Sanskrit Slokas - Sloka

Sanskrit Slokas - संस्कृत श्लोक - Sloka

Sanskrit is one of the official languages of India and is popularly known as a classical language of t.he country.

Sanskrit Slokas With Hindi Meaning - Shloka

प्राचीनकाल में भारत की जनभाषा संस्कृत थी यह सभी लोग जानते हैं। संस्कृत का महत्व वर्तमान समय मे धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
बहुत ही महत्वपूर्ण किताबें संस्कृत भाषा में है जिनमें लिखी बातें काफी सीख भड़ी हैं।
उन सभी महत्वपूर्ण ग्रंथों में जो कुछ प्रमुख श्लोकस है वो यहाँ पे संग्रह किया गया है उसके हिंदी अर्थ के साथ। प्रेरक श्लोकस संग्रह है ।

  • सात फेरों के मंत्र
  • बारह राशियों के मन्त्र
  • स्वास्थ्य पर संस्कृत श्लोक
  • सुबह के लिए प्रार्थना/मंत्र
  • बच्चों के लिए कुछ संस्कृत श्लोक
  • महान व्यक्तिओ के द्वारा लिखे गये श्लोक
  • हनुमान मंत्र
  • संस्कृत सुविचार
  • प्रेरक श्लोक
  • Slokas In Sanskrit - Shloka In Sanskrit

    sanskritslokas.com वेबसाइट उपयोगी संस्कृत श्लोक (उद्धरण) का संग्रह है।
    यहाँ सभी संस्कृत श्लोक को उसके हिंदी मीनिंग के साथ दिया गया है जो आपको श्लोक का मतलब समझने में मदद करेगी।

    Sanskrit Shlok - Sanskrit Quotes

    कर्मफल-यदाचरित कल्याणि ! शुभं वा यदि वाऽशुभम् । तदेव लभते भद्रे! कर्त्ता कर्मजमात्मनः ॥

    भावार्थ :

    मनुष्य जैसा भी अच्छा या बुरा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है । कर्त्ता को अपने कर्म का फल अवश्य भोगना पड़ता है ।

    सुदुखं शयितः पूर्वं प्राप्येदं सुखमुत्तमम् । प्राप्तकालं न जानीते विश्वामित्रो यथा मुनिः ॥

    भावार्थ :

    किसी को जब बहुत दिनों तक अत्यधिक दुःख भोगने के बाद महान सुख मिलता है तो उसे विश्वामित्र मुनि की भांति समय का ज्ञान नहीं रहता – सुख का अधिक समय भी थोड़ा ही जान पड़ता है ।

    आयुर्वित्तं गृहच्छिद्रं मन्त्रमैथुनभेषजम्। दानमानापमानं च नवैतानि सुगोपयेत् ॥

    भावार्थ :

    हर व्यक्ति को अपनी आयु, गृह के दोष, मैथुन, मन्त्र, धन, दान, औषधि, मान-सम्मान, अपने अपमान, अपनी योग्यता को हमेशा सभी से छुपाकर ही रखना चाहिए अन्यथा कभी भी नुकसान झेलना पड़ सकता है।

    निरुत्साहस्य दीनस्य शोकपर्याकुलात्मनः । सर्वार्था व्यवसीदन्ति व्यसनं चाधिगच्छति ॥

    भावार्थ :

    उत्साह हीन, दीन और शोकाकुल मनुष्य के सभी काम बिगड़ जाते हैं , वह घोर विपत्ति में फंस जाता है ।

    अपना-पराया-गुणगान् व परजनः स्वजनो निर्गुणोऽपि वा । निर्गणः स्वजनः श्रेयान् यः परः पर एव सः ॥

    भावार्थ :

    पराया मनुष्य भले ही गुणवान् हो तथा स्वजन सर्वथा गुणहीन ही क्यों न हो, लेकिन गुणी परजन से गुणहीन स्वजन ही भला होता है अपना तो अपना है और पराया पराया ही रहता है ।

    न सुहृद्यो विपन्नार्था दिनमभ्युपपद्यते । स बन्धुर्योअपनीतेषु सहाय्यायोपकल्पते ॥

    भावार्थ :

    सुह्रद् वही है जो विपत्तिग्रस्त दीन मित्र का साथ दे और सच्चा बन्धु वही है जो अपने कुमार्गगामी बन्धु (बुरे रास्ते पर चलने वाले व्यक्ति) की भी सहायता करे।

    आढ् यतो वापि दरिद्रो वा दुःखित सुखितोऽपिवा । निर्दोषश्च सदोषश्च व्यस्यः परमा गतिः ॥

    भावार्थ :

    चाहे धनी हो या निर्धन, दुःखी हो या सुखी, निर्दोष हो या सदोष, मित्र ही मनुष्य का सबसे बड़ा सहारा होता है।

    न विना परवादेन रमते दुर्जनोजन:। काक:सर्वरसान भुक्ते विनामध्यम न तृप्यति ॥

    भावार्थ :

    लोगों की निंदा किये बिना दुष्ट व्यक्तियों को आनंद नहीं आता। जैसे कौवा सब रसों का भोग करता है। परंतु गंदगी के बिना उसकी तृप्ति नहीं होती।