Sanskrit Slokas - Sloka

Sanskrit Slokas - संस्कृत श्लोक - Sloka

Sanskrit is one of the official languages of India and is popularly known as a classical language of t.he country.

Sanskrit Slokas With Hindi Meaning - Shloka 2025

प्राचीनकाल में भारत की जनभाषा संस्कृत थी यह सभी लोग जानते हैं। संस्कृत का महत्व वर्तमान समय मे धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
बहुत ही महत्वपूर्ण किताबें संस्कृत भाषा में है जिनमें लिखी बातें काफी सीख भड़ी हैं।
उन सभी महत्वपूर्ण ग्रंथों में जो कुछ प्रमुख श्लोकस है वो यहाँ पे संग्रह किया गया है उसके हिंदी अर्थ के साथ। प्रेरक श्लोकस संग्रह है ।

Slokas In Sanskrit | Sanskrit Slokas With Meaning

  • सात फेरों के मंत्र
  • बारह राशियों के मन्त्र
  • स्वास्थ्य पर संस्कृत श्लोक
  • सुबह के लिए प्रार्थना/मंत्र
  • बच्चों के लिए कुछ संस्कृत श्लोक
  • महान व्यक्तिओ के द्वारा लिखे गये श्लोक
  • हनुमान मंत्र
  • संस्कृत सुविचार
  • प्रेरक श्लोक
  • बच्चों के लिए श्लोक
  • 100 + श्लोक
  • दान श्लोक
  • बुद्धिमान श्लोक
  • भर्तृहरि नीतिशतक श्लोक
  • बच्चों के लिए प्रेरणात्मक संस्कृत श्लोक
  • मंत्र
  • ज्ञान पर संस्कृत श्लोक
  • जीवन पर संस्कृत श्लोक
  • शिक्षा पर संस्कृत श्लोक
  • Slokas In Sanskrit - Shloka In Sanskrit

    sanskritslokas.com वेबसाइट उपयोगी संस्कृत श्लोक (उद्धरण) का संग्रह है।
    यहाँ सभी संस्कृत श्लोक को उसके हिंदी मीनिंग के साथ दिया गया है जो आपको श्लोक का मतलब समझने में मदद करेगी।

    Sanskrit Shlok - Sanskrit Quotes

    अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्।
    उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥

    भावार्थ :

    जिनका हृदय बड़ा होता है, उनके लिए पूरी धरती ही परिवार होती है और जिनका हृदय छोटा है, उनकी सोच वह यह अपना है, वह पराया है की होती है।

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    अलसस्य कुतः विद्या अविद्यस्य कुतः धनम्।
    अधनस्य कुतः मित्रम् अमित्रस्य कुतः सुखम् ॥

    भावार्थ :

    आलसी व्यक्ति को विद्या कहां, मुर्ख और अनपढ़ और निर्धन व्यक्ति को मित्र कहां, अमित्र को सुख कहां।

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    सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।
    गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

    भावार्थ :

    तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हे नमस्कार है।

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    विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।
    पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥

    भावार्थ :

    विद्या हमें विनम्रता प्रदान करती है। विनम्रता से योग्यता आती है व योग्यता से हमें धन प्राप्त होता है और इस धन से हम धर्म के कार्य करते है और सुखी रहते है।

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    सुखार्थिनः कुतोविद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम्।
    सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् ॥

    भावार्थ :

    सुख चाहने वाले को विद्या कहाँ से, और विद्यार्थी को सुख कहाँ से, सुख की इच्छा रखने वाले को विद्या और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख का त्याग कर देना चाहिए।

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    स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः।
    स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान्सर्वत्र पूज्यते ॥

    भावार्थ :

    एक मुर्ख की पूजा उसके घर में होती है, एक मुखिया की पूजा उसके गाँव में होती है, राजा की पूजा उसके राज्य में होती है और एक विद्वान की पूजा सभी जगह पर होती है।

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    न विना परवादेन रमते दुर्जनोजन:।
    काक:सर्वरसान भुक्ते विनामध्यम न तृप्यति ॥

    भावार्थ :

    लोगों की निंदा (बुराई) किये बिना दुष्ट (बुरे) व्यक्तियों को आनंद नहीं आता। जैसे कौवा सब रसों का भोग करता है परंतु गंदगी के बिना उसकी संतुष्टि नहीं होती।

    दुर्जन:स्वस्वभावेन परकार्ये विनश्यति।
    नोदर तृप्तिमायाती मूषक:वस्त्रभक्षक: ॥

    भावार्थ :

    दुष्ट व्यक्ति का स्वभाव ही दूसरे के कार्य बिगाड़ने का होता है। वस्त्रों को काटने वाला चूहाकभी भी पेट भरने के लिए कपड़े नहीं काटता।

    न कश्चित कस्यचित मित्रं न कश्चित कस्यचित रिपु:।
    व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिप्वस्तथा ॥

    भावार्थ :

    न कोई किसी का मित्र होता है। न कोई किसी का शत्रु। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं।

    सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात न ब्रूयात सत्यं प्रियम।
    प्रियं च नानृतं ब्रूयात एष धर्म: सनातन: ॥

    भावार्थ :

