Sanskrit is one of the official languages of India and is popularly known as a classical language of t.he country.
प्राचीनकाल में भारत की जनभाषा संस्कृत थी यह सभी लोग जानते हैं। संस्कृत का महत्व वर्तमान समय मे धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
बहुत ही महत्वपूर्ण किताबें संस्कृत भाषा में है जिनमें लिखी बातें काफी सीख भड़ी हैं।
उन सभी महत्वपूर्ण ग्रंथों में जो कुछ प्रमुख श्लोकस है वो यहाँ पे संग्रह किया गया है उसके हिंदी अर्थ के साथ। प्रेरक श्लोकस संग्रह है ।
sanskritslokas.com वेबसाइट उपयोगी संस्कृत श्लोक (उद्धरण) का संग्रह है।
यहाँ सभी संस्कृत श्लोक को उसके हिंदी मीनिंग के साथ दिया गया है जो आपको श्लोक का मतलब समझने में मदद करेगी।
पृथ्वियां त्रीणि रत्नानि जलमन्नम सुभाषितं। मूढ़े: पाधानखंडेषु रत्नसंज्ञा विधीयते ॥
पृथ्वी पर तीन रत्न हैं- जल,अन्न और शुभ वाणी। पर मूर्ख लोग पत्थर के टुकड़ों को रत्न की संज्ञा देते हैं।
सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात न ब्रूयात सत्यं प्रियम। प्रियं च नानृतं ब्रूयात एष धर्म: सनातन: ॥
सत्य बोलो, प्रिय बोलो,अप्रिय लगने वाला सत्य नहीं बोलना चाहिये। प्रिय लगने वाला असत्य भी नहीं बोलना चाहिए।
काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमतां। व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा ॥
बुद्धिमान लोग काव्य-शास्त्र का अध्ययन करने में अपना समय व्यतीत करते हैं। जबकि मूर्ख लोग निद्रा, कलह और बुरी आदतों में अपना समय बिताते हैं।
भूमे:गरीयसी माता,स्वर्गात उच्चतर:पिता। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गात अपि गरीयसी ॥
भूमि से श्रेष्ठ माता है, स्वर्ग से ऊंचे पिता हैं। माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं।
न कश्चित कस्यचित मित्रं न कश्चित कस्यचित रिपु:। व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिप्वस्तथा ॥
न कोई किसी का मित्र होता है। न कोई किसी का शत्रु। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं।
अबन्धुर्बन्धुतामेति नैकट्याभ्यासयोगतः। यात्यनभ्यासतो दूरात्स्नेहो बन्धुषु तानवम् ॥
बार बार मिलने से अपरिचित भी मित्र बन जाते हैं। दूरी के कारण न मिल पाने से बन्धुओं में स्नेह कम हो जाता है।
दुर्जन:स्वस्वभावेन परकार्ये विनश्यति। नोदर तृप्तिमायाती मूषक:वस्त्रभक्षक: ॥
दुष्ट व्यक्ति का स्वभाव ही दूसरे के कार्य बिगाड़ने का होता है। वस्त्रों को काटने वाला चूहाकभी भी पेट भरने के लिए कपड़े नहीं काटता।
नीरक्षीरविवेके हंस आलस्यं त्वं एव तनुषे चेत। विश्वस्मिन अधुना अन्य:कुलव्रतम पालयिष्यति क: ॥
ऐ हंस, यदि तुम दूध और पानी में फर्क करना छोड़ दोगे तो तुम्हारे कुलव्रत का पालन इस विश्व मे कौन करेगा। यदि बुद्धिमान व्यक्ति ही इस संसार मे अपना कर्त्तव्य त्याग देंगे तो निष्पक्ष व्यवहार कौन करेगा।