Sanskrit is one of the official languages of India and is popularly known as a classical language of t.he country.
प्राचीनकाल में भारत की जनभाषा संस्कृत थी यह सभी लोग जानते हैं। संस्कृत का महत्व वर्तमान समय मे धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
बहुत ही महत्वपूर्ण किताबें संस्कृत भाषा में है जिनमें लिखी बातें काफी सीख भड़ी हैं।
उन सभी महत्वपूर्ण ग्रंथों में जो कुछ प्रमुख श्लोकस है वो यहाँ पे संग्रह किया गया है उसके हिंदी अर्थ के साथ। प्रेरक श्लोकस संग्रह है ।
sanskritslokas.com वेबसाइट उपयोगी संस्कृत श्लोक (उद्धरण) का संग्रह है।
यहाँ सभी संस्कृत श्लोक को उसके हिंदी मीनिंग के साथ दिया गया है जो आपको श्लोक का मतलब समझने में मदद करेगी।
अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥जिनका हृदय बड़ा होता है, उनके लिए पूरी धरती ही परिवार होती है और जिनका हृदय छोटा है, उनकी सोच वह यह अपना है, वह पराया है की होती है।
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अलसस्य कुतः विद्या अविद्यस्य कुतः धनम्।
अधनस्य कुतः मित्रम् अमित्रस्य कुतः सुखम् ॥आलसी व्यक्ति को विद्या कहां, मुर्ख और अनपढ़ और निर्धन व्यक्ति को मित्र कहां, अमित्र को सुख कहां।
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सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते ॥तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हे नमस्कार है।
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विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥विद्या हमें विनम्रता प्रदान करती है। विनम्रता से योग्यता आती है व योग्यता से हमें धन प्राप्त होता है और इस धन से हम धर्म के कार्य करते है और सुखी रहते है।
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सुखार्थिनः कुतोविद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम्।
सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् ॥सुख चाहने वाले को विद्या कहाँ से, और विद्यार्थी को सुख कहाँ से, सुख की इच्छा रखने वाले को विद्या और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख का त्याग कर देना चाहिए।
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स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान्सर्वत्र पूज्यते ॥एक मुर्ख की पूजा उसके घर में होती है, एक मुखिया की पूजा उसके गाँव में होती है, राजा की पूजा उसके राज्य में होती है और एक विद्वान की पूजा सभी जगह पर होती है।
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न विना परवादेन रमते दुर्जनोजन:।
काक:सर्वरसान भुक्ते विनामध्यम न तृप्यति ॥लोगों की निंदा (बुराई) किये बिना दुष्ट (बुरे) व्यक्तियों को आनंद नहीं आता। जैसे कौवा सब रसों का भोग करता है परंतु गंदगी के बिना उसकी संतुष्टि नहीं होती।
दुर्जन:स्वस्वभावेन परकार्ये विनश्यति।
नोदर तृप्तिमायाती मूषक:वस्त्रभक्षक: ॥दुष्ट व्यक्ति का स्वभाव ही दूसरे के कार्य बिगाड़ने का होता है। वस्त्रों को काटने वाला चूहाकभी भी पेट भरने के लिए कपड़े नहीं काटता।
न कश्चित कस्यचित मित्रं न कश्चित कस्यचित रिपु:।
व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिप्वस्तथा ॥न कोई किसी का मित्र होता है। न कोई किसी का शत्रु। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं।
सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात न ब्रूयात सत्यं प्रियम।
प्रियं च नानृतं ब्रूयात एष धर्म: सनातन: ॥सत्य बोलो, प्रिय बोलो,अप्रिय लगने वाला सत्य नहीं बोलना चाहिये। प्रिय लगने वाला असत्य भी नहीं बोलना चाहिए।
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवताः।
यत्र तास्तु न पूज्यंते तत्र सर्वाफलक्रियाः ॥जहाँ पर हर नारी की पूजा होती है वहां पर देवता भी निवास करते हैं और जहाँ पर नारी की पूजा नहीं होती, वहां पर सभी काम करना व्यर्थ है।
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किन्नु हित्वा प्रियो भवति। किन्नु हित्वा न सोचति ।
किन्नु हित्वा अर्थवान् भवति। किन्नु हित्वा सुखी भवेत् ॥किस चीज को छोड़कर मनुष्य प्रिय होता है? कोई भी चीज किसी का हित नहीं सोचती? किस चीज का त्याग करके व्यक्ति धनवान होता है? और किस चीज का त्याग कर सुखी होता है ?
