Some Popular Slokas

Collection of popular slokas from various sanskrit scriptures and books. You may find them interesting. Most of them are full with teachings about life and it may be applicable in your life situations.

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अधमाः धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः । उत्तमाः मानमिच्छन्ति मानो हि महताम् धनम्॥

भावार्थ :

निम्न कोटि के लोग केवल धन की इच्छा रखते हैं, उन्हें सम्मान से कोई मतलब नहीं होता है । जबकि एक मध्यम कोटि का व्यक्ति धन और मान दोनों की इच्छा रखता है । और उत्तम कोटि के लोगों के लिए सम्मान हीं सर्वोपरी होता है सम्मान धन से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है ।

यस्तु सञ्चरते देशान् सेवते यस्तु पण्डितान् । तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसि ॥

भावार्थ :

वह व्यक्ति जो विभिन्न देशों में घूमता है और विद्वानों की सेवा करता है । उस व्यक्ति की बुद्धि का विस्तार उसी तरह होता है, जैसे तेल का बून्द पानी में गिरने के बाद फैल जाता है ।

द्वौ अम्भसि निवेष्टव्यौ गले बद्ध्वा दृढां शिलाम् । धनवन्तम् अदातारम् दरिद्रं च अतपस्विनम्॥

भावार्थ :

दो प्रकार के लोग होते हैं, जिनके गले में पत्थर बांधकर उन्हें समुद्र में फेंक देना चाहिए । पहला, वह व्यक्ति जो अमीर होते हुए दान न करता हो । दूसरा, वह व्यक्ति जो गरीब होते हुए कठिन परिश्रम नहीं करता हो ।

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः॥

भावार्थ :

जिस कुल में स्त्रीयाँ पूजित होती हैं, उस कुल से देवता प्रसन्न होते हैं। जहाँ स्त्रीयों का अपमान होता है, वहाँ सभी ज्ञानदि कर्म निष्फल होते हैं।

विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन । स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते ॥

भावार्थ :

विद्वान और राजा की कोई तुलना नहीं हो सकती है । क्योंकि राजा तो केवल अपने राज्य में सम्मान पाता है, जबकि विद्वान जहाँ-जहाँ भी जाता है वह हर जगह सम्मान पाता है ।

शतेषु जायते शूरः सहस्रेषु च पण्डितः । वक्ता दशसहस्रेषु दाता भवति वा न वा॥

भावार्थ :

सैकड़ों में कोई एक शूर-वीर होता है, हजारों में कोई एक विद्वान होता है, दस हजार में कोई एक वक्ता होता है और दानी लाखों में कोई विरला हीं होता है ।

शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्। न शोचन्ति नु यत्रता वर्धते तद्धि सर्वदा॥

भावार्थ :

जिस कुल में बहू-बेटियां क्लेश भोगती हैं वह कुल शीघ्र नष्ट हो जाता है। किन्तु जहाँ उन्हें किसी तरह का दुःख नहीं होता वह कुल सर्वदा बढ़ता ही रहता है।

परो अपि हितवान् बन्धुः बन्धुः अपि अहितः परः । अहितः देहजः व्याधिः हितम् आरण्यं औषधम् ॥

भावार्थ :

कोई अपरिचित व्यक्ति भी अगर आपकी मदद करे, तो उसे परिवार के सदस्य की तरह महत्व देना चाहिए । और अगर परिवार का कोई अपना सदस्य भी आपको नुकसान पहुंचाए तो उसे महत्व देना बंद कर देना चाहिए । ठीक उसी तरह जैसे शरीर के किसी अंग में कोई बीमारी हो जाए, तो वह हमें तकलीफ पहुँचाने लगती है । जबकि जंगल में उगी हुई औषधी हमारे लिए लाभकारी होती है ।