Sanskrit Slokas - Sloka

Sanskrit Slokas - संस्कृत श्लोक - Sloka

Sanskrit is one of the official languages of India and is popularly known as a classical language of t.he country.

Sanskrit Slokas With Hindi Meaning - Shloka

प्राचीनकाल में भारत की जनभाषा संस्कृत थी यह सभी लोग जानते हैं। संस्कृत का महत्व वर्तमान समय मे धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
बहुत ही महत्वपूर्ण किताबें संस्कृत भाषा में है जिनमें लिखी बातें काफी सीख भड़ी हैं।
उन सभी महत्वपूर्ण ग्रंथों में जो कुछ प्रमुख श्लोकस है वो यहाँ पे संग्रह किया गया है उसके हिंदी अर्थ के साथ। प्रेरक श्लोकस संग्रह है ।

Slokas In Sanskrit - Shloka In Sanskrit

sanskritslokas.com वेबसाइट उपयोगी संस्कृत श्लोक (उद्धरण) का संग्रह है।
यहाँ सभी संस्कृत श्लोक को उसके हिंदी मीनिंग के साथ दिया गया है जो आपको श्लोक का मतलब समझने में मदद करेगी।

Sanskrit Shlok - Sanskrit Quotes

मूर्खस्य पञ्च चिह्नानि गर्वो दुर्वचनं तथा। क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादरः ॥

भावार्थ :

एक मुर्ख के पांच लक्षण होते है घमण्ड, दुष्ट वार्तालाप, क्रोध, जिद्दी तर्क और अन्य लोगों के लिए सम्मान में कमी।

पुस्तकस्था तु या विद्या,परहस्तगतं च धनम्। कार्यकाले समुत्तपन्ने न सा विद्या न तद् धनम् ॥

भावार्थ :

किसी पुस्तक में रखी विद्या और दूसरे के हाथ में गया धन। ये दोनों जब जरूरत होती है तब हमारे किसी भी काम में नहीं आती।

देवो रुष्टे गुरुस्त्राता गुरो रुष्टे न कश्चन:। गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता न संशयः ॥

भावार्थ :

भाग्य रूठ जाये तो गुरू रक्षा करता है। गुरू रूठ जाये तो कोई नहीं होता। गुरू ही रक्षक है, गुरू ही शिक्षक है, इसमें कोई संदेह नहीं।

निरपेक्षो निर्विकारो निर्भरः शीतलाशयः। अगाधबुद्धिरक्षुब्धो भव चिन्मात्रवासनः ॥

भावार्थ :

आप सुख साधन रहित, परिवतर्नहीन, निराकार, अचल, अथाह जागरूकता और अडिग हैं। इसलिए अपनी जाग्रति को पकड़े रहो।

विद्या मित्रं प्रवासेषु,भार्या मित्रं गृहेषु च। व्याधितस्यौषधं मित्रं, धर्मो मित्रं मृतस्य च ॥

भावार्थ :

विदेश में ज्ञान, घर में अच्छे स्वभाव और गुणस्वरूप पत्नी, औषध रोगी का तथा धर्म मृतक का सबसे बड़ा मित्र होता है।

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं ॥

भावार्थ :

बड़ों का अभिवादन करने वाले मनुष्य की और नित्य वृद्धों की सेवा करने वाले मनुष्य की आयु, विद्या, यश और बल ये हमेशा बढ़ती रहती है।

यावद्बध्दो मरुद देहे यावच्चित्तं निराकुलम्। यावद्द्रॄष्टिभ्रुवोर्मध्ये तावत्कालभयं कुत: ॥

भावार्थ :

जब तक शरीर में सांस रोक दी जाती है तब तक मन अबाधित रहता है और जब तक ध्यान दोनों भौहों के बीच लगा है तब तक मृत्यु से कोई भय नहीं है।

सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्। वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः ॥

भावार्थ :

हमें अचानक आवेश या जोश में आकर कोई काम नहीं करना चाहिए। क्योंकि विवेक हीनता सबसे बड़ी विपतियों का कारण होती है। इसके विपरीत जो व्यक्ति सोच समझकर कार्य करता है। गुणों से आकृष्ट होने वाली मां लक्ष्मी स्वयं ही उसका चुनाव कर लेती है।