Motivational quotes in sanskrit - Sanskrit quotes by some prominent people which is very inspirational. A Sanskrit quotation is the repetition of a sentence, phrase, or passage from speech or text that someone has said or written. Sanskrit Quote means to repeat the exact words of a speaker or an author
Here is best collection of Sanskrit Quotes With English And Hindi Meaning:प्रारब्धं भुज्यमानो हि गीताभ्यासरतः सदा। स मुक्तः स सुखी लोके कर्मणा नोपलिप्यते॥
The person who is engaged in the practice of Geeta, while suffering his destiny, He is free and happy in this world and is not involved in karma.
प्रारब्ध-कर्म को भोगता हुआ जो मनुष्य गीता के अभ्यास में निरत है, वह इस लोक में मुक्त और सुखी होता है तथा कर्म में लिप्त नहीं होता।
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्। उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते॥
The one who considers the soul to be a killer and the one who considers it dead, both do not know, Because this soul neither dies nor is killed.
जो आत्मा को मारने वाला समझता है और जो इसको मरा समझता है वे दोनों ही नहीं जानते हैं, क्योंकि यह आत्मा न मरता है और न मारा जाता है।
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-न्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥
Just like a man discards old clothes and wears new clothes. Similarly, the physical soul leaves the old bodies and attains new bodies.
जैसे मनुष्य जीर्ण वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को धारण करता है वैसे ही देही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होता है।
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च। तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि॥
The death of the one who is born is certain and the birth of the one who dies is certain, therefore you should not mourn about that which is permanent and inevitable.
जन्मने वाले की मृत्यु निश्चित है और मरने वाले का जन्म निश्चित है इसलिए जो अटल है अपरिहार्य है उसके विषय में तुमको शोक नहीं करना चाहिये।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
You have the right only in doing the work, never in the results. You should not be responsible for the results of your actions and you should not be attached to non-actions either.
कर्म करने मात्र में तुम्हारा अधिकार है, फल में कभी नहीं। तुम कर्मफल के हेतु वाले मत होना और अकर्म में भी तुम्हारी आसक्ति न हो।
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय। सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥
O Dhananjay, by giving up attachment and being equanimous between success and failure, You do your work while being situated in yoga. This equanimity is called yoga.
हे धनंजय आसक्ति को त्याग कर तथा सिद्धि और असिद्धि में समभाव होकर योग में स्थित हुये तुम कर्म करो। यह समभाव ही योग कहलाता है।
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते। तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्॥
A man with equanimity gives up both virtue and sin in this world, that is, he becomes free from them. With this you engage in equanimous yoga; This equanimity of yoga is efficiency in actions, that is, it is the way to get free from the bondage of karma.
समबुद्धि युक्त पुरुष पुण्य और पाप दोनों को इसी लोक में त्याग देता है, अर्थात उनसे मुक्त हो जाता है। इससे तू समत्वरूप योग में लग जा; यह समत्व रूप योग ही कर्मों में कुशलता है अर्थात कर्मबन्धन से छूटने का उपाय है।
कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः। जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम्॥
The wise people having the Yoga of Buddhi, renouncing the fruits of their actions and freed from the bondage of birth, attain the state of Anamay i.e. innocent.
बुद्धियोग युक्त मनीषी लोग कर्मजन्य फलों को त्यागकर जन्मरूप बन्धन से मुक्त हुये अनामय अर्थात निर्दोष पद को प्राप्त होते हैं।
यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः। इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥
as if a tortoise folds its limbs Similarly, when this man distracts his senses from the objects of the senses from all sides, then his intellect becomes stable.
कछुवा अपने अंगों को जैसे समेट लेता है वैसे ही यह पुरुष जब सब ओर से अपनी इन्द्रियों को इन्द्रियों के विषयों से परावृत्त कर लेता है, तब उसकी बुद्धि स्थिर होती है।
क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः। स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
Attachment arises from anger and confusion arises from attachment. Wisdom gets destroyed when memory gets confused And due to destruction of intelligence that person gets destroyed.
क्रोध से उत्पन्न होता है मोह और मोह से स्मृति विभ्रम। स्मृति के भ्रमित होने पर बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि के नाश होने से वह मनुष्य नष्ट हो जाता है।
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी। यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः॥
For all beings who are like the night, The wise yogi awakens in the attainment of ecstatic bliss in the form of daily knowledge and in the attainment of perishable worldly happiness all living beings awaken. For a sage who knows the essence of God, it is like night.
संपूर्ण प्राणियोंके लिए जो रात्रि के सामान है, उस नित्य ज्ञानस्वरूप परमानंद ली प्राप्ति में स्थितप्रज्ञ योगी जागता है और जिस नाशवान सांसारिक सुख की प्राप्ति में सब प्राणी जागते हैं, परमात्मा के तत्त्व को जाननेवाले मुनि के लिए वह रात्रि के सामान है ।
विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः। निर्ममो निरहङ्कारः स शान्तिमधिगच्छति॥
The man who gives up all desires and wanders without desires, without affection and without ego, attains peace.
जो पुरुष सब कामनाओं को त्यागकर स्पृहारहित, ममभाव रहित और निरहंकार हुआ विचरण करता है, वह शान्ति प्राप्त करता है।
न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते। न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति॥
Man does not attain renunciation by not doing deeds, nor does he attain perfection only by renunciation of deeds.
कर्मों के न करने से मनुष्य नैर्ष्कम्य को प्राप्त नहीं होता और न कर्मों के संन्यास से ही वह पूर्णत्व प्राप्त करता है।।
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः। शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥
You should perform your assigned duties because action is better than inaction. Due to your inaction, even your physical subsistence will not be accomplished.
तुम अपने नियत कर्तव्य कर्म करो क्योंकि अकर्म से श्रेष्ठ कर्म है। तुम्हाम्हारे अकर्म होने से तुम्हारा शरीर निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा।
तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर। असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः॥
You should always perform your duties properly by being unattached, because an unattached man attains God by doing his work.
तुम अनासक्त होकर सदैव कर्तव्य कर्म का सम्यक आचरण करो क्योकि अनासक्त पुरुष कर्म करता हुआ परमात्मा को प्राप्त होता है।