, क्षमा, आत्म-नियंत्रण, चोरी न करना, पवित्रता, इन्द्रिय-संयम, बुद्धि, विद्या, सत्य और क्रोध न करना ।
अभिवादनशीलस्य नित्यं वॄद्धोपसेविन:। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्॥
विनम्र और नित्य अनुभवियों की सेवा करने वाले में चार गुणों का विकास होता है - आयु, विद्या, यश और बल ।
चित्तोद्वेगं विधायापि हरिर्यद्यत् करिष्यति। तथैव तस्य लीलेति मत्वा चिन्तां द्रुतं त्यजेत॥
चिंता और उद्वेग में संयम रख कर और ऐसा मान कर कि श्रीहरि जो जो भी करेंगे वह उनकी लीला मात्र है, चिंता को शीघ्र त्याग दें ।
यावद्वित्तोपार्जनसक्त तावन्निजपरिवारो रक्तः। पश्चाज्जीवति जर्जरदेहे, वार्तां कोऽपि न पृच्छति गेहे॥
जब तक व्यक्ति धनोपार्जन में समर्थ है, तब तक परिवार में सभी उसके प्रति स्नेह प्रदर्शित करते हैं परन्तु अशक्त हो जाने पर उसे सामान्य बातचीत में भी नहीं पूछा जाता है ।