    सत्य बोलो, प्रिय बोलो,अप्रिय लगने वाला सत्य नहीं बोलना चाहिये। प्रिय लगने वाला असत्य भी नहीं बोलना चाहिए।

    यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवताः।
    यत्र तास्तु न पूज्यंते तत्र सर्वाफलक्रियाः ॥

    भावार्थ :

    जहाँ पर हर नारी की पूजा होती है वहां पर देवता भी निवास करते हैं और जहाँ पर नारी की पूजा नहीं होती, वहां पर सभी काम करना व्यर्थ है।

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    किन्नु हित्वा प्रियो भवति। किन्नु हित्वा न सोचति ।
    किन्नु हित्वा अर्थवान् भवति। किन्नु हित्वा सुखी भवेत् ॥

    भावार्थ :

    किस चीज को छोड़कर मनुष्य प्रिय होता है? कोई भी चीज किसी का हित नहीं सोचती? किस चीज का त्याग करके व्यक्ति धनवान होता है? और किस चीज का त्याग कर सुखी होता है ?

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    मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्, मा स्वसारमुत स्वसा।
    सम्यञ्च: सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया ॥

    भावार्थ :

    भाई अपने भाई से कभी द्वेष नहीं करें, बहन अपनी बहन से द्वेष नहीं करें, समान गति से एक दूसरे का आदर-सम्मान करते हुए परस्पर मिल-जुलकर कर्मों को करने वाले होकर अथवा एकमत से प्रत्येक कार्य करने वाले होकर भद्रभाव से परिपूर्ण होकर संभाषण करें।

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    सत्य -सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्मः सदाश्रितः।
    सत्यमूलनि सर्वाणि सत्यान्नास्ति परं पदम् ॥

    भावार्थ :

    उस संसार में सत्य ही ईश्वर है धर्म भी सत्य के ही आश्रित है, सत्य ही सभी भाव-विभव का मूल है, सत्य से बढ़कर और कुछ भी नहीं है।

    माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः।
    न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा ॥

    भावार्थ :

    जो माता पिता अपने बच्चो को शिक्षा से वंचित रखते हैं, ऐसे माँ बाप बच्चो के शत्रु के समान है। विद्वानों की सभा में अनपढ़ व्यक्ति कभी सम्मान नहीं पा सकता वह हंसो के बीच एक बगुले के सामान है।

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    न विना परवादेन रमते दुर्जनोजन:।
    काक:सर्वरसान भुक्ते विनामध्यम न तृप्यति ॥

    भावार्थ :

    लोगों की निंदा किये बिना दुष्ट व्यक्तियों को आनंद नहीं आता। जैसे कौवा सब रसों का भोग करता है। परंतु गंदगी के बिना उसकी तृप्ति नहीं होती।

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    मूर्खा यत्र न पूज्यते धान्यं यत्र सुसंचितम्।
    दंपत्यो कलहं नास्ति तत्र श्रीः स्वयमागतः ॥

    भावार्थ :

    जहाँ मूर्ख को सम्मान नहीं मिलता हो, जहाँ अनाज अच्छे तरीके से रखा जाता हो और जहाँ पति-पत्नी के बीच में लड़ाई नहीं होती हो, वहाँ लक्ष्मी खुद आ जाती है।

    नीरक्षीरविवेके हंस आलस्यं त्वं एव तनुषे चेत।
    विश्वस्मिन अधुना अन्य:कुलव्रतम पालयिष्यति क: ॥

    भावार्थ :

    ऐ हंस, यदि तुम दूध और पानी में फर्क करना छोड़ दोगे तो तुम्हारे कुलव्रत का पालन इस विश्व मे कौन करेगा। यदि बुद्धिमान व्यक्ति ही इस संसार मे अपना कर्त्तव्य त्याग देंगे तो निष्पक्ष व्यवहार कौन करेगा।

    भूमे:गरीयसी माता,स्वर्गात उच्चतर:पिता।
    जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गात अपि गरीयसी ॥

    भावार्थ :

    भूमि से श्रेष्ठ माता है, स्वर्ग से ऊंचे पिता हैं। माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं।

    काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमतां।
    व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा ॥

    भावार्थ :

    बुद्धिमान लोग काव्य-शास्त्र का अध्ययन करने में अपना समय व्यतीत करते हैं। जबकि मूर्ख लोग निद्रा, कलह और बुरी आदतों में अपना समय बिताते हैं।

    Sanskrit Shlokas for Success: सफलता दिला सकते हैं संस्कृत के ये श्लोक, जानें हिंदी अर्थ

    उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
    न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:॥

    भावार्थ :

    सिर्फ इच्छा करने से उसके काम पूरे नहीं होते, बल्कि व्यक्ति के मेहनत करने से ही उसके काम पूरे होते हैं। जैसे सोये हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं नहीं आता, उसके लिए शेर को परिश्रम करना पड़ता है।

    योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय ।
    सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥

    भावार्थ :

    इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर, सफलताओं और विफलताओं में समान भाव लेकर सारे कर्मों को कर। ऐसी समता ही योग कहलाती है।

    बच्चों के लिए 20 संस्कृत श्लोक अर्थ सहित | 20 Sanskrit Shlokas for Children with Meaning