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मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्, मा स्वसारमुत स्वसा।
सम्यञ्च: सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया ॥भाई अपने भाई से कभी द्वेष नहीं करें, बहन अपनी बहन से द्वेष नहीं करें, समान गति से एक दूसरे का आदर-सम्मान करते हुए परस्पर मिल-जुलकर कर्मों को करने वाले होकर अथवा एकमत से प्रत्येक कार्य करने वाले होकर भद्रभाव से परिपूर्ण होकर संभाषण करें।
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सत्य -सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्मः सदाश्रितः।
सत्यमूलनि सर्वाणि सत्यान्नास्ति परं पदम् ॥उस संसार में सत्य ही ईश्वर है धर्म भी सत्य के ही आश्रित है, सत्य ही सभी भाव-विभव का मूल है, सत्य से बढ़कर और कुछ भी नहीं है।
माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः।
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा ॥जो माता पिता अपने बच्चो को शिक्षा से वंचित रखते हैं, ऐसे माँ बाप बच्चो के शत्रु के समान है। विद्वानों की सभा में अनपढ़ व्यक्ति कभी सम्मान नहीं पा सकता वह हंसो के बीच एक बगुले के सामान है।
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न विना परवादेन रमते दुर्जनोजन:।
काक:सर्वरसान भुक्ते विनामध्यम न तृप्यति ॥लोगों की निंदा किये बिना दुष्ट व्यक्तियों को आनंद नहीं आता। जैसे कौवा सब रसों का भोग करता है। परंतु गंदगी के बिना उसकी तृप्ति नहीं होती।
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मूर्खा यत्र न पूज्यते धान्यं यत्र सुसंचितम्।
दंपत्यो कलहं नास्ति तत्र श्रीः स्वयमागतः ॥जहाँ मूर्ख को सम्मान नहीं मिलता हो, जहाँ अनाज अच्छे तरीके से रखा जाता हो और जहाँ पति-पत्नी के बीच में लड़ाई नहीं होती हो, वहाँ लक्ष्मी खुद आ जाती है।
नीरक्षीरविवेके हंस आलस्यं त्वं एव तनुषे चेत।
विश्वस्मिन अधुना अन्य:कुलव्रतम पालयिष्यति क: ॥ऐ हंस, यदि तुम दूध और पानी में फर्क करना छोड़ दोगे तो तुम्हारे कुलव्रत का पालन इस विश्व मे कौन करेगा। यदि बुद्धिमान व्यक्ति ही इस संसार मे अपना कर्त्तव्य त्याग देंगे तो निष्पक्ष व्यवहार कौन करेगा।
भूमे:गरीयसी माता,स्वर्गात उच्चतर:पिता।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गात अपि गरीयसी ॥भूमि से श्रेष्ठ माता है, स्वर्ग से ऊंचे पिता हैं। माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं।
काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमतां।
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा ॥बुद्धिमान लोग काव्य-शास्त्र का अध्ययन करने में अपना समय व्यतीत करते हैं। जबकि मूर्ख लोग निद्रा, कलह और बुरी आदतों में अपना समय बिताते हैं।
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:॥सिर्फ इच्छा करने से उसके काम पूरे नहीं होते, बल्कि व्यक्ति के मेहनत करने से ही उसके काम पूरे होते हैं। जैसे सोये हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं नहीं आता, उसके लिए शेर को परिश्रम करना पड़ता है।
योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय ।
सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर, सफलताओं और विफलताओं में समान भाव लेकर सारे कर्मों को कर। ऐसी समता ही योग कहलाती है।
बुद्धिर्बलं यशो धैर्यं निर्भयत्वमरोगता।
अजाड्यं वाक्पटुत्वं च हनुमत्स्मरणाद्भवेत्॥हनुमान जी के स्मरण से बुद्धि, बल, यश, धैर्य, निर्भयता, आरोग्यता, अजान्यता और वाक्पटुता प्राप्त होती है। हनुमान जी की पूजा से जीवन में साहस, शक्ति और आत्मविश्वास की वृद्धि होती है।
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥जो देवी सभी प्राणियों में माता के रूप में विद्यमान हैं, उन्हें बार-बार नमस्कार है। दुर्गा देवी की पूजा से सभी संकटों का नाश होता है और शक्ति की प्राप्ति होती है।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥सभी मंगलों की मंगला, सभी कामनाओं को सिद्ध करने वाली, शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली, गौरी, नारायणी, तुम्हें प्रणाम। लक्ष्मी देवी की स्तुति से धन, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
