Sanskrit is one of the official languages of India and is popularly known as a classical language of t.he country.
प्राचीनकाल में भारत की जनभाषा संस्कृत थी यह सभी लोग जानते हैं। संस्कृत का महत्व वर्तमान समय मे धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
बहुत ही महत्वपूर्ण किताबें संस्कृत भाषा में है जिनमें लिखी बातें काफी सीख भड़ी हैं।
उन सभी महत्वपूर्ण ग्रंथों में जो कुछ प्रमुख श्लोकस है वो यहाँ पे संग्रह किया गया है उसके हिंदी अर्थ के साथ। प्रेरक श्लोकस संग्रह है ।
sanskritslokas.com वेबसाइट उपयोगी संस्कृत श्लोक (उद्धरण) का संग्रह है।
यहाँ सभी संस्कृत श्लोक को उसके हिंदी मीनिंग के साथ दिया गया है जो आपको श्लोक का मतलब समझने में मदद करेगी।
मूर्खस्य पञ्च चिह्नानि गर्वो दुर्वचनं तथा। क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादरः ॥
एक मुर्ख के पांच लक्षण होते है घमण्ड, दुष्ट वार्तालाप, क्रोध, जिद्दी तर्क और अन्य लोगों के लिए सम्मान में कमी।
सेवितव्यो महावृक्ष: फ़लच्छाया समन्वित:। यदि देवाद फलं नास्ति,छाया केन निवार्यते ॥
एक विशाल वृक्ष की सेवा करनी चाहिए। क्योंकि वह फल और छाया से युक्त होता है। यदि किसी दुर्भाग्य से फल नहीं देता तो उसकी छाया कोई नहीं रोक सकता है।
न देवा दण्डमादाय रक्षन्ति पशुपालवत। यं तु रक्षितमिच्छन्ति बुद्धया संविभजन्ति तम् ॥
देवता कभी मनुष्यों की रक्षा चरवाहों की भांति डंडा लेकर नहीं करते। जिसकी देवता रक्षा करना चाहते है, उसे उसकी रक्षा के लिए स्वरक्षा के लिए सद्बुद्धि प्रदान करते है।
परो अपि हितवान् बन्धुः बन्धुः अपि अहितः परः। अहितः देहजः व्याधिः हितम् आरण्यं औषधम् ॥
यदि कोई अपरिचित व्यक्ति आपकी मदद करें तो उसको अपने परिवार के सदस्य की तरह ही महत्व दें और अपने परिवार का सदस्य ही आपको नुकसान देना शुरू हो जाये तो उसे महत्व देना बंद कर दें। ठीक उसी तरह जैसे शरीर के किसी अंग में कोई बीमार हो जाये तो वह हमें तकलीफ पहुंचती है। जबकि जंगल में उगी हुई औषधी हमारे लिए लाभकारी होती है।
कृते प्रतिकृतं कुर्यात्ताडिते प्रतिताडितम्। करणेन च तेनैव चुम्बिते प्रतिचुम्बितम् ॥
हर कार्रवाही के लिए एक जवाबी कार्रवाही होनी चाहिए। हर प्रहार के लिए एक प्रति-प्रहार और उसी तर्क से हर चुम्बन के लिए एक जवाबी चुम्बन।
प्रियवाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः। तस्मात तदैव वक्तव्यम वचने का दरिद्रता ॥
प्रिय वाक्य बोलने से सभी जीव संतुष्ट हो जाते हैं, अतः प्रिय वचन ही बोलने चाहिए। ऐसे वचन बोलने में कंजूसी कैसी।
यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्। एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति ॥
जैसे एक पहिये से रथ नहीं चल सकता। ठीक उसी प्रकार बिना पुरुषार्थ के भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता है।
अश्वस्य भूषणं वेगो मत्तं स्याद् गजभूषणं। चातुर्यम् भूषणं नार्या उद्योगो नरभूषणं ॥
घोड़े की शोभा उसके वेग से होती है और हाथी की शोभा उसकी मदमस्त चाल से होती है।नारियों की शोभा उनकी विभिन्न कार्यों में दक्षता के कारण और पुरुषों की उनकी उद्योगशीलता के कारण होती है।