Bhagavad Gita Slokas (भगवद् गीता श्लोका )

The Bhagavad Gita is part of the Hindu epic Mahabharata. It is considered by many to be one of the world's greatest religious and spiritual scriptures.

Here is collection of Some popular Slokas :

Image of Gita

अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः । अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥10.20॥

भावार्थ :

मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा संपूर्ण भूतों का आदि, मध्य और अंत भी मैं ही हूँ ।

वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः । इंद्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥10.22॥

भावार्थ :

मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवों में इंद्र हूँ, इंद्रियों में मन हूँ और भूत प्राणियों की चेतना अर्थात्‌ जीवन-शक्ति हूँ ।

रुद्राणां शङ्‍करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्‌ । वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्‌ ॥10.23॥

भावार्थ :

मैं एकादश रुद्रों में शंकर हूँ और यक्ष तथा राक्षसों में धन का स्वामी कुबेर हूँ। मैं आठ वसुओं में अग्नि हूँ और शिखरवाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत हूँ ।

महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्‌ । यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ॥10.25॥

भावार्थ :

मैं महर्षियों में भृगु और शब्दों में एक अक्षर अर्थात्‌‌ ओंकार हूँ। सब प्रकार के यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहने वालों में हिमालय पहाड़ हूँ ।

पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्‌ । झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी॥10.31॥

भावार्थ :

मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्रधारियों में श्रीराम हूँ तथा मछलियों में मगर हूँ और नदियों में श्री भागीरथी गंगाजी हूँ ।

सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन । अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम्‌ ॥10.32॥

भावार्थ :

सृष्टियों का आदि और अंत तथा मध्य भी मैं ही हूँ। मैं विद्याओं में अध्यात्मविद्या अर्थात्‌ ब्रह्मविद्या और परस्पर विवाद करने वालों का तत्व-निर्णय के लिए किया जाने वाला वाद हूँ ।