या कुन्देन्दु तुषार हार धवला,या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा,या श्वेतपद्मासना॥जो कुंद के फूल, चंद्रमा और हिम के हार से धवल हैं, जो शुभ्र वस्त्रों से आच्छादित हैं, जिनके हाथों में वीणा और वरदंड है, जो श्वेत कमल पर विराजमान हैं। सरस्वती देवी की स्तुति से विद्या, बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥टेढ़ी सूंड वाले, बड़े शरीर वाले, करोड़ों सूर्यों के समान चमक वाले, हे देव! मेरे सभी कार्यों में हमेशा विघ्नों का नाश करें। गणेश जी की पूजा से सभी कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण होते हैं।
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गं॥शांत रूप, सर्प शय्या पर शयन करने वाले, नाभि में कमल वाले, देवताओं के ईश्वर, समस्त विश्व का आधार, आकाश के समान, मेघ के रंग वाले, शुभ अंगों वाले। विष्णु भगवान की पूजा से जीवन में शांति और स्थिरता की प्राप्ति होती है।
करचरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा।
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व।
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो॥हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, श्रवण, नयन, मन से किए गए सभी अपराधों को क्षमा करें। जय करुणामय महादेव शम्भो। शिव भगवान की पूजा से जीवन में शांति, शक्ति और क्षमा की प्राप्ति होती है।
रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः॥राम, रामभद्र, रामचन्द्र, रघुनाथ, सीता के पति को नमस्कार। राम भगवान की पूजा से जीवन में मर्यादा, धर्म और सत्य की प्राप्ति होती है।
बुद्धिर्बलं यशो धैर्यं निर्भयत्वमरोगता।
अजाड्यं वाक्पटुत्वं च हनुमत्स्मरणाद्भवेत्॥हनुमान जी के स्मरण से बुद्धि, बल, यश, धैर्य, निर्भयता, आरोग्यता, अजान्यता और वाक्पटुता प्राप्त होती है। हनुमान जी की पूजा से जीवन में साहस, शक्ति और आत्मविश्वास की वृद्धि होती है।
कस्तूरी तिलकं ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभं।
नासाग्रे नवमौक्तिकं, करतले वेणुं करे कङ्कणम्॥ललाट पर कस्तूरी का तिलक, वक्षस्थल पर कौस्तुभ मणि, नासिका पर नया मोती, हाथ में बांसुरी और कंगन। कृष्ण भगवान की पूजा से प्रेम, आनंद और भक्ति की प्राप्ति होती है।
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गं॥शांत रूप, सर्प शय्या पर शयन करने वाले, नाभि में कमल वाले, देवताओं के ईश्वर, समस्त विश्व का आधार, आकाश के समान, मेघ के रंग वाले, शुभ अंगों वाले। विष्णु भगवान की पूजा से जीवन में शांति और स्थिरता की प्राप्ति होती है।
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥जो देवी सभी प्राणियों में माता के रूप में विद्यमान हैं, उन्हें बार-बार नमस्कार है। दुर्गा देवी की पूजा से सभी संकटों का नाश होता है और शक्ति की प्राप्ति होती है।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥सभी मंगलों की मंगला, सभी कामनाओं को सिद्ध करने वाली, शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली, गौरी, नारायणी, तुम्हें प्रणाम। लक्ष्मी देवी की स्तुति से धन, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
या कुन्देन्दु तुषार हार धवला,या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा,या श्वेतपद्मासना॥जो कुंद के फूल, चंद्रमा और हिम के हार से धवल हैं, जो शुभ्र वस्त्रों से आच्छादित हैं, जिनके हाथों में वीणा और वरदंड है, जो श्वेत कमल पर विराजमान हैं। सरस्वती देवी की स्तुति से विद्या, बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥टेढ़ी सूंड वाले, बड़े शरीर वाले, करोड़ों सूर्यों के समान चमक वाले, हे देव! मेरे सभी कार्यों में हमेशा विघ्नों का नाश करें। गणेश जी की पूजा से सभी कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण होते हैं।
असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय॥असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। यह श्लोक हमारे जीवन में सत्य, प्रकाश और अमरता की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है।
विद्या ददाति विनयं,विनयात् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति,धनात् धर्मं ततः सुखम्॥विद्या से विनय, विनय से पात्रता, पात्रता से धन, धन से धर्म और धर्म से सुख प्राप्त होता है। यह श्लोक हमें शिक्षा और विनम्रता के महत्व को समझाता है, जिससे हम जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
ॐ सह नाववतु।सह नौ भुनक्तु।
सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥हम दोनों की रक्षा हो, हम दोनों का पालन हो, हम दोनों मिलकर परिश्रम करें, हमारे अध्ययन में तेज हो, हम एक दूसरे से द्वेष न करें। यह शांति मंत्र हमारे जीवन में शांति, समृद्धि और एकता की कामना करता है।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः,गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म,तस्मै श्रीगुरवे नमः॥गुरु ही ब्रह्मा, गुरु ही विष्णु और गुरु ही महेश्वर हैं। गुरु साक्षात् परब्रह्म हैं। इस श्लोक में गुरु की महिमा का वर्णन है, जो हमें सिखाते हैं, मार्गदर्शन करते हैं और हमें सही दिशा में ले जाते हैं।
सर्वे भवन्तु सुखिनः,सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु,मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्॥सभी लोग सुखी रहें, सभी निरोगी रहें, सभी शुभ देखें और किसी को भी दुःख का सामना न करना पड़े। यह श्लोक हमारे समाज के कल्याण और सुख-समृद्धि की कामना करता है, जिससे हम सभी मिलकर एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकें।
अञ्जनानन्दनं वीरं जानकीशोकनाशनम्। कपीशमक्षहन्तारं वन्दे लङ्काभयङ्करम्॥
जो अंजना के पुत्र, वीर, सीता के दुःख को हरने वाले, वानरराज, अक्षकुमार का संहार करने वाले, और लंका को भयभीत करने वाले हैं – ऐसे हनुमान को मैं प्रणाम करता हूँ।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥
जो मन की गति से भी तेज, पवन के समान वेग वाले, इंद्रियों को जीतने वाले, बुद्धिमानों में श्रेष्ठ, पवन पुत्र, वानरों के नेता और श्रीराम के दूत हैं – ऐसे हनुमान जी की मैं शरण लेता हूँ।
बुद्धिर्बलं यशो धर्मं निर्भयत्वं अरोगता।
अजाड्यं वाक्पटुत्वं च हनुमत्स्मरणाद्भवेत्॥श्री हनुमान जी का स्मरण करने से बुद्धि, बल, यश, धर्म, निर्भयता, स्वास्थ्य, वाणी की प्रखरता और निर्भीकता प्राप्त होती है।
कायः कलेवरं दीप्तं महाबलपराक्रमम्। वायुपुत्रं महावीरं वन्दे रामभक्तं प्रभुम्॥
उज्ज्वल शरीर, महान बल और पराक्रम से युक्त, पवनपुत्र, महावीर, और श्रीराम के भक्त प्रभु को मैं वंदन करता हूँ।
अविश्रामं वहेत् भारं शीतोष्णं च न विन्दति ।
ससन्तोष स्तथा नित्यं त्रीणि शिक्षेत गर्दभात् ॥विश्राम लिए बिना भार वहन करना, ताप-ठंड ना देखना, सदा संतोष रखना यह तीन चीजें हमें गधे से सीखनी चाहिए।
जीवितं क्षणविनाशिशाश्वतं किमपि नात्र।
यह क्षणभुंगर जीवन में कुछ भी शाश्वत नहीं है।
मनःशौचं कर्मशौचं कुलशौचं च भारत । देहशौचं च वाक्शौचं शौचं पंञ्चविधं स्मृतम्।
मन शौच, कर्म शौच, देश शौच और वाणी शौच यह पांच प्रकार के शौच हैं।
जीविताशा बलवती धनाशा दुर्बला मम्।।
मेरी जीवन की आशा बलवती है पर धन की आशा दुर्लभ है।
जीवचक्रं भ्रमत्येवं मा धैर्यात्प्रच्युतो भव।
जीवन का चक्र ऐसे ही चलता है इसीलिए धैर्य ना खोए।
नो चेज्जातस्य वैफल्यं कास्य हानिरितिः परा।
जीवन की विफलता से बढ़कर क्या हानि होगी।
न दाक्षिण्यं न सौशील्यं न कीर्तिःनसेवा नो दया किं जीवनं ते।
ना दान है ना सुशीलता है ना कीर्ति है ना सेवा है ना दया है तो ऐसा जीवन क्या है?
यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रियाः !
चित्ते वाचि क्रियायांच साधुनामेक्रूपता ॥साधु जन वही बोलते हैं जो उनके चित्र में होता है और जो उनके चित्र में होता है वही उनकी क्रिया में होता है। ऐसे साधु जन के मन वचन एवं क्रिया में समानता होती है।
यस्तु सञ्चरते देशान् सेवते यस्तु पण्डितान् !
तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसियस्तु सञ्चरते देशान् सेवते यस्तु पण्डितान् !
तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसि॥वह व्यक्ति जो भिन्न-भिन्न देशों में भ्रमण करता है एवं विद्वानों की सेवा करता है ऐसे व्यक्ति की बुद्धि उसी तरह बढ़ती है जैसे तेल की बूंद पानी में फैल जाती है।
शतेषु जायते शूरः सहस्रेषु च पण्डितः !
वक्ता दशसहस्रेषु दाता भवति वा न वा ॥100 लोगों में एक शूरवीर होता है, हजार लोगों में एक पंडित(विद्वान) होता है, 10000 लोगों में वक्ता होता है, लाख लोगों में एक दानी होता है।
दारिद्रय रोग दुःखानि बंधन व्यसनानि च।
आत्मापराध वृक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम् ॥दरिद्र रोग दुख बंधन और बताएं यह आत्मा रूपी वृक्ष के अपराध का फल है जिसका उपभोग मनुष्य को करना ही पड़ता है।
निर्विषेणापि सर्पेण कर्तव्या महती फणा।
विषं भवतु वा माऽभूत् फणटोपो भयङ्करः॥सांप जहरीला ना होने पर भी फन जरूर उठाता है, अगर वह ऐसा भी ना करें तो लोग उसकी रीड को जूतों से कुचल कर तोड़ देंगे।
षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता !
निद्रा तद्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रता ॥व्यक्ति के बर्बाद होने के छह लक्षण है- नींद, तद्रा, क्रोध, आलस्य एवं काम को टालने की आदत।
जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं !
मानोन्नतिं दिशति पापमपा करोति ॥बुद्धि की जटिलता को हरने वाला अच्छे दोस्तों का साथ है। बोली सच बोलने लगती है, महान और उन्नति पड़ती है तथा पाप मिट जाता है।
उद्यमेन हि सिध्यन्ति, कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य, प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥परिश्रम से कार्य सिद्ध होते हैं केवल मनोरथ से नहीं। सोते हुए सिंह के मुख में मृग स्वयं ही प्रवेश नहीं करता, उसे अपना शिकार स्वयं ही करना पड़ता है।
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्मात् प्रियं हि वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ॥प्रिय वचन बोलने से सब जन संतुष्ट होते हैं इसलिए प्रिय वचन ही बोले। प्रिया वचन बोलने से कहां दरिद्रता आती अर्थात प्रवचन बोलने से कहीं नहीं मिलता नहीं आती तो प्रिया वचन बोले।
काकचेष्टो बकध्यानी श्वाननिद्रस्तथैव च।
अल्पाहारी गृहत्यागी, विद्यार्थी पञ्चलक्षणः ॥कोई जैसी चेष्टा अगले जैसा ध्यान कुत्ते जैसी निंद्रा तथा कम खाने वाला और ग्रह का त्याग करने वाला यही विद्यार्थी के पांच लक्षण है।
सद्भिरेव सहासीत सद्भिः कुर्वीत सङ्गतिम्।
सद्भिर्विवादं मैत्री च नासद्भिः किञ्चिदाचरेत् ॥सज्जनों के साथ बैठना, सज्जनों के साथ ही संगति करनी चाहिए। सज्जनों के साथ ही विवाद एवं मित्रता करनी चाहिए सज्जनों के साथ कोई व्यवहार नहीं करना चाहिए।