Bhagavad Gita Slokas (भगवद् गीता श्लोका )

Geeta Shlok In Sanskrit | Bhagavad Gita Sankrit Slokas

The Bhagavad Gita is part of the Hindu epic Mahabharata. It is considered by many to be one of the world's greatest religious and spiritual scriptures.

Here is collection of Some popular Slokas :

Gita shloka with Hindi meaning | गीता श्लोका संस्कृत में

Image of Gita

सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते । ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्त्वमित्युत ॥14.11॥

भावार्थ :

जिस समय इस देह में तथा अन्तःकरण और इन्द्रियों में चेतनता और विवेक शक्ति उत्पन्न होती है, उस समय ऐसा जानना चाहिए कि सत्त्वगुण बढ़ा है ।

यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत्‌ । तदोत्तमविदां लोकानमलान्प्रतिपद्यते ॥

भावार्थ :

जब यह मनुष्य सत्त्वगुण की वृद्धि में मृत्यु को प्राप्त होता है, तब तो उत्तम कर्म करने वालों के निर्मल दिव्य स्वर्गादि लोकों को प्राप्त होता है ।

कर्मणः सुकृतस्याहुः सात्त्विकं निर्मलं फलम्‌ । रजसस्तु फलं दुःखमज्ञानं तमसः फलम्‌ ॥

भावार्थ :

श्रेष्ठ कर्म का तो सात्त्विक अर्थात् सुख, ज्ञान और वैराग्यादि निर्मल फल कहा है, राजस कर्म का फल दुःख एवं तामस कर्म का फल अज्ञान कहा है ।

मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः । सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः सा उच्यते ॥

भावार्थ :

जो मान और अपमान में सम है, मित्र और वैरी के पक्ष में भी सम है एवं सम्पूर्ण आरम्भों में कर्तापन के अभिमान से रहित है, वह पुरुष गुणातीत कहा जाता हैूँ ।

यत्साङ्‍ख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्यौगैरपि गम्यते । एकं साङ्‍ख्यं च योगं च यः पश्यति स पश्यति ॥

भावार्थ :

ज्ञान योगियों द्वारा जो परमधाम प्राप्त किया जाता है, कर्मयोगियों द्वारा भी वही प्राप्त किया जाता है। इसलिए जो पुरुष ज्ञानयोग और कर्मयोग को फलरूप में एक देखता है, वही यथार्थ देखता है ।

न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः । न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते ॥

भावार्थ :

परमेश्वर मनुष्यों के न तो कर्तापन की, न कर्मों की और न कर्मफल के संयोग की रचना करते हैं, किन्तु स्वभाव ही बर्त रहा है ।