    बुद्धिर्बलं यशो धैर्यं निर्भयत्वमरोगता।
    अजाड्यं वाक्पटुत्वं च हनुमत्स्मरणाद्भवेत्॥

    भावार्थ :

    हनुमान जी के स्मरण से बुद्धि, बल, यश, धैर्य, निर्भयता, आरोग्यता, अजान्यता और वाक्पटुता प्राप्त होती है। हनुमान जी की पूजा से जीवन में साहस, शक्ति और आत्मविश्वास की वृद्धि होती है।

    या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

    भावार्थ :

    जो देवी सभी प्राणियों में माता के रूप में विद्यमान हैं, उन्हें बार-बार नमस्कार है। दुर्गा देवी की पूजा से सभी संकटों का नाश होता है और शक्ति की प्राप्ति होती है।

    सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
    शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

    भावार्थ :

    सभी मंगलों की मंगला, सभी कामनाओं को सिद्ध करने वाली, शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली, गौरी, नारायणी, तुम्हें प्रणाम। लक्ष्मी देवी की स्तुति से धन, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

    या कुन्देन्दु तुषार हार धवला,या शुभ्रवस्त्रावृता।
    या वीणावरदण्डमण्डितकरा,या श्वेतपद्मासना॥

    भावार्थ :

    जो कुंद के फूल, चंद्रमा और हिम के हार से धवल हैं, जो शुभ्र वस्त्रों से आच्छादित हैं, जिनके हाथों में वीणा और वरदंड है, जो श्वेत कमल पर विराजमान हैं। सरस्वती देवी की स्तुति से विद्या, बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है।

    वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
    निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

    भावार्थ :

    टेढ़ी सूंड वाले, बड़े शरीर वाले, करोड़ों सूर्यों के समान चमक वाले, हे देव! मेरे सभी कार्यों में हमेशा विघ्नों का नाश करें। गणेश जी की पूजा से सभी कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण होते हैं।

    शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं।
    विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गं॥

    भावार्थ :

    शांत रूप, सर्प शय्या पर शयन करने वाले, नाभि में कमल वाले, देवताओं के ईश्वर, समस्त विश्व का आधार, आकाश के समान, मेघ के रंग वाले, शुभ अंगों वाले। विष्णु भगवान की पूजा से जीवन में शांति और स्थिरता की प्राप्ति होती है।

    करचरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा।
    श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्।
    विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व।
    जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो॥

    भावार्थ :

    हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, श्रवण, नयन, मन से किए गए सभी अपराधों को क्षमा करें। जय करुणामय महादेव शम्भो। शिव भगवान की पूजा से जीवन में शांति, शक्ति और क्षमा की प्राप्ति होती है।

    रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे।
    रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः॥

    भावार्थ :

    राम, रामभद्र, रामचन्द्र, रघुनाथ, सीता के पति को नमस्कार। राम भगवान की पूजा से जीवन में मर्यादा, धर्म और सत्य की प्राप्ति होती है।

    बुद्धिर्बलं यशो धैर्यं निर्भयत्वमरोगता।
    अजाड्यं वाक्पटुत्वं च हनुमत्स्मरणाद्भवेत्॥

    भावार्थ :

    हनुमान जी के स्मरण से बुद्धि, बल, यश, धैर्य, निर्भयता, आरोग्यता, अजान्यता और वाक्पटुता प्राप्त होती है। हनुमान जी की पूजा से जीवन में साहस, शक्ति और आत्मविश्वास की वृद्धि होती है।

    कस्तूरी तिलकं ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभं।
    नासाग्रे नवमौक्तिकं, करतले वेणुं करे कङ्कणम्॥

    भावार्थ :

    ललाट पर कस्तूरी का तिलक, वक्षस्थल पर कौस्तुभ मणि, नासिका पर नया मोती, हाथ में बांसुरी और कंगन। कृष्ण भगवान की पूजा से प्रेम, आनंद और भक्ति की प्राप्ति होती है।

    शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं।
    विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गं॥

    भावार्थ :

    शांत रूप, सर्प शय्या पर शयन करने वाले, नाभि में कमल वाले, देवताओं के ईश्वर, समस्त विश्व का आधार, आकाश के समान, मेघ के रंग वाले, शुभ अंगों वाले। विष्णु भगवान की पूजा से जीवन में शांति और स्थिरता की प्राप्ति होती है।

    या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

    भावार्थ :

    जो देवी सभी प्राणियों में माता के रूप में विद्यमान हैं, उन्हें बार-बार नमस्कार है। दुर्गा देवी की पूजा से सभी संकटों का नाश होता है और शक्ति की प्राप्ति होती है।

    सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
    शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

    भावार्थ :

    सभी मंगलों की मंगला, सभी कामनाओं को सिद्ध करने वाली, शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली, गौरी, नारायणी, तुम्हें प्रणाम। लक्ष्मी देवी की स्तुति से धन, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

    या कुन्देन्दु तुषार हार धवला,या शुभ्रवस्त्रावृता।
    या वीणावरदण्डमण्डितकरा,या श्वेतपद्मासना॥

    भावार्थ :

    जो कुंद के फूल, चंद्रमा और हिम के हार से धवल हैं, जो शुभ्र वस्त्रों से आच्छादित हैं, जिनके हाथों में वीणा और वरदंड है, जो श्वेत कमल पर विराजमान हैं। सरस्वती देवी की स्तुति से विद्या, बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है।

    वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
    निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

    भावार्थ :

    टेढ़ी सूंड वाले, बड़े शरीर वाले, करोड़ों सूर्यों के समान चमक वाले, हे देव! मेरे सभी कार्यों में हमेशा विघ्नों का नाश करें। गणेश जी की पूजा से सभी कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण होते हैं।

    असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।
    मृत्योर्मा अमृतं गमय॥

    भावार्थ :

    असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। यह श्लोक हमारे जीवन में सत्य, प्रकाश और अमरता की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है।

    विद्या ददाति विनयं,विनयात् याति पात्रताम्।
    पात्रत्वात् धनमाप्नोति,धनात् धर्मं ततः सुखम्॥

    भावार्थ :

    विद्या से विनय, विनय से पात्रता, पात्रता से धन, धन से धर्म और धर्म से सुख प्राप्त होता है। यह श्लोक हमें शिक्षा और विनम्रता के महत्व को समझाता है, जिससे हम जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

    ॐ सह नाववतु।सह नौ भुनक्तु।
    सह वीर्यं करवावहै।
    तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥
    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

    भावार्थ :

    हम दोनों की रक्षा हो, हम दोनों का पालन हो, हम दोनों मिलकर परिश्रम करें, हमारे अध्ययन में तेज हो, हम एक दूसरे से द्वेष न करें। यह शांति मंत्र हमारे जीवन में शांति, समृद्धि और एकता की कामना करता है।

    गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः,गुरुर्देवो महेश्वरः।
    गुरुः साक्षात् परब्रह्म,तस्मै श्रीगुरवे नमः॥

    भावार्थ :

    गुरु ही ब्रह्मा, गुरु ही विष्णु और गुरु ही महेश्वर हैं। गुरु साक्षात् परब्रह्म हैं। इस श्लोक में गुरु की महिमा का वर्णन है, जो हमें सिखाते हैं, मार्गदर्शन करते हैं और हमें सही दिशा में ले जाते हैं।

    सर्वे भवन्तु सुखिनः,सर्वे सन्तु निरामयाः।
    सर्वे भद्राणि पश्यन्तु,मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्॥

    भावार्थ :

    सभी लोग सुखी रहें, सभी निरोगी रहें, सभी शुभ देखें और किसी को भी दुःख का सामना न करना पड़े। यह श्लोक हमारे समाज के कल्याण और सुख-समृद्धि की कामना करता है, जिससे हम सभी मिलकर एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकें।

    Sanskrit Shlokas for Hanuman Ji

    अञ्जनानन्दनं वीरं जानकीशोकनाशनम्।
    कपीशमक्षहन्तारं वन्दे लङ्काभयङ्करम्॥

    भावार्थ :

    जो अंजना के पुत्र, वीर, सीता के दुःख को हरने वाले, वानरराज, अक्षकुमार का संहार करने वाले, और लंका को भयभीत करने वाले हैं – ऐसे हनुमान को मैं प्रणाम करता हूँ।

    मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
    वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥

    भावार्थ :

    जो मन की गति से भी तेज, पवन के समान वेग वाले, इंद्रियों को जीतने वाले, बुद्धिमानों में श्रेष्ठ, पवन पुत्र, वानरों के नेता और श्रीराम के दूत हैं – ऐसे हनुमान जी की मैं शरण लेता हूँ।

    बुद्धिर्बलं यशो धर्मं निर्भयत्वं अरोगता।
    अजाड्यं वाक्पटुत्वं च हनुमत्स्मरणाद्भवेत्॥

    भावार्थ :

    श्री हनुमान जी का स्मरण करने से बुद्धि, बल, यश, धर्म, निर्भयता, स्वास्थ्य, वाणी की प्रखरता और निर्भीकता प्राप्त होती है।

    कायः कलेवरं दीप्तं महाबलपराक्रमम्।
    वायुपुत्रं महावीरं वन्दे रामभक्तं प्रभुम्॥

    भावार्थ :

    उज्ज्वल शरीर, महान बल और पराक्रम से युक्त, पवनपुत्र, महावीर, और श्रीराम के भक्त प्रभु को मैं वंदन करता हूँ।

    जीवन पर संस्कृत श्लोक | Sanskrit Slokas On Life

    अविश्रामं वहेत् भारं शीतोष्णं च न विन्दति ।
    ससन्तोष स्तथा नित्यं त्रीणि शिक्षेत गर्दभात् ॥

    भावार्थ :

    विश्राम लिए बिना भार वहन करना, ताप-ठंड ना देखना, सदा संतोष रखना यह तीन चीजें हमें गधे से सीखनी चाहिए।

    जीवितं क्षणविनाशिशाश्वतं किमपि नात्र।

    भावार्थ :

    यह क्षणभुंगर जीवन में कुछ भी शाश्वत नहीं है।

    मनःशौचं कर्मशौचं कुलशौचं च भारत ।
    देहशौचं च वाक्शौचं शौचं पंञ्चविधं स्मृतम्।

    भावार्थ :

    मन शौच, कर्म शौच, देश शौच और वाणी शौच यह पांच प्रकार के शौच हैं।

    जीविताशा बलवती धनाशा दुर्बला मम्।।

    भावार्थ :

