Vidur Niti, mainly on the science of politics, is narrated in the form of a conversation between Vidur and King Dhritraashtra in the great epic Mahabharata.
Vidur was known for his wisdom, honesty and unwavering loyalty to the ancient Aryan kingdom of Hastinapur.
Here is some slokas of Vidur Niti :
गतिरात्मवतां सन्तः सन्त एव सतां गतिः। असतां च गतिः सन्तो न त्वसन्तः सतां गतिः ॥
सज्जन पुरुष सबका सहारा होते है। सज्जन बुद्धिमानों का सहारा होते हैं ,सज्जनों का सहारा होते हैं , दुर्जनों का सहारा होते है लेकिन दुर्जन कभी सज्जनों का सहारा नहीं हो सकते।
जिता सभा वस्त्रवता मिष्टाशा गोमता जिता। अध्वा जितो यानवता सर्वं शीलवता जितम् ॥
सुंदर वस्त्र वाला व्यक्ति सभा को जीत लेता है जिस व्यक्ति के पास गायें हो ,वह मिठाई खाने की इच्छा को जीत लेता है ; सवारी से चलने वाला व्यक्ति मार्ग को जीत लेता है तथा शीलवान् व्यक्ति सारे संसार को जीत लेता है।
शीलं प्रधानं पुरुषे तद् यस्येह प्रणश्यति। न तस्य जीवितेनार्थो न धनेन न बन्धुभिः ॥
शील ही मनुष्य का प्रमुख गुण है। जिस व्यक्ति का शील नष्ट हो जाता है -धन ,जीवन और रिश्तेदार उसके किसी काम के नहीं रहते; अर्थात उसका जीवन व्यर्थ हो जाता है।
प्रायेण श्रीमतां लोके भोक्तुं शक्तिर्न विद्यते। जीर्यन्त्यपि हि काष्ठानि दरिद्राणां महीपते ॥
प्राय :धनवान लोगो में खाने और पचाने की शक्ति नहीं होती और निर्धन लकड़ी खा लें तो उसे भी पचा लेते हैं।
इन्द्रियैरिन्द्रियार्थेषु वर्तमानैरनिग्रहैः। तैरयं ताप्यते लोको नक्षत्राणि ग्रहैरिव ॥
इंद्रियाँ यदि वश में न हो तो ये विषय -भोगों में लिप्त हो जाती हैं। उससे मनुष्य उसी प्रकार तुच्छ हो जाता है ,जैसे सूर्य के आगे सभी ग्रह।
रथः शरीरं पुरुषस्य राजत्रात्मा नियन्तेन्द्रियाण्यस्य चाश्चाः। तैरप्रमत्तः कुशली सदश्वैर्दान्तैः सुखं याति रथीव धीरः ॥
यह मानव -शरीर रथ है ,आत्मा (बुद्धि ) इसका सारथी है ,इंद्रियाँ इसके घोड़े हैं। जो व्यक्ति सावधानी ,चतुराई और बुद्धिमानी से इनको वश में रखता है वह श्रेष्ठ रथवान की भांति संसार में सुखपूर्वक यात्रा करता है।
एतान्यनिगृहीतानि व्यापादयितुमप्यलम्। अविधेया इवादान्ता हयाः पथि कुसारथिम् ॥
जैसे बेकाबू और अप्रशिक्षित घोड़े मूर्ख सारथी को मार्ग में ही गिराकर मार डालते हैं ;वैसे ही यदि इंद्रियों को वश में न किया जाए तो ये मनुष्य की जान की दुश्मन बन जाती हैं।
अनर्थंमर्थंतः पश्यत्रर्थं चैवाप्यनर्थतः। इन्द्रियैरजितैर्बालः सुदुःखं मन्यते सुखम् ॥
अज्ञानी लोग इंद्रिय -सुख को ही श्रेष्ठ समझकर आनंदित होते है। इस प्रकार के अनर्थ को अर्थ और अर्थ को अनर्थ कर देते हैं ,और अनायास ही नाश के मार्ग पर चल पड़ते हैं।