Vidya(Education) means the wealth of knowledge acquired by an individual after studying particular subject matters or experiencing life lessons that provide an understanding of something.
Here is collection of Vidya Sanskrit Slokas :
नास्ति विद्या समं चक्षु नास्ति सत्य समं तप:। नास्ति राग समं दुखं नास्ति त्याग समं सुखं॥
विद्या के समान आँख नहीं है, सत्य के समान तपस्या नहीं है, आसक्ति के समान दुःख नहीं है और त्याग के समान सुख नहीं है ।
गुरु शुश्रूषया विद्या पुष्कलेन् धनेन वा। अथ वा विद्यया विद्या चतुर्थो न उपलभ्यते॥
विद्या गुरु की सेवा से, पर्याप्त धन देने से अथवा विद्या के आदान-प्रदान से प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त विद्या प्राप्त करने का चौथा तरीका नहीं है ।
अर्थातुराणां न सुखं न निद्रा कामातुराणां न भयं न लज्जा । विद्यातुराणां न सुखं न निद्रा क्षुधातुराणां न रुचि न बेला ॥
अर्थातुर को सुख और निद्रा नहीं होते, कामातुर को भय और लज्जा नहीं होते । विद्यातुर को सुख व निद्रा, और भूख से पीडित को रुचि या समय का भान नहीं रहता ।
पठतो नास्ति मूर्खत्वं अपनो नास्ति पातकम् । मौनिनः कलहो नास्ति न भयं चास्ति जाग्रतः ॥
पढनेवाले को मूर्खत्व नहीं आता; जपनेवाले को पातक नहीं लगता; मौन रहनेवाले का झघडा नहीं होता; और जागृत रहनेवाले को भय नहीं होता ।
विद्याभ्यास स्तपो ज्ञानमिन्द्रियाणां च संयमः । अहिंसा गुरुसेवा च निःश्रेयसकरं परम् ॥
विद्याभ्यास, तप, ज्ञान, इंद्रिय-संयम, अहिंसा और गुरुसेवा – ये परम् कल्याणकारक हैं ।
विद्या वितर्को विज्ञानं स्मृतिः तत्परता क्रिया । यस्यैते षड्गुणास्तस्य नासाध्यमतिवर्तते ॥
विद्या, तर्कशक्ति, विज्ञान, स्मृतिशक्ति, तत्परता, और कार्यशीलता, ये छे जिसके पास हैं, उसके लिए कुछ भी असाध्य नहीं ।
गीती शीघ्री शिरः कम्पी तथा लिखित पाठकः । अनर्थज्ञोऽल्पकण्ठश्च षडेते पाठकाधमाः ॥
गाकर पढना, शीघ्रता से पढना, पढते हुए सिर हिलाना, लिखा हुआ पढ जाना, अर्थ न जानकर पढना, और धीमा आवाज होना ये छे पाठक के दोष हैं ।
सद्विद्या यदि का चिन्ता वराकोदर पूरणे । शुकोऽप्यशनमाप्नोति रामरामेति च ब्रुवन् ॥
सद्विद्या हो तो क्षुद्र पेट भरने की चिंता करने का कारण नहीं । तोता भी “राम राम” बोलने से खुराक पा हि लेता है ।