    मेरी जीवन की आशा बलवती है पर धन की आशा दुर्लभ है।

    जीवचक्रं भ्रमत्येवं मा धैर्यात्प्रच्युतो भव।

    भावार्थ :

    जीवन का चक्र ऐसे ही चलता है इसीलिए धैर्य ना खोए।

    नो चेज्जातस्य वैफल्यं कास्य हानिरितिः परा।

    भावार्थ :

    जीवन की विफलता से बढ़कर क्या हानि होगी।

    न दाक्षिण्यं न सौशील्यं न कीर्तिःनसेवा नो दया किं जीवनं ते।

    भावार्थ :

    ना दान है ना सुशीलता है ना कीर्ति है ना सेवा है ना दया है तो ऐसा जीवन क्या है?

    यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रियाः !
    चित्ते वाचि क्रियायांच साधुनामेक्रूपता ॥

    भावार्थ :

    साधु जन वही बोलते हैं जो उनके चित्र में होता है और जो उनके चित्र में होता है वही उनकी क्रिया में होता है। ऐसे साधु जन के मन वचन एवं क्रिया में समानता होती है।

    यस्तु सञ्चरते देशान् सेवते यस्तु पण्डितान् !
    तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसियस्तु सञ्चरते देशान् सेवते यस्तु पण्डितान् !
    तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसि॥

    भावार्थ :

    वह व्यक्ति जो भिन्न-भिन्न देशों में भ्रमण करता है एवं विद्वानों की सेवा करता है ऐसे व्यक्ति की बुद्धि उसी तरह बढ़ती है जैसे तेल की बूंद पानी में फैल जाती है।

    शतेषु जायते शूरः सहस्रेषु च पण्डितः !
    वक्ता दशसहस्रेषु दाता भवति वा न वा ॥

    भावार्थ :

    100 लोगों में एक शूरवीर होता है, हजार लोगों में एक पंडित(विद्वान) होता है, 10000 लोगों में वक्ता होता है, लाख लोगों में एक दानी होता है।

    दारिद्रय रोग दुःखानि बंधन व्यसनानि च।
    आत्मापराध वृक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम् ॥

    भावार्थ :

    दरिद्र रोग दुख बंधन और बताएं यह आत्मा रूपी वृक्ष के अपराध का फल है जिसका उपभोग मनुष्य को करना ही पड़ता है।

    निर्विषेणापि सर्पेण कर्तव्या महती फणा।
    विषं भवतु वा माऽभूत् फणटोपो भयङ्करः॥

    भावार्थ :

    सांप जहरीला ना होने पर भी फन जरूर उठाता है, अगर वह ऐसा भी ना करें तो लोग उसकी रीड को जूतों से कुचल कर तोड़ देंगे।

    षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता !
    निद्रा तद्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रता ॥

    भावार्थ :

    व्यक्ति के बर्बाद होने के छह लक्षण है- नींद, तद्रा, क्रोध, आलस्य एवं काम को टालने की आदत।

    जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं !
    मानोन्नतिं दिशति पापमपा करोति ॥

    भावार्थ :

    बुद्धि की जटिलता को हरने वाला अच्छे दोस्तों का साथ है। बोली सच बोलने लगती है, महान और उन्नति पड़ती है तथा पाप मिट जाता है।

    उद्यमेन हि सिध्यन्ति, कार्याणि न मनोरथैः।
    न हि सुप्तस्य सिंहस्य, प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥

    भावार्थ :

    परिश्रम से कार्य सिद्ध होते हैं केवल मनोरथ से नहीं। सोते हुए सिंह के मुख में मृग स्वयं ही प्रवेश नहीं करता, उसे अपना शिकार स्वयं ही करना पड़ता है।

    प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
    तस्मात् प्रियं हि वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ॥

    भावार्थ :

    प्रिय वचन बोलने से सब जन संतुष्ट होते हैं इसलिए प्रिय वचन ही बोले। प्रिया वचन बोलने से कहां दरिद्रता आती अर्थात प्रवचन बोलने से कहीं नहीं मिलता नहीं आती तो प्रिया वचन बोले।

    काकचेष्टो बकध्यानी श्वाननिद्रस्तथैव च।
    अल्पाहारी गृहत्यागी, विद्यार्थी पञ्चलक्षणः ॥

    भावार्थ :

    कोई जैसी चेष्टा अगले जैसा ध्यान कुत्ते जैसी निंद्रा तथा कम खाने वाला और ग्रह का त्याग करने वाला यही विद्यार्थी के पांच लक्षण है।

    सद्भिरेव सहासीत सद्भिः कुर्वीत सङ्गतिम्।
    सद्भिर्विवादं मैत्री च नासद्भिः किञ्चिदाचरेत् ॥

    भावार्थ :

    सज्जनों के साथ बैठना, सज्जनों के साथ ही संगति करनी चाहिए। सज्जनों के साथ ही विवाद एवं मित्रता करनी चाहिए सज्जनों के साथ कोई व्यवहार नहीं करना चाहिए।

    राष्ट्र पर संस्कृत श्लोक | sanskrit shloka on nation

    त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् ।
    ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ॥

    भावार्थ :

    कुल के हितार्थ एक का त्याग करना, गाँव के हितार्थ कुल का, देश के हितार्थ गाँव का और आत्म कल्याण के लिए पृथ्वी का त्याग करना चाहिए

    भूमे मातर्नि धेहि भा भद्रया सुप्रतिष्ठितम् ॥

    भावार्थ :

    हे मातृभूमि! कल्याणकारी बुद्धि से हमें युक्त कर मुझको प्रतिदिन सब विषयों को ज्ञान कराओ ताकि प्रथ्वी की संपत्ति प्राप्त हो।

    राष्ट्रं हि रक्षामा ध्रुवाम्, देहमित्याश्रितो वयम्।

    भावार्थ :

    राष्ट्र की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है, हम इसी पर आश्रित हैं।

    राष्ट्रस्य धर्मः सदा रक्षणीयः।

    भावार्थ :

    राष्ट्र का धर्म सदैव रक्षा योग्य होता है।

    संस्कृत के कुछ बेहतरीन श्लोक | Some of the best shlokas in Sanskrit

    स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा ।
    सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम् ॥

    भावार्थ :

    किसी व्यक्ति को आप चाहे कितनी ही सलाह दे दो किन्तु उसका मूल स्वभाव नहीं बदलता ठीक उसी तरह जैसे ठन्डे पानी को उबालने पर तो वह गर्म हो जाता है लेकिन बाद में वह पुनः ठंडा हो जाता है।

    अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते ।
    अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः ॥

    भावार्थ :

    किसी जगह पर बिना बुलाये चले जाना, बिना पूछे बहुत अधिक बोलते रहना, जिस चीज या व्यक्ति पर विश्वास नहीं करना चाहिए उस पर विश्वास करना मुर्ख लोगो के लक्षण होते है

    यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रियाः ।
    चित्ते वाचि क्रियायांच साधुनामेक्रूपता ॥

    भावार्थ :

    अच्छे लोग वही बात बोलते है जो उनके मन में होती है. अच्छे लोग जो बोलते है वही करते है. ऐसे पुरुषो के मन, वचन व कर्म में समानता होती है

    षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता ।
    निद्रा तद्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रता ॥

    भावार्थ :

    किसी व्यक्ति के बर्बाद होने के 6 लक्षण होते है – नींद, गुस्सा, भय, तन्द्रा, आलस्य और काम को टालने की आदत

    कार्यार्थी भजते लोकं यावत्कार्य न सिद्धति ।
    उत्तीर्णे च परे पारे नौकायां किं प्रयोजनम्॥

    भावार्थ :

    जिस तरह नदी पार करने के बाद लोग नाव को भूल जाते है ठीक उसी तरह से लोग अपने काम पूरा होने तक दूसरो की प्रसंशा करते है और काम पूरा हो जाने के बाद दूसरे व्यक्ति को भूल जाते।

    कृतान्तोऽपि सन्नद्धः, क्रोधाग्निना ज्वलति ।
    विध्वंसयामि सर्वान्, यदि निहन्तास्मि दुष्टजनम्॥

    भावार्थ :

    अगर दुष्टों का नाश न किया, तो मेरा गुस्सा पूरी दुनिया को तबाह कर देगा!

    Navras Shlok in Sanskrit | संस्कृत साहित्य के नवरस श्लोक | Navras Sanskrit Shlokas

    1. श्रृंगार रस (प्रेम और सौंदर्य)

    "मुखं चन्द्रकान्तं, वदनं मधुरं, नयनं मृगमदकज्जलम्।
    हृदयस्य स्पन्दनं प्रिय, त्वयि मम जीवितं समर्पितम्॥"

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    प्रेम में डूबे व्यक्ति का अपने प्रिय से कहना – तेरा चेहरा चांद जैसा है, आंखें हिरण सी, और दिल की धड़कन भी अब तेरे नाम है।

    English Meaning :

    A person in love says to his beloved – Your face is like the moon, your eyes are like a deer, and the beat of my heart is also in your name now.

    2. हास्य रस (हंसी-मजाक)

    हससि किं बालक किं विषण्णो, गदगदं वदसि किं नवोदितम्।
    अवधीर्य पन्थानमागतः किं, विहससि सर्वं विजित्य लोकम्॥

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    अरे बालक! इतना क्यों हंस रहा है? क्या कोई नया मजेदार किस्सा सुन लिया या कोई मजेदार बात हो गई?

    English Meaning :

    Hey boy! Why are you laughing so much? Did you hear a new funny story or did something funny happen?

    3. करुण रस (दुख और संवेदना)

    विपदः संसारे बहुलाः, दुःखकथा च नित्यं।
    करुणामयि मां पालय, भवसागरं तरणाय॥

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    इस संसार में दुख बहुत हैं, हर दिन एक नई तकलीफ। हे करुणामयी मां! मुझे इस सागर से पार लगा दो।

    English Meaning :

    There is a lot of sorrow in this world, every day a new trouble. O compassionate mother! Help me cross this ocean.

    4. रौद्र रस (क्रोध और गुस्सा)

    कृतान्तोऽपि सन्नद्धः, क्रोधाग्निना ज्वलति।
    विध्वंसयामि सर्वान्, यदि निहन्तास्मि दुष्टजनम्॥

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    अगर दुष्टों का नाश न किया, तो मेरा गुस्सा पूरी दुनिया को तबाह कर देगा!

    English Meaning :

    If the evil ones are not destroyed, my anger will destroy the entire world!

    5. वीर रस (शौर्य और पराक्रम)

    न भीतो मरणादस्मि, न भीतो दुष्टसंघातैः।
    धर्मरक्षणार्थं, प्राणांस्त्यजामि सायुधः॥

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    मैं न मौत से डरता हूं, न ही दुश्मनों की भीड़ से। धर्म की रक्षा के लिए हथियार उठाकर जान भी दे दूंगा!

    English Meaning :

    I am neither afraid of death nor of the crowd of enemies. I will take up arms and even sacrifice my life to protect religion!

    6. भयानक रस (भय और डर)

    अन्धकारे महाघोरे, निःशब्दे वनमध्यगः।
    भीतभीतः प्रधावामि, व्याघ्रस्य गर्जनात्॥

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    गहरे अंधेरे और सन्नाटे भरे जंगल में शेर की दहाड़ सुनकर दिल कांप गया और दौड़ पड़ी जान बचाने!

    English Meaning :

    Hearing the roar of the lion in the deep dark and silent forest, the heart trembled and ran to save life!

    7. बीभत्स रस (घृणा और जुगुप्सा)

    रक्तमांसं च भक्षयन्तं, राक्षसं दृष्ट्वा जनाः।
    विषण्णमुखाः पलायन्ते, जुगुप्सया विह्वलिताः॥

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    खून-मांस खाते राक्षस को देखकर लोग घबरा गए, घृणा से मुंह फेरकर भाग खड़े हुए!

    English Meaning :

    Seeing the monster eating flesh and blood, people got frightened and ran away in disgust!

    8. अद्भुत रस (आश्चर्य और चमत्कार)

    आकाशे तारकासङ्घः, जलधौ रत्नानि बहूनि।
    किं अद्भुतं जगत्यस्मिन, यत्र विष्णोः सृष्टिरियं॥

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    आकाश में अनगिनत तारे और समुद्र में अनमोल रत्न! इस दुनिया में क्या-क्या अद्भुत नहीं है, जो भगवान विष्णु ने रचा!

    English Meaning :

    Countless stars in the sky and priceless gems in the sea! What all is not wonderful in this world, which Lord Vishnu has created!

    9. शांत रस (शांति और सुकून)

    शान्तमात्मानं चिन्तय, विश्वमिदं क्षणभङ्गुरम्।
    सर्वं त्यक्त्वा सुखं वस, नास्ति शाश्वतमिदम्॥

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    अपने मन को शांत रखो, ये दुनिया पल भर में बदल जाती है। सब छोड़कर सुख से रहो, क्योंकि कुछ भी सदा रहने वाला नहीं।

    English Meaning :

    Keep your mind calm, this world changes in a moment. Leave everything and live happily because nothing will last forever.

    अच्छे मित्र लक्षण पर संस्कृत श्लोक

    पापान्निवारयति योजयते हिताय गुह्यं निगूहति गुणान् प्रकटीकरोति ।
    आपद्गतं च न जहाति ददाति काले सन्मित्रलक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः ॥

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    जो पाप से रोकता है, हित में जोडता है, गुप्त बातों को गुप्त रखता है, गुणों को प्रकट करता है, आपत्ति आने पर छोडता नहीं, समय पर देता है - सज्जन इन्हीं को सन्मित्र के लक्षण कहते हैं ।

    English Meaning :

    One who prevents sin, helps others, keeps secrets secret, reveals good qualities, does not forsake a person in times of trouble and gives help on time - gentlemen call these the characteristics of a good friend.

    मूर्ख के लक्षण पर संस्कृत श्लोक

    मूर्खस्य पञ्च चिह्नानि गर्वो दुर्वचनं मुखे ।
    हठी चैव विषादी च परोक्तं नैव मन्यते ॥

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    गर्व, मुख में दुर्वचन, हठी स्वभाव, विषाद, और दूसरों का न मानना - ये पाँच मूर्ख के लक्षण हैं ।

    English Meaning :

    Pride, bad words, stubborn nature, sadness and not listening to others - these are the five characteristics of a fool.

    धैर्यवान् मनुष्य लक्षण पर संस्कृत श्लोक

    निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु
    लक्ष्मीः स्थिरा भवतु गच्छतु वा यथेष्टम्।
    अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा
    न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः॥

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    नीति में निपुण मनुष्य चाहे निंदा करें या प्रशंसा, लक्ष्मी आयें या इच्छानुसार चली जायें, आज ही मृत्यु हो जाए या युगों के बाद हो परन्तु धैर्यवान् मनुष्य कभी भी न्याय के मार्ग से अपने कदम नहीं हटाते हैं ।

    English Meaning :

    A man well versed in ethics may criticise or praise him, Lakshmi may come or go as per wish, death may occur today or after ages, but a patient man never moves his steps away from the path of justice.

    "परहित" से संबंधित संस्कृत

    श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुंडलेन, दानेन पाणिर्न तु कंकणेन ।
    विभाति कायः करुणापराणां, परोपकारैर्न तु चन्दनेन ।।

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    कानों में कुंडल पहन लेने से शोभा नहीं बढ़ती, अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है। हाथों की सुन्दरता कंगन पहनने से नहीं होती बल्कि दान देने से होती है। सज्जनों का शरीर भी चन्दन से नहीं बल्कि परहित में किये गये कार्यों से शोभायमान होता है।

    English Meaning :

    Wearing earrings does not enhance beauty, but listening to wise words does. The beauty of hands does not come from wearing bracelets, but from giving charity. The body of gentlemen also becomes beautiful not from sandalwood, but from the work done for the welfare of others.

    परो अपि हितवान् बन्धुः बन्धुः अपि अहितः परः।
    अहितः देहजः व्याधिः हितम् आरण्यं औषधम्।।

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    यदि कोई अपरिचित व्यक्ति आपकी मदद करें तो उसको अपने परिवार के सदस्य की तरह ही महत्व दें और अपने परिवार का सदस्य ही आपको नुकसान देना शुरू हो जाये तो उसे महत्व देना बंद कर दें। ठीक उसी तरह जैसे शरीर के किसी अंग में कोई बीमार हो जाये तो वह हमें तकलीफ पहुंचती है। जबकि जंगल में उगी हुई औषधी हमारे लिए लाभकारी होती है।

    English Meaning :

    If a stranger helps you, give him the same importance as you give to a family member and if a member of your family starts harming you, then stop giving him importance. Just like if any part of the body gets sick, it hurts us. Whereas the medicine grown in the forest is beneficial for us.

    अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:।
    चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं।।

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    बड़ों का अभिवादन करने वाले मनुष्य की और नित्य वृद्धों की सेवा करने वाले मनुष्य की आयु, विद्या, यश और बल ये हमेशा बढ़ती रहती है।

    English Meaning :

    The age, knowledge, fame and strength of a person who greets elders and serves elders regularly keep on increasing.

    सत्य पर संस्कृत श्लोक | Sanskrit Shloka On Truth

    सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात ब्रूयान्नब्रूयात् सत्यंप्रियम्।
    प्रियं च नानृतम् ब्रुयादेषः धर्मः सनातनः॥

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    सत्य कहो किन्तु सभी को प्रिय लगने वाला सत्य ही कहो, उस सत्य को मत कहो जो सर्वजन के लिए हानिप्रद है, (इसी प्रकार से) उस झूठ को भी मत कहो जो सर्वजन को प्रिय हो, यही सनातन धर्म है।

    English Meaning :

    Say the truth, but say only the truth that is liked by all. Do not say the truth that is harmful to all. (Similarly) do not say the lie that is liked by all. This is the eternal Dharma.

    सत्यस्य वचनं श्रेयः सत्यादपि हितं वदेत्।
    यद्भूतहितमत्यन्तं एतत् सत्यं मतं मम्॥

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    यद्यपि सत्य वचन बोलना श्रेयस्कर है तथापि उस सत्य को ही बोलना चाहिए जिससे सर्वजन का कल्याण हो। मेरे (अर्थात् श्लोककर्ता नारद के) विचार से तो जो बात सभी का कल्याण करती है वही सत्य है।

    English Meaning :

    Although speaking the truth is better, one should speak only that truth which is beneficial to all. In my (i.e. the narrator of the verse Narada's) opinion, that which is beneficial to all is the truth.

    'परिश्रम' से जुड़े संस्कृत के श्लोक | Sanskrit shloka 'hard work' | परिश्रम पर संस्कृत श्लोक

    आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
    नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।।

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    व्यक्ति का सबसे बड़ा दुश्मन आलस्य होता है, व्यक्ति का परिश्रम ही उसका सच्चा मित्र होता है। क्योंकि जब भी मनुष्य परिश्रम करता है तो वह दुखी नहीं होता है और हमेशा खुश ही रहता है।

    English Meaning :

    The biggest enemy of a person is laziness, a person's hard work is his true friend. Because whenever a person works hard, he does not feel sad and is always happy.

    उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
    न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।।

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    व्यक्ति के मेहनत करने से ही उसके काम पूरे होते हैं, सिर्फ इच्छा करने से उसके काम पूरे नहीं होते। जैसे सोये हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं नहीं आता, उसके लिए शेर को परिश्रम करना पड़ता है।

    English Meaning :

    A person's work is completed only when he works hard, his work is not completed just by wishing. Just like a deer does not come into the mouth of a sleeping lion on its own, the lion has to work hard for it.

    वाणी रसवती यस्य,यस्य श्रमवती क्रिया।
    लक्ष्मी : दानवती यस्य,सफलं तस्य जीवितं।।

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    जिस मनुष्य की वाणी मीठी हो, जिसका काम परिश्रम से भरा हो, जिसका धन दान करने में प्रयुक्त हो, उसका जीवन सफ़ल है।

    English Meaning :

    The person whose speech is sweet, whose work is full of hard work, whose wealth is used in charity, his life is successful.

    यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्।
    एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति।।

    हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) :

    जैसे एक पहिये से रथ नहीं चल सकता। ठीक उसी प्रकार बिना पुरुषार्थ के भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता है।

    English Meaning :

    Just as a chariot cannot move with just one wheel, in the same way destiny cannot be achieved without effort.