Vidur Niti, mainly on the science of politics, is narrated in the form of a conversation between Vidur and King Dhritraashtra in the great epic Mahabharata.
Vidur was known for his wisdom, honesty and unwavering loyalty to the ancient Aryan kingdom of Hastinapur.
Here is some slokas of Vidur Niti :
न विश्चसेदविश्चस्ते विश्चस्ते नातिविश्चसेत्। विश्चासाद् भयमुत्पन्न मुलान्यपि निकृन्तति ॥
जो व्यक्ति भरोसे के लायक नहीं है ,उस पर तो भरोसा न ही करें ,लेकिन जो बहुत भरोसेमंद है, उस पर भी अंधे होकर भरोसा न करें , क्योंकि जब ऐसे लोग भरोसा तोड़ते हैं तो बड़ा अनर्थ होता है।
अप्रशस्तानि कार्याणि यो मोहादनुतिष्ठति। स तेषां विपरिभ्रंशाद् भ्रंश्यते जीवितादपि ॥
जो मोह -माया में पड़कर अन्याय का साथ देता है, वह अपने जीवन को नरक-तुल्य बना लेता है।
ब्राह्मणं ब्राह्मणो वेद भर्ता वेद स्त्रियं तथा। अमात्यं नृपतिर्वेद राजा राजानमेव च॥
समतुल्य लोग ही एक दूसरे को ठीक प्रकार से जान समझ पाते हैं, जैसे ज्ञानी को ज्ञानी, पति को पत्नी, मंत्री को राजा तथा राजा को प्रजा। अतः अपनी बराबरी वाले के साथ ही संबध रखना चाहिए।
येऽर्थाः स्त्रीषु समायुक्ताः प्रमत्तपतितेषु च। ये चानार्ये समासक्ताः सर्वे ते संशयं गताः ॥
आलसी ,अधम ,दुर्जन तथा स्त्री के हाथों सौंपी संपत्ति बरबाद हो जाती है। इनसे सावधान रहना चाहिए।
प्रियो भवति दानेन प्रियवादेन चापरः। मन्त्रमूलबलेनान्यो यः प्रियः प्रिय एव सः ॥
कोई पुरुष दान देकर प्रिय होता है, कोई मीठा बोलकर प्रिय होता है, कोई अपनी बुद्धिमानी से प्रिय होता है; लेकिन जो वास्तव में प्रिय होता है ,वह बिना प्रयास के प्रिय होता है।
असम्यगुपयुक्तं हि ज्ञानं सुकुशलैरपि। उपलभ्यं चाविदितं विदितं चाननुष्ठितम्॥
वह ज्ञान बेकार है जिससे कर्तव्य का बोध न हो और वह कर्तव्य भी बेकार है जिसकी कोई सार्थकता न हों।
ययोश्चित्तेन वा चित्तं निभृतं निभृतेन वा। समेति प्रज्ञया प्रज्ञा तयोमैत्री न जीवर्यति ॥
दो व्यक्तियों की मित्रता तभी स्थायी रह सकती है जब उनके मन से मन, गूढ़ बातों से गूढ़ बातें तथा बुद्धि से बुद्धि मिल जाती है।
कर्मणा मनसा वाचा यदभीक्षणं निषेवते। तदेवापहरत्येनं तस्मात् कल्याणमाचरेत् ॥
मन, वचन, और कर्म से हम लगातार जिस वस्तु के बारे में सोचते हैं, वही हमें अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। अतः हमे सदा शुभ चीजों का चिंतन करना चाहिए।