Vidur Niti

Vidur Niti, mainly on the science of politics, is narrated in the form of a conversation between Vidur and King Dhritraashtra in the great epic Mahabharata.

Vidur was known for his wisdom, honesty and unwavering loyalty to the ancient Aryan kingdom of Hastinapur.

Here is some slokas of Vidur Niti :

Image of Vidur

अनिर्वेदः श्रियो मूलं लाभस्य च शुभस्य च। महान् भवत्यनिर्विण्णः सुखं चानन्त्यमश्नुते ॥

भावार्थ :

अपने काम में लगे रहनेवाला व्यक्ति सदा सुखी रहता है। धन-संपत्ति से उसका घर भरा -पूरा रहता है। ऐसा व्यक्ति यश -मान -सम्मान पाता है।

यत् सुखं सेवमानोपि धर्मार्थाभ्यां न हीयते। कामं तदुपसेवेत न मूढव्रतमाचरेत्। ॥

भावार्थ :

व्यक्ति को यह छूट है कि वह न्यायपूर्वक ओर धर्म के मार्ग पर चलकर इच्छानुसार सुखों का भरपूर उपभोग करें ,लेकिन उनमें इतना आसक़्त न हो जाए कि अधर्म का मार्ग पकड़ ले।

न चातिगुणवत्स्वेषा नान्यन्तं निर्गुणेषु च। नेषा गुणान् कामयते नैर्गुण्यात्रानुरज़्यते। उन्मत्ता गौरिवान्धा श्री क्वचिदेवावतिष्ठते॥

भावार्थ :

लक्ष्मी न तो प्रचंड ज्ञानियों के पास रहती है, न नितांत मूर्खो के पास। न तो इन्हें ज्ञानयों से लगाव है न मूर्खो से। जैसे बिगड़ैल गाय को कोई-कोई ही वश में कर पाता है, वैसे ही लक्ष्मी भी कहीं-कहीं ही ठहरती हैं ।

आलस्यं मदमोहौ चापलं गोष्टिरेव च। स्तब्धता चाभिमानित्वं तथा त्यागित्वमेव च। एते वै सप्त दोषाः स्युः सदा विद्यार्थिनां मताः ॥

भावार्थ :

विद्यार्थियों को सात अवगुणों से दूर रहना चाहिए। ये हैं - आलस, नशा, चंचलता, गपशप, जल्दबाजी, अहंकार और लालच।

सुखार्थिनः कुतो विद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम्। सुखार्थी वा त्यजेत् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्॥

भावार्थ :

सुख चाहने वाले से विद्या दूर रहती है और विद्या चाहने वाले से सुख। इसलिए जिसे सुख चाहिए, वह विद्या को छोड़ दे और जिसे विद्या चाहिए, वह सुख को।