The Bhagavad Gita is part of the Hindu epic Mahabharata. It is considered by many to be one of the world's greatest religious and spiritual scriptures.
Here is collection of Some popular Slokas :
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः ।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः ॥
कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम् ।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम् ॥3.14-15॥सम्पूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं, अन्न की उत्पत्ति वृष्टि से होती है, वृष्टि यज्ञ से होती है और यज्ञ विहित कर्मों से उत्पन्न होने वाला है। कर्मसमुदाय को तू वेद से उत्पन्न और वेद को अविनाशी परमात्मा से उत्पन्न हुआ जान। इससे सिद्ध होता है कि सर्वव्यापी परम अक्षर परमात्मा सदा ही यज्ञ में प्रतिष्ठित है ।
बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोहः क्षमा सत्यं दमः शमः ।
सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च ॥
अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः ।
भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः ॥10.4-5॥निश्चय करने की शक्ति, यथार्थ ज्ञान, असम्मूढ़ता, क्षमा, सत्य, इंद्रियों का वश में करना, मन का निग्रह तथा सुख-दुःख, उत्पत्ति-प्रलय और भय-अभय तथा अहिंसा, समता, संतोष तप (स्वधर्म के आचरण से इंद्रियादि को तपाकर शुद्ध करने का नाम तप है), दान, कीर्ति और अपकीर्ति- ऐसे ये प्राणियों के नाना प्रकार के भाव मुझसे ही होते हैं ।
अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते ।
भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः ॥8.3॥श्री भगवान ने कहा- परम अक्षर 'ब्रह्म' है, अपना स्वरूप अर्थात जीवात्मा 'अध्यात्म' नाम से कहा जाता है तथा भूतों के भाव को उत्पन्न करने वाला जो त्याग है, वह 'कर्म' नाम से कहा गया है ।
यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते ।
सर्वसङ्कल्पसन्न्यासी योगारूढ़स्तदोच्यते ॥6.4॥जिस काल में न तो इन्द्रियों के भोगों में और न कर्मों में ही आसक्त होता है, उस काल में सर्वसंकल्पों का त्यागी पुरुष योगारूढ़ कहा जाता है ।
तं विद्याद् दुःखसंयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम्।
स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा ॥6.23॥जो दुःखरूप संसार के संयोग से रहित है तथा जिसका नाम योग है, उसको जानना चाहिए। वह योग न उकताए हुए अर्थात धैर्य और उत्साहयुक्त चित्त से निश्चयपूर्वक करना कर्तव्य है ।
यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः ।
आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते ॥3.17॥परन्तु जो मनुष्य आत्मा में ही रमण करने वाला और आत्मा में ही तृप्त तथा आत्मा में ही सन्तुष्ट हो, उसके लिए कोई कर्तव्य नहीं है ।
प्रकृतेर्गुणसम्मूढ़ाः सज्जन्ते गुणकर्मसु ।
तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत् ॥3.29॥प्रकृति के गुणों से अत्यन्त मोहित हुए मनुष्य गुणों में और कर्मों में आसक्त रहते हैं, उन पूर्णतया न समझने वाले मन्दबुद्धि अज्ञानियों को पूर्णतया जानने वाला ज्ञानी विचलित न करेै ।
वेदवेदान्तपंथानां, सर्वं सत्यं च शाश्वतं।
वेद और वेदांत के मार्ग पर सभी सत्य और शाश्वत हैं।
On the path of Vedas and Vedanta all is true and eternal.
सदा स्वधर्मे स्थितं, कर्माणि सदा प्रियं।
अपने धर्म में स्थिर रहना और कर्मों को प्रिय मानना चाहिए।
One should remain steadfast in his religion and consider his actions dear.
धर्मे स्थिता सदा शान्तः, कर्मसिद्धिः सदा।
धर्म में स्थिर व्यक्ति हमेशा शांति में रहता है, और कर्म की सिद्धि प्राप्त होती है।
A person steadfast in Dharma always remains in peace, and achieves accomplishment of actions.
अज्ञानवशे कार्याणि, कर्मविपरीतमानम्।
अज्ञान के प्रभाव से कर्म विपरीत होता है।
Due to the influence of ignorance the action becomes opposite.
योगी चित्तस्वरूपः, ज्ञानं सदा भूतलम्।
योगी का चित्त स्वभाव से ज्ञानी होता है; ज्ञान धरती पर सदा है।
The mind of a yogi is knowledgeable by nature; knowledge is always present on earth.
शान्ति: सर्वभूतानां, निर्वाणं च समाश्रयम्।
शांति सभी प्राणियों के लिए आवश्यक है; निर्वाण प्राप्ति के लिए शांति है।
Peace is essential for all beings; peace is the key to attaining nirvana.
सदा ज्ञानयुक्तः सदा, कर्मपथे सदा स्थितः।
हमेशा ज्ञानयुक्त रहकर कर्मपथ पर स्थित रहना चाहिए।
One should always remain knowledgeable and stay on the path of action.
सत्यं ब्रूयात्पृथिव्यां, सम्यग्वेदितुमेव।
सत्य बोलना पृथ्वी पर सर्वश्रेष्ठ है; इसे सही रूप से समझना आवश्यक है।
Speaking the truth is the best thing on earth; it is essential to understand it correctly.
सर्वेषां च हितार्थः, कर्मसिद्धिः सदा प्रियः।
सभी के हित के लिए कर्म की सिद्धि प्रिय होती है।
For the benefit of all, accomplishment of action is dear.
योगनिष्ठः सदा कर्म, मोक्षमार्गे कृतं।
योग में निष्ठा रखने वाला व्यक्ति मोक्षमार्ग पर चलता है।
A person who is devoted to yoga walks on the path of salvation.
कर्मण्येवाधिकारस्ते, कर्मफलस्य न हेतुः।
केवल कर्म में अधिकार है, कर्मफल में नहीं।
One has authority only over actions, not over the results.
न हि कर्मसंगत्यागं, सर्वसिद्धिरुपलब्धम्।
कर्म की संगति का त्याग पूर्ण सफलता को प्राप्त करता है।
Renunciation of the association of karma leads to complete success.
सदा प्रज्ञात्मिका चिता, परं धन्यं च ज्ञानम्।
हमेशा प्रज्ञा में स्थित मन, ज्ञान को धन्य बनाता है।
A mind always situated in wisdom makes knowledge blessed.
न हि कर्माणि पूर्णानि, अज्ञानवशम् प्राप्ति।
पूर्ण कर्म अज्ञान के प्रभाव से प्राप्त होते हैं।
Complete karma is achieved under the influence of ignorance.
न विज्ञानं न च धर्मं, ज्ञानं युक्तिरुपलब्धम्।
ज्ञान और धर्म दोनों को समर्पित करना आवश्यक है।
It is necessary to devote oneself to both knowledge and religion.
मोहात्संयुक्तमनसः, मुमुक्षुः शरणं गत्वा।
मोह में संलग्न मन वाला व्यक्ति मुक्ति की खोज करता है।
A person with a mind entangled in attachment searches for liberation.
आत्मनं शुद्धकर्माणि, सर्वसिद्धिं साधयेत्।
आत्मा को शुद्ध कर्मों से सम्पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है।
The soul attains complete success through pure deeds.
न योगभ्रम निश्चेता, कर्मफलसमोऽमितः।
योग में भ्रम न हो, कर्मफल समान रूप से प्राप्त हो।
There should be no confusion in Yoga; the fruits of karma should be received equally.
कर्मसंगेन मुक्तः, कर्मणि च अनुष्ठितम्।
कर्म से संलग्न होकर मुक्ति प्राप्त होती है, और कर्म का पालन करना आवश्यक है।
Liberation is achieved by engaging in karma, and it is necessary to follow karma.
विद्या दानं परं पुण्यम्, विद्या परं शान्ति।
विद्या सबसे बड़ा पुण्य है; विद्या से शांति प्राप्त होती है।
Education is the greatest virtue; education brings peace.
सन्तुष्टोऽयं योगी नित्यम्, कर्मण्येव साधकः।
संतुष्ट योगी हमेशा कर्मों में संलग्न रहता है।
A satisfied yogi is always engaged in action.
शरीरमध्यस्थोऽयं, आत्मा हि शरीरविपर्ययः।
आत्मा शरीर के भीतर स्थित है, और शरीर की उलझनों से मुक्त है।
The soul is situated within the body, and is free from the entanglements of the body.
आत्मनं साक्षिणं ज्ञात्वा, कर्माणि न त्यजेत्।
आत्मा को साक्षी मानकर कर्मों का त्याग नहीं करना चाहिए।
One should not abandon actions considering the soul as a witness.
अहिंसां परमं पुण्यम्, अहिंसा परमा गति:।
अहिंसा सबसे बड़ा पुण्य है; अहिंसा परम लक्ष्य है।
Nonviolence is the greatest virtue; nonviolence is the ultimate goal.
सर्वकर्माणि मनसा संन्यासः कृतं हि।
सभी कर्मों का मानसिक संन्यास ही सही है।
Mental renunciation of all actions is the only correct thing.
न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं प्रवर्धते।
कर्मों की अनदेखी से निष्कर्मता नहीं बढ़ती है।
Ignoring the actions does not increase inaction.
विद्या विनयेन शोभते, अद्वितीयं च भारत।
विद्या विनय के साथ सजती है, और यह अद्वितीय है, हे भारत।
Learning is adorned with humility, and this is matchless, O Bharata.
स्वधर्मे निधनं श्रेयो, परधर्मो भयावहः।
अपने धर्म की मृत्यु ही श्रेणी होती है; दूसरों के धर्म को अपनाना भयावह है।
The death of one's own religion is the only category; adopting the religion of others is dreadful.
अक्षरं परमं व्याप्तं, सर्वस्याधितिश्वरम्।
अक्षर परमात्मा सभी वस्तुओं में व्याप्त है और सर्वशक्तिमान है।
Akshar Paramatma pervades all things and is omnipotent.
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
जो मुझमें सब कुछ देखता है और सब कुछ मुझमें देखता है, वह ज्ञानी है।
He who sees everything in me and everything in me, is the wise one.
न जायते म्रियते वा कदाचि, न्नायं भूत्वा।
आत्मा न तो जन्म लेती है, न मरती है; वह सदा अविनाशी है।
The soul neither takes birth nor dies; it is always indestructible.
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
सुख और दुःख, लाभ और हानि, विजय और पराजय को समान मानकर कर्म करो।
Perform your duties considering happiness and sorrow, profit and loss, victory and defeat as equal.
न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः।
देहधारी व्यक्ति द्वारा सभी कर्मों का त्याग करना असंभव है।
It is impossible for a mortal being to give up all actions.
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म में है, फलों में नहीं।
You have authority only on actions, not on the fruits.
संसारविभवस्यैव, धर्मार्थो न विस्मृतः।
संसारिक समृद्धि की ओर धर्म और अर्थ की ओर ध्यान दें।
Focus on religion and wealth rather than worldly prosperity.
न ते सम्पदसस्त्व्यक्ताः, सम्पत्ति: संसृतात्मिका।
जो सम्पत्ति अज्ञात है, वह संसारिक नहीं है।
The wealth which is unknown is not worldly.
अशान्ति: स्वधर्मे स्थितं, अहिंसया परं सुखम्।
स्वधर्म में स्थिर रहकर अशांति को दूर करें, अहिंसा से परम सुख प्राप्त करें।
Remove unrest by remaining steadfast in your own religion, achieve ultimate happiness through non-violence.
न आत्मनं प्रियं यास्यति, कर्मनिरोधनं हि।
आत्मा को प्रिय नहीं मानते हुए कर्म का पालन करना सही है।
It is right to follow one's duty without considering the soul as dear to one.
न जातु मनुष्यों वियोगः कर्तव्यस्य कर्मणः।
मानव कभी भी अपने कर्तव्य कर्म से विमुक्त नहीं हो सकता।
A human being can never be free from his duty.
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म में है, फलों में नहीं।
You have authority only on actions, not on the fruits.
शरीरं केवलं कर्माणि, आत्मा केवलं ज्ञानम्।
शरीर कर्मों का केंद्र है, जबकि आत्मा ज्ञान का केंद्र है।
The body is the center of actions, while the soul is the center of knowledge.
अधिकारीभूतं साध्यम्, सर्वान्मुक्तिप्रदायकम्।
जो सबको मुक्ति प्रदान करता है, वही साध्य होता है।
That which gives liberation to everyone, is the goal.
ज्ञानं परमं दिव्यं, ज्ञानं योगमयीं सदा।
ज्ञान परम दिव्य है और यह योगमयी होती है।
Knowledge is extremely divine and it is full of yoga.
न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः।
यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते॥देहधारी व्यक्ति द्वारा सभी कर्मों का त्याग करना असंभव है; जो कर्मफल का त्याग करता है, वह त्यागी कहलाता है।
It is impossible for a mortal to renounce all actions; he who renounces the results of his actions is called a renunciant.
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय॥धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित होकर, युद्ध के लिए तत्पर कौरव और पाण्डव ने क्या किया, हे संजय?
Having gathered at the holy land of Kurukshetra, ready for war, what did the Kauravas and Pandavas do, O Sanjaya?
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः।
उभयोरपि दृष्टान्तः त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः॥जो असत्य है, उसकी कोई अस्तित्व नहीं; और जो सत्य है, उसका कभी अभाव नहीं होता। इस सिद्धांत को ज्ञानी जानते हैं।
That which is false has no existence; and that which is true never lacks. The wise know this principle.
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥हे धनञ्जय, योग में स्थित रहकर अपने कर्मों को करें, राग-द्वेष को त्यागकर। सफलता और असफलता में समानता को योग कहा जाता है।
O Dhananjaya, perform your duties while being situated in yoga, abandoning attachment and hatred. Equality in success and failure is called yoga.
अनन्यास्चिन्तयन्तो मां यजन्ति सुमनसाः।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥जो लोग मेरी अनन्य भक्ति से मेरी पूजा करते हैं, उनके लिए मैं योग और सम्पत्ति की रक्षा करता हूँ।
To those who worship me with exclusive devotion, I protect yoga and wealth.
अशान्तस्य कुतः सुखं।
अशांत व्यक्ति को सुख कैसे मिल सकता है?
How can a restless person find happiness?