The Bhagavad Gita is part of the Hindu epic Mahabharata. It is considered by many to be one of the world's greatest religious and spiritual scriptures.
Here is collection of Some popular Slokas :
अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् । यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ॥8.5॥
जो पुरुष अंतकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात स्वरूप को प्राप्त होता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है ।
नाश्चर्यमिदं विश्वं न किंचिदिति निश्चयी। निर्वासनः स्फूर्तिमात्रो न किंचिदिव शाम्यति ॥11-8॥
अनेक आश्चर्यों से युक्त यह विश्व अस्तित्वहीन है, ऐसा निश्चित रूप से जानने वाला, इच्छा रहित और शुद्ध अस्तित्व हो जाता है। वह अपार शांति को प्राप्त करता है ।
नाहं देहो न मे देहो बोधोऽहमिति निश्चयी। कैवल्यं इव संप्राप्तो न स्मरत्यकृतं कृतम् ॥11-6॥
न मैं यह शरीर हूँ और न यह शरीर मेरा है, मैं ज्ञानस्वरुप हूँ, ऐसा निश्चित रूप से जानने वाला जीवन मुक्ति को प्राप्त करता है। वह किये हुए (भूतकाल) और न किये हुए (भविष्य के) कर्मों का स्मरण नहीं करता है ।
एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर । द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम ॥11.3॥
हे परमेश्वर! आप अपने को जैसा कहते हैं, यह ठीक ऐसा ही है, परन्तु हे पुरुषोत्तम! आपके ज्ञान, ऐश्वर्य, शक्ति, बल, वीर्य और तेज से युक्त ऐश्वर्य-रूप को मैं प्रत्यक्ष देखना चाहता हूँ ।
चिन्तया जायते दुःखं नान्यथेहेति निश्चयी। तया हीनः सुखी शान्तः सर्वत्र गलितस्पृहः॥
चिंता से ही दुःख उत्पन्न होते हैं किसी अन्य कारण से नहीं, ऐसा निश्चित रूप से जानने वाला, चिंता से रहित होकर सुखी, शांत और सभी इच्छाओं से मुक्त हो जाता है ।
आपदः संपदः काले दैवादेवेति निश्चयी। तृप्तः स्वस्थेन्द्रियो नित्यं न वान्छति न शोचति॥
संपत्ति (सुख) और विपत्ति (दुःख) का समय प्रारब्धवश (पूर्व कृत कर्मों के अनुसार) है, ऐसा निश्चित रूप से जानने वाला संतोष और निरंतर संयमित इन्द्रियों से युक्त हो जाता है। वह न इच्छा करता है और न शोक ।