Vidur Niti, mainly on the science of politics, is narrated in the form of a conversation between Vidur and King Dhritraashtra in the great epic Mahabharata.
Vidur was known for his wisdom, honesty and unwavering loyalty to the ancient Aryan kingdom of Hastinapur.
Here is some slokas of Vidur Niti :
आत्मनाऽऽत्मानमन्विच्छेन्मनोबुद्धीन्द्रियैर्यतैः। आत्मा ह्वोवात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥
मन -बुद्धि तथा इंद्रियों को आत्म -नियंत्रित करके स्वयं ही अपने आत्मा को जानने का प्रयत्न करें , क्योंकि आत्मा ही हमारा हितैषी और आत्मा ही हमारा शत्रु है।
समवेक्ष्येह धर्माथौं सम्भारान् योऽधिगच्छति। स वै सम्भृतसम्भारः सततं सुखमेधते ॥
जो व्यक्ति धर्म और अर्थ के बारे में भली-भाँति विचार करके न्यायोचित रूप से अपनी समृद्धि के साधन जुटाता है , उसकी समृद्धि बराबर बढ़ती रहती है और वह सुख साधनों का भरपूर उपभोग करता है।
असन्त्यागात् पापकृतामपापांस्तुल्यो दण्डः स्पृशते मिश्रभावात्। शुष्केणार्दंदह्यते मिश्रभावात्तस्मात् पापैः सह सन्धि नकुर्य्यात् ॥
दुर्जनों की संगति के कारण निरपराधी भी उन्हीं के समान दंड पाते है ;जैसे सुखी लकड़ियों के साथ गीली भी जल जाती है। इसलिए दुर्जनों का साथ मैत्री नहीं करनी चाहिए।
आक्रोशपरिवादाभ्यां विहिंसन्त्यबुधा बुधान्। वक्ता पापमुपादत्ते क्षममाणो विमुच्यते ॥
मुर्ख लोग ज्ञानियों को बुरा-भला कहकर उन्हें दुःख पहुँचाते हैं। इस पर भी ज्ञानीजन उन्हें माफ कर देते हैं। माफ करने वाला तो पाप से मुक़्त हो जाता है और निंदक को पाप लगता है।
हिंसाबबलमसाधूनां राज्ञा दण्डविधिर्बलम्। शुश्रुषा तु बलं स्त्रीणां क्षमा गुणवतां बलम्॥
हिंसा दुष्ट लोगों का बल है ,दंडित करना राजा का बल है ,सेवा करना स्त्रियों का बल है और क्षमाशीलता गुणवानों का बल है।
अभ्यावहति कल्याणं विविधं वाक् सुभाषिता। सैव दुर्भाषिता राजनर्थायोपपद्यते ॥
मीठे शब्दों में बोली गई बात हितकारी होती है और उन्नति के मार्ग खोलती है लेकिन यदि वही बात कटुतापूर्ण शब्दों में बोली जाए तो दुःखदायी होती है और उसके दूरगामी दुष्परिमाण होते हैं
रोहते सायकैर्विद्धं वनं परशुना हतम्। वाचा दुरुक्तं बीभत्सं न संरोहति वाक्क्षतम् ॥
बाणों से छलनी और फरसे से कटा गया जंगल पुनः हरा -भरा हो जाता है लेकिन कटु -वचन से बना घाव कभी नहीं भरता।
वाक्सायका वदनात्रिष्पतन्ति यैराहतः शोचति रात्र्यहानि। परस्य नामर्मसु ते पतन्ति तान् पण्डितो नावसृजेत् परेभ्यः ॥
शब्द रूपी बाण सीधा दिल पर जाकर लगता है जिससे पीड़ित व्यक्ति दिन -रात घुलता रहता है। इसलिए ज्ञानयों को चाहिए कि कटु वचन बोलने से बचें।