Sanskrit Slokas - Sloka

Sanskrit Slokas - संस्कृत श्लोक - Sloka

Sanskrit is one of the official languages of India and is popularly known as a classical language of t.he country.

Sanskrit Slokas With Hindi Meaning - Shloka

प्राचीनकाल में भारत की जनभाषा संस्कृत थी यह सभी लोग जानते हैं। संस्कृत का महत्व वर्तमान समय मे धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
बहुत ही महत्वपूर्ण किताबें संस्कृत भाषा में है जिनमें लिखी बातें काफी सीख भड़ी हैं।
उन सभी महत्वपूर्ण ग्रंथों में जो कुछ प्रमुख श्लोकस है वो यहाँ पे संग्रह किया गया है उसके हिंदी अर्थ के साथ। प्रेरक श्लोकस संग्रह है ।

  • सात फेरों के मंत्र
  • बारह राशियों के मन्त्र
  • स्वास्थ्य पर संस्कृत श्लोक
  • सुबह के लिए प्रार्थना/मंत्र
  • बच्चों के लिए कुछ संस्कृत श्लोक
  • महान व्यक्तिओ के द्वारा लिखे गये श्लोक
  • हनुमान मंत्र
  • संस्कृत सुविचार
  • प्रेरक श्लोक
  • Slokas In Sanskrit - Shloka In Sanskrit

    sanskritslokas.com वेबसाइट उपयोगी संस्कृत श्लोक (उद्धरण) का संग्रह है।
    यहाँ सभी संस्कृत श्लोक को उसके हिंदी मीनिंग के साथ दिया गया है जो आपको श्लोक का मतलब समझने में मदद करेगी।

    Sanskrit Shlok - Sanskrit Quotes

    अष्टादस पुराणेषु व्यासस्य वचनं द्वयम्।
    परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥

    भावार्थ :

    अठारह पुराणों में व्यास के दो वचन ही है। पहला परोपकार ही पुण्य है और दूसरा औरों को दुःख पहुंचाना पाप है।

    उद्यमः साहसं धैर्यं बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः।
    षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र दैवं सहायकृत् ॥

    भावार्थ :

    जो जोखिम लेता हो (उधम), साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम जैसे ये 6 गुण जिस व्यक्ति के पास होते हैं, उसकी मदद भगवान भी करता है।

    न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्ते नातिविश्वसेत्।
    विश्वासाद् भयमभ्येति नापरीक्ष्य च विश्वसेत् ॥

    भावार्थ :

    जो विश्वसनीय नहीं है, उस पर कभी भी विश्वास न करें। परन्तु जो विश्वासपात्र है, उस पर भी आंख मूंदकर भरोसा न करें। क्योंकि अधिक विश्वास से भय उत्पन्न होता है। इसलिए बिना उचित परीक्षा लिए किसी पर भी विश्वास न करें।

    यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षनति।
    शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः ॥

    भावार्थ :

    जो पुरूष न कभी हर्षित होता है, न कभी द्वेष करता है, न कभी शोक करता है, न कामना करता हैं और जो शुभ और अशुभ सभी कर्मों का त्यागी हो, वह भक्तियुक्त मनुष्य मेरे को प्रिय है।

    सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् ।
    वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः ॥

    भावार्थ :

    विवेक में ना रहना सबसे बड़ा दुर्भाग्य है इसलिए बिना सोचे समझे कोई काम नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति सोच समझकर कार्य करता है मां लक्ष्मी स्वयं उसका चुनाव करती है।

    सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:।
    सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:ख भाग्भवेत् ॥

    भावार्थ :

    संसार में सभी सुखी हो, निरोगी हो, शुभ दर्शन हो और कोई भी ग्रसित ना हो।

    षड् दोषा: पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।
    निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता ॥

    भावार्थ :

    नींद, तन्द्रा (ऊँघना), डर, क्रोध, आलस्य और दीर्घ शत्रुता इन 6 दोषों को वैभव और उन्नति प्राप्त करने के लिए पुरूष को त्याग करना चाहिए।

    प्रथमेनार्जिता विद्या द्वितीयेनार्जितं धनं।
    तृतीयेनार्जितः कीर्तिः चतुर्थे किं करिष्यति ॥

    भावार्थ :

    जिसने पहले आश्रम अर्थात् ब्रह्मचर्य आश्रम में विद्या को अर्जित नहीं की, द्वितीय आश्रम (ग्रहस्थ) में धन को अर्जित नहीं किया हो, तीसरे आश्रम (वानप्रस्थ) में कीर्ति अर्जित नहीं की तो वह चतुर्थ (सन्यास) आश्रम में क्या करेगा?

    यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते निर्घषणच्छेदन तापताडनैः।
    तथा चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्यते त्यागेन शीलेन गुणेन कर्मणा ॥

    भावार्थ :

    जिस प्रकार सोने का परिक्षण घिसने, काटने, तापने और पीटने जैसे चार प्रकारों से होता है। ठीक उसी प्रकार पुरूष की परीक्षा त्याग, शील, गुण और कर्मों से होती है।

    न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि ।
    व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम् ॥

    भावार्थ :

    जिसे ना चोर चुरा सकता है, ना ही राजा छीन सकता है, ना ही इसे संभालना मुश्किल है, नाही भाइयों में बंटवारा हो सकता है, यह खर्च करने से भरने वाला धन विद्या है जो सर्वश्रेष्ठ है।