Sanskrit Slokas - Sloka

Sanskrit Slokas - संस्कृत श्लोक - Sloka

Sanskrit is one of the official languages of India and is popularly known as a classical language of t.he country.

Sanskrit Slokas With Hindi Meaning - Shloka

प्राचीनकाल में भारत की जनभाषा संस्कृत थी यह सभी लोग जानते हैं। संस्कृत का महत्व वर्तमान समय मे धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
बहुत ही महत्वपूर्ण किताबें संस्कृत भाषा में है जिनमें लिखी बातें काफी सीख भड़ी हैं।
उन सभी महत्वपूर्ण ग्रंथों में जो कुछ प्रमुख श्लोकस है वो यहाँ पे संग्रह किया गया है उसके हिंदी अर्थ के साथ। प्रेरक श्लोकस संग्रह है ।

  • सात फेरों के मंत्र
  • बारह राशियों के मन्त्र
  • स्वास्थ्य पर संस्कृत श्लोक
  • सुबह के लिए प्रार्थना/मंत्र
  • बच्चों के लिए कुछ संस्कृत श्लोक
  • महान व्यक्तिओ के द्वारा लिखे गये श्लोक
  • हनुमान मंत्र
  • संस्कृत सुविचार
  • प्रेरक श्लोक
  • Slokas In Sanskrit - Shloka In Sanskrit

    sanskritslokas.com वेबसाइट उपयोगी संस्कृत श्लोक (उद्धरण) का संग्रह है।
    यहाँ सभी संस्कृत श्लोक को उसके हिंदी मीनिंग के साथ दिया गया है जो आपको श्लोक का मतलब समझने में मदद करेगी।

    Sanskrit Shlok - Sanskrit Quotes

    विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन। स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते ॥

    भावार्थ :

    एक विद्वान और राजा की कभी कोई तुलना नहीं की जा सकती। क्योंकि राजा तो केवल अपने राज्य में सम्मान पाता है वही एक विद्वान हर जगह सम्मान पाता है।

    न स्वल्पस्य कृते भूरि नाशयेन्मतिमान् नरः। एतदेवातिपाण्डित्यं यत्स्वल्पाद् भूरिरक्षणम् ॥

    भावार्थ :

    थोड़े के लिए अधिक का नाश न करे, बुद्धिमत्ता इसी में है। बल्कि थोड़े को छोड़कर अधिक की रक्षा करे ।

    उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये। पयःपानं भुजंगानां केवलं विषवर्द्धनम् ॥

    भावार्थ :

    मूर्खों को दिया हुआ उपदेश उनके क्रोध को बढ़ाता ही है शांत नहीं करता। जिस प्रकार साँपों को पिलाया हुआ दुध हमेशा उनका विष ही बढ़ाता है ।

    पृथ्वियां त्रीणि रत्नानि जलमन्नम सुभाषितं। मूढ़े: पाधानखंडेषु रत्नसंज्ञा विधीयते ॥

    भावार्थ :

    पृथ्वी पर तीन रत्न हैं जलअन्न और शुभ वाणी पर मुर्ख लोग पत्थर के टुकड़ों को रत्न की संज्ञा देते हैं ।

    गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

    भावार्थ :

    गुरू ही ब्रह्मा हैं, गुरू ही विष्णु हैं, गुरू ही शंकर है, गुरू ही साक्षात परमब्रह्म हैं। ऐसे गुरू का मैं नमन करता हूं ।

    काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमतां। व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा ॥

    भावार्थ :

    बुद्धिमान लोग काव्य-शास्त्र का अध्ययन करने में अपना समय व्यतीत करते हैं। जबकि मुर्ख लोग निंद्रा, कलह और बुरी आदतों में अपना समय बिताते हैं ।

    शतेषु जायते शूरः सहस्रेषु च पण्डितः। वक्ता दशसहस्रेषु दाता भवति वा न वा ॥

    भावार्थ :

    सौ लोगों में से एक शूरवीर होता है। हजार लोगों में एक विद्वान होता है। दस हजार लोगों में एक अच्छा वक्ता होता है। वही लाखों में बस एक ही दानी होता है ।

    धृतिः शमो दमः शौचं कारुण्यं वागनिष्ठुरा। मित्राणाम् चानभिद्रोहः सप्तैताः समिधः श्रियः ॥

    भावार्थ :

    धैर्य, मन पर अंकुश, इन्द्रियसंयम, पवित्रता, दया, मधुर वाणी और मित्र से द्रोह न करना ये सात चीजें लक्ष्मी को बढ़ाने वाली